इतिहास बार-बार समझाता, चेताता आया है कि दुर्वचन आम इंसान को कभी भी रास नहीं आते, चाहे वे किसी के भी मुखारविंद से निकले हों ! कोफ्त होती है उसे ऐसे वचनों से ! एक अलगाव सा महसूसने लगता है वह उस व्यक्ति या संस्था विशेष से ! चाहे कितना भी बड़ा व्यक्तित्व हो, उसकी छवि धूमिल ही होती है ऐसे अपलाप से ! अग्निमुख यह बात क्यों नहीं समझ पाते, आश्चर्य ही है.............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कहावत है कि यथा राजा तथा प्रजा। पर समय बदल गया है और इसके साथ-साथ हर चीज में बदलाव आ गया है। कहावतें भी उलट गई हैं। अब यथा प्रजा तथा राजा हो गया है। जिस तरह से दिनों-दिन प्रजा में असहिष्णुता, असंयमितता, अमर्यादितता तथा विवेक-हीनता बढ़ रही है, उसी तरह के वैसे ही गुण लिए जनता से उठ कर सत्ता पर काबिज होने वाले नेता यानी आधुनिक राजा हो गए हैं।
#हिन्दी_ब्लागिंग
कहावत है कि यथा राजा तथा प्रजा। पर समय बदल गया है और इसके साथ-साथ हर चीज में बदलाव आ गया है। कहावतें भी उलट गई हैं। अब यथा प्रजा तथा राजा हो गया है। जिस तरह से दिनों-दिन प्रजा में असहिष्णुता, असंयमितता, अमर्यादितता तथा विवेक-हीनता बढ़ रही है, उसी तरह के वैसे ही गुण लिए जनता से उठ कर सत्ता पर काबिज होने वाले नेता यानी आधुनिक राजा हो गए हैं।
अपलाप
वर्षों से गुणीजन सीख देते आए हैं कि जबान पर काबू रखना चाहिए। पर अब समय बदल गया है। जबान की मिठास धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। खासकर राजनीति के पंक में लिथड़े अवसरवादी और महत्वाकांक्षी लोगों ने तुरंत खबरों में छाने और खुद को अपने दल की अग्रिम पंक्ति में स्थापित करने के लिए यह रास्ता अख्तियार कर लिया है ! इसका फायदा यह है कि एक ही झटके में उस गुमनाम-अनजान अग्नि-मुख का नाम हरेक की जुबान पर आ जाता है ! रातों-रात वह खबरों में छा अपनी पहचान बना लेता है। कुछ हाय-तौबा मचती है, पर वह टिकाऊ नहीं होती। अगला हंसते-हंसते माफी-वाफी मांग उस दल की जरुरत बन जाता है। कोई कम नहीं
यह सोचने की बात है कि इस तरह की अनर्गल टिप्पणियों की निंदा या भर्त्सना होने के बावजूद लोग क्यों जोखिम मोल लेते हैं। समझ में तो यही आता है कि यह सब सोची समझी राजनीति के तहत ही खेला गया खेल होता है। इस खेल में ना कोई किसी का स्थाई दोस्त होता है ना हीं दुश्मन। सिर्फ और सिर्फ अपने भले के लिए यह खेल खेला जाता है। इसके साथ ही यह भी सच है कि ऐसे लोगों में गहराई नहीं होती, अपने काम की पूरी समझ नहीं होती इन्हीं कमजोरियों को छुपाने के लिए ये अमर्यादित व्यवहार करते हैं। इसका साक्ष्य तो सारा देश और जनता समय-समय पर देखती ही रही है !बकवास की आजादी
कभी-कभी नक्कारखाने से तूती की आवाज उठती भी है कि क्या सियासतदारों की कोई मर्यादा नहीं होनी चाहिए ? क्या देश की बागडोर संभालने वालों की लियाकत का कोई मापदंड नहीं होना चाहिए ? जबकि किसी पद पर नियुक्ति के पहले, वर्षों का अनुभव होने के बावजूद, संस्थाएं नए कर्मचारी को कुछ दिनों का प्रशिक्षण देती हैं, नई नियुक्ति के पहले नौकरी पाने वाले को प्रशिक्षण-काल पूरा करना होता है। शिक्षक चाहे जब से पढ़ा रहा हो उसे भी एक खास कोर्स करने के बाद ही पूर्ण माना जाता है। अपवाद को छोड़ दें तो किसी भी संस्था में ज्यादातर लोग निचले स्तर से शुरू कर ही उसके उच्चतम पद पर पहुंचते हैं। तो फिर राजनीति में ही क्यों अधकचरे, अप्रशिक्षित, अनुभवहीन लोगों को थाली में परोस कर मौके दे दिए जाते हैं और इसमें कोई भी दल या पार्टी ना तो पीछे है, ना हीं किसी को परहेज है ! कम से कम उन्हें संयम की, मर्यादा की, नैतिकता की, मृदु भाषिता की सीख तो दी ही जा सकती है ! पर ऐसा करे कौन ? आज तो यह रोग देश के हर छोटे-बड़े नेता को लग चुका है !
