बुधवार, 27 मार्च 2024

विलुप्ति की कगार पर पारंपरिक कलाएं, बीन वादन

आए दिन कोई ना कोई कलाकार, स्टैंडिंग कॉमेडियन या कोई संस्था अपने साथ कुछ लोगों को साथ ले विदेश में कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं, ऐसे लोग यदि अपने साथ बीन जैसी विलुप्त होती पारंपरिक विधाओं के किसी एक कलाकार को भी साथ ले जाएं तो इन लोक कलाओं को विलुप्त होने से कुछ हद तक बचाया जा सकता है ! यदि सरकार और सरकारी संस्थाएं सचमुच ऐसे कलाकारों का सरंक्षण चाहती हैं तो वे एक नियम ही बना दें कि मनोरंजन के लिए जाने वाले हर ग्रुप को कम से कम एक ऐसे कलाकार को ले जाना आवश्यक है.......!    

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हमारा देश अपनी पारंपरिक विविधताओं के लिए दुनिया भर में विख्यात है। यहां जितनी विविधताएं हैं, उतनी ही विविध कलाएं भी हैं। हर इलाके या राज्य की इस क्षेत्र में अपनी-अपनी विरासत है, फिर चाहे वह नृत्य हो, वादन हो, संगीत हो या लोकनाट्य हो। हर एक कला का अपना समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक महत्व है। पर खेद का विषय है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में कुछ श्रमसाध्य, जटिल व दुष्कर पारंपरिक कलाएं, वक्त के साथ ताल-मेल ना बैठा पाने के कारण धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर आ खड़ी हुई हैं ! ऐसी ही एक कला है, बीन वादन !

बीन 
पिछले दिनों अपनी संस्था RSCB के सौजन्य से हरियाणा के झज्जर जिले के एक पिकनिक स्थल जॉय गाँव जाने का अवसर मिला था। इस तरह के मनोरंजन स्थलों पर इनके निर्माता अपने आबालवृद्ध सभी तरह के ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के साथ-साथ खेलों और कार्यक्रमों का भी इंतजाम कर रखते हैं। यहां भी इस तरह के कई आयोजनों में एक था बीन वादन। जी हां, वही बीन जिसकी फ़िल्मी धुन पचासों साल के बाद आज भी संगीत प्रेमियों के दिल-ओ-दिमाग पर छाई हुई है, जबकि वह असली बीन थी भी नहीं ! 

मुकेश जी, डॉ. गोयल व हीरा लाल जी के साथ  
उस दिन जॉय गाँव में घूमते-घूमते मैं, डॉ गोयल और हीरा लाल जी, अपनी पारंपरिक वेश-भूषा में अकेले बैठे श्री मुकेश नाथ जी के पास जा पहुंचे। अति विनम्र और मृदुभाषी मुकेश जी का बातों-बातों में, उपेक्षित होते बीन वादन को लेकर दर्द उभर आया ! हालांकि इसी बीन की बदौलत वे एक बार इटली में सम्मानित हो चुके हैं पर धीरे-धीरे पहचान खो रही अपनी इस पुश्तैनी कला के भविष्य को लेकर वे खासे चिंतित भी हैं ! उन्होंने हमें इस वाद्य पर जो धुनें सुनाईं, वे किसी को भी मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखती हैं ! उन्होंने इस साज की बेहतरी के लिए अपनी तरफ से कुछ बदलाव भी किए हैं। यू-ट्यूब (Haryana Jogi Music) पर भी उनको देखा-सुना जा सकता है।  

मुकेश नाथ जी 
मुकेश नाथ जी के परिवार में बीन वादन की कला पीढ़ियों से चली आ रही है। कुछ कारणों से वे स्कूली शिक्षा तो हासिल नहीं कर पाए, पर इस वाद्य की वादन विधा, जो उन्होंने अपने दादा और पिता से सीखी, उसमें वे पूरी तरह से पारंगत हैं। यही निपुणता 2007 में उन्हें केरल के एक संगीत ग्रुप के साथ हफ्ते भर के लिए विदेश, इटली, तक भी ले गई थी। उस सम्मान का पूरा श्रेय वे बीन को ही देते हैं। पर इसके साथ ही वर्तमान पीढ़ी द्वारा इस कला से बढ़ती दूरी उन्हें दुखी भी करती है ! उनके दो बेटे हैं जिनमें छोटे उमेश नाथ, जिन्होंने दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की है वही इसमें थोड़ी-बहुत रूचि दिखाते हैं, उनका ज्यादा ध्यान ड्रम वादन पर है। उमेश के अनुसार वे पारंपरिक कला को सहेजना तो चाहते हैं, पर जी तोड़ मेहनत और समय देने के बावजूद उतनी आमदनी नहीं होती कि सुचारु रूप से घर चलाया जा सके ! 

मुकेश जी अपने बेटे उमेश के साथ 
मुकेश नाथ जी का मानना है कि आज के बच्चे उतनी मेहनत