भारत में महिलाओं का बिंदी लगाना एक बहुत ही आम बात है। विवाहित महिलाओं के लिए यह सुहाग की निशानी मानी जाती है। वैसे भी इसे लगाने से ललाट की शोभा बढ जाती है। अब तो एशिया के बहुत सारे देशों में इस छोटी सी टिकुली ने महिलाओं को मोह लिया है।
पश्चिमी अफरीका की बात है। वहां बहुत से भारतीय परिवार रहते हैं। वहां की महिलाएं भारतीय महिलाओं से अक्सर बिंदी के बारे में पूछती रहती हैं तो इनका जवाब रहता है कि अपने पति के लिए लगाती हैं।
वहां बहुपत्नीत्व का चलन है। इस कारण वहां की स्त्रियों में असुरक्षा की भावना बनी रहती है। ऐसी ही एक महिला ने अपनी भारतीय सहेली की देखा-देखी बिंदी लगानी शुरु कर दी। कुछ दिनों बाद उसने अपनी भारतीय सहेली को बताया कि जबसे बिंदी लगाई है तब से उसके पति ने अन्य महिलाओं में रुचि लेना छोड़ दिया है। मेरे पास ही रहता है पर मैं उसकी नशा करने की आदत नहीं छुड़वा पाई हूं।
अब इसे क्या कहेंगे, काश ऐसा होता तो यहां भारत में पारिवारिक कलह का ग्राफ भू-लुंठित ना हो गया होता ? खैर अगली खुश रहे।
क्यों क्या कहते हैं आप ?
पश्चिमी अफरीका की बात है। वहां बहुत से भारतीय परिवार रहते हैं। वहां की महिलाएं भारतीय महिलाओं से अक्सर बिंदी के बारे में पूछती रहती हैं तो इनका जवाब रहता है कि अपने पति के लिए लगाती हैं।
वहां बहुपत्नीत्व का चलन है। इस कारण वहां की स्त्रियों में असुरक्षा की भावना बनी रहती है। ऐसी ही एक महिला ने अपनी भारतीय सहेली की देखा-देखी बिंदी लगानी शुरु कर दी। कुछ दिनों बाद उसने अपनी भारतीय सहेली को बताया कि जबसे बिंदी लगाई है तब से उसके पति ने अन्य महिलाओं में रुचि लेना छोड़ दिया है। मेरे पास ही रहता है पर मैं उसकी नशा करने की आदत नहीं छुड़वा पाई हूं।
अब इसे क्या कहेंगे, काश ऐसा होता तो यहां भारत में पारिवारिक कलह का ग्राफ भू-लुंठित ना हो गया होता ? खैर अगली खुश रहे।
क्यों क्या कहते हैं आप ?
5 टिप्पणियां:
jo bhi ho..bindi lagti badi sundar hai bhaarteeya naari ke bhal par
यहां की ईसाई माहिलाएं इसलिए नहीं लगाती क्योंकि उनके माथे पर पादरी ने क्रास का निशान बनाया था। उस अनदेखे क्रास पर और कोई अन्य निशान न रहे, ऐसी उनकी मान्यता है॥
बहुत खूब।
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समीरलाल की उड़नतश्तरी।
अंधविश्वास की शिकार महिलाऍं।
काश उस विदेशी स्त्री का भ्रम ना टूटे !
आपका आर्टिकल पढा.........मम्मी माथे पर बडी सी बिंदिया लगाया करती थी.हाथों में कांच या लाख की सुर्ख लाल या हरी चुडिया.हाथो पैरों में बढ़ महीनों मेहँदी.
एक दिन....पापा उन्हें छोड़ कर चले गये....अब उनके माथे पर कोई बिंदिया नही थी ना कोई सुहाग चिह्न.
मैंने समझाया कब तक इन सबको सुहाग की निशानियाँ ही मानते रहेंगे?खुद के लिए क्यों नही?' मैंने एक बिंदिया पर्स से निकाल मम्मी के माथे पर लगानी चाही.पढे लिखे भाइयों ने कहा-'हमे समाज में रहना है.उसके नियम हम कैसे तोड़ सकते हैं.?'(मुझे नही रहना ????)
मम्मी समाज के तथाकथित नियमों की शिकार हुई.अपने इस रूप को देख पापा को एक पल के लिए नही भूल सकी.बिस्तर पकड़ लिया....पूरे दस साल.
जवान भतीजा चल बसा.मैंने बहु को बिंदिया नही उतारने दी ना कोई सुहाग चिह्न. किसी को इतनी छूट ही नही दी कि सामने बोलने का साहस कर सके. किन्तु...मम्मी का सूना माथा नही भूल सकती.
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