सन्नाटा अक्सर भयभीत करता है ! पर कभी-कभी वही खामोशी हमें खुद को समझने-परखने का मौका भी देती है ! देखा जाए तो एक तरह से इसका शोर हमारी आत्मा की आवाज ही है, यह तब उभरती है जब भौतिक दुनिया शांत होती है और हम खुद से बात करने लगते हैं ! एक तरह से यह शोर मानव-मन के आंतरिक कोलाहल और द्वंद्व को दर्शाता है........!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
सन्नाटे का शोर ! दोनों विरोधाभासी ! एक रहे तो दूसरे का अस्तित्व ही खत्म हो जाता है ! पर विश्वास करें, यह उभरता है ! हालांकि इसे किसी डेसीबल जैसी वैज्ञानिक प्रणाली से नहीं नापा जा सकता पर यह अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाता है ! जब शब्द साथ नहीं देते तो इसी शोर की आवाजें महसूस होती हैं, जैसे खामोशियां बोलने लग गई हों ! बाहरी हलचलें शांत दिखती हैं, वहां खामोशी छाई होती है, पर भीतर एक विचलित करने वाला तूफान सा चल रहा होता है ! ऐसे में, दिमाग उलझन में पड़ जाता है ! सकारात्मकता और नकारात्मकता आपस में गड्ड-मड्ड से हो जाते हैं !
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| सन्नाटे के शोर का प्रभाव |
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| भयावह |
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
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5 टिप्पणियां:
सन्नाटे का शोर
सोचनीय शोध्य का विषय
वंदन
मैं भी कई बार ऐसा महसूस करता हूँ कि बाहर सब शांत है, पर अंदर कुछ तेज़ चल रहा होता है। जैसे दिल खुद से बातें कर रहा हो। यह शोर कानों में नहीं, सीने में सुनाई देता है। मैं इस एहसास को अक्सर रातों में महसूस करता हूँ, जब आसपास कोई नहीं होता और दिमाग भागना शुरू कर देता है।
गंभीर विचार
जी सर, मैं अक्सर महसूस करती हूॅं भीड़ से ज्यादा सन्नाटे का शोर...।
मन की बात।
सादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जैसे सन्नाटे का शोर हुई वैसे ही मौन की गूंज भी है, जब मन चुप हो जाता है तब गूँजती है
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