भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव ने हर्ष ध्वनी के साथ अपनी फांसी की सजा सुनी थी।
अंग्रेज भी इनकी दिलेरी पर आश्चर्यचकित थे।
फांसी का दिन आ पहुंचा था। नियमानुसार जेलर ने भगतसिंह से उनकी अंतिम इच्छा जाननी चाही तो भगतसिंह ने कहा कि मैं अपनी बेबे के हाथ की रोटियां खाना चाहता हूं। पहले तो जेलर ने समझा कि भगत अपनी मां के हाथ की रोटी खाना चाहते हैं। पर भगतसिंह ने स्पष्ट किया कि वे जेल में कैदियों की गंदगी उठाने वाली भंगी महिला के हाथ का भोजन करना चाहते हैं । जेलर हैरान , उसने पूछा कि आप उस भंगी महिला को बेबे क्यों कहते हैं? तब भगत ने जवाब दिया कि मेरी जिंदगी में दो ही महिलाओं ने मेरी गंदगी साफ की है। छुटपन में मेरी माँ ने और अब इस महिला ने। इसीलिए मैं इन दोनो को ही अपनी बेबे कहता और मानता हूं।
जब जेल की उस महिला को भगतसिंह की इस बात का पता चला तो उसकी आंखों से अविरल अश्रु-धारा बह चली। इतना बड़ा सम्मान आज तक उसे किसी ने भी तो नहीं दिया था। उसने बड़े प्यार से रोटियां बनाईं और उतने ही प्रेम से भगतसिंह ने उन्हें खाया।
भगतसिंह देश की आजादी के साथ-साथ यहां फैली ऊंच-नीच की दिवार को भी गिरा देना चाहते थे। उनका कहना था कि समाज के ढांचे को बदले बिना मनुष्य-मनुष्य के बीच की असमानता को दूर नहीं किया जा सकता।
आज अपनी कुर्सी को बचा अपना उल्लू सीधा करने वाले तथाकथित नेताओं को इन सब प्रसंगों का पता भी नहीं होगा और होगा भी तो ??????????????????????
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
शनिवार, 7 मई 2011
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8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर बात कही शहीद भगत सिंह ने ओर आज के कमीने नेता इन शहिदो से अलग बात करते हे, जात पात से पुरे देश को बांट दिया, इन हरामी नेताओ ने अपनी कुर्सी बचाने के लिये, धन्य्वाद
कहाँ गए वह लोग ...
आप का आभार इस घटना को हम सब तक पहुँचाने के लिए !
बेहतर प्रस्तुति...
अगर यही बातें लोग याद रख लें तो एक अच्छा समाज बनाया जा सकता है।
kya samay tha aur kaise log the. naman hai unko.
राज जी, अब तक भी कोई सुधार नहीं आया है
रवि जी, सदा स्वागत है
विवेक जी, अब तो लोग इतिहास बदलने में लगे हुए हैं
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