यह जग जाहिर है कि किसी के कटु वचनों पर उनके द्वारा पालित लोग तो ताली बजा सकते हैं, पर आम जनता को ऐसे शब्द और उनको उवाचने वाला नागवार ही गुजरते हैं ! बड़े और अनुभवी नेताओं को ऐसे लोगों की औकात पता भी होती है, पर चाह कर भी वे ऐसे लोगों को रोक नहीं पाते, क्योंकि अपने किसी न किसी स्वार्थ के तहत इन लोगों को झेलना उनकी मजबूरी बन जाती है और यही बात ऐसे लोगों की जमात बढ़ते जाने का कारण बनती जा रही है, ऐसे लोगों का ना कोई विवेक होता है ना हीं कोई विचारधारा, इन्हें सिर्फ अपने हित को साधना होता है जो जहां सधता दीखता है ये उसी के हो जाते हैं !
इतिहास बार-बार समझाता, चेताता आया है कि दुर्वचन आम इंसान को कभी भी रास नहीं आते, चाहे वे किसी के भी मुखारविंद से निकले हों ! कोफ्त होती है उसे ऐसे वचनों से ! एक अलगाव सा महसूसने लगता है वह उस व्यक्ति या संस्था विशेष से ! चाहे कितना भी बड़ा व्यक्तित्व हो, उसकी छवि धूमिल ही होती है ऐसे अपलाप से ! अग्निमुख यह बात क्यों नहीं समझ पाते, आश्चर्य ही है !
अपलाप |
कोई कम नहीं |
बकवास की आजादी |
यह जग जाहिर है कि किसी के कटु वचनों पर उनके द्वारा पालित लोग तो ताली बजा सकते हैं, पर आम जनता को ऐसे शब्द और उनको उवाचने वाला नागवार ही गुजरते हैं ! बड़े और अनुभवी नेताओं को ऐसे लोगों की औकात पता भी होती है, पर चाह कर भी वे ऐसे लोगों को रोक नहीं पाते, क्योंकि अपने किसी न किसी स्वार्थ के तहत इन लोगों को झेलना उनकी मजबूरी बन जाती है और यही बात ऐसे लोगों की जमात बढ़ते जाने का कारण बनती जा रही है, ऐसे लोगों का ना कोई विवेक होता है ना हीं कोई विचारधारा, इन्हें सिर्फ अपने हित को साधना होता है जो जहां सधता दीखता है ये उसी के हो जाते हैं !
इतिहास बार-बार समझाता, चेताता आया है कि दुर्वचन आम इंसान को कभी भी रास नहीं आते, चाहे वे किसी के भी मुखारविंद से निकले हों ! कोफ्त होती है उसे ऐसे वचनों से ! एक अलगाव सा महसूसने लगता है वह उस व्यक्ति या संस्था विशेष से ! चाहे कितना भी बड़ा व्यक्तित्व हो, उसकी छवि धूमिल ही होती है ऐसे अपलाप से ! अग्निमुख यह बात क्यों नहीं समझ पाते, आश्चर्य ही है !
11 टिप्पणियां:
ये तो शुरूआत है| बीजारोपण हो रहा है | फसल जब कटेगी तब ?
सुंदर और सटीक विचार
आभार
सादर
विचारणीय विषय
सुन्दर लेख
विचारणीय लेख ।
सुशील जी,
इंसानों की तरह प्रकृति की कथनी और करनी में तो अतंर नहीं होता ! जाहिर है जैसा बोया जा रहा है वैसा ही काटना पड़ेगा !
श्वेता जी,
सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार 🙏
यशोदा जी,
अनेकानेक धन्यवाद 🙏
अनीता जी
हार्दिक आभार, आपका
आलोक जी
बहुत-बहुत धन्यवाद
सुधा जी,
सदा स्वागत है, आपका
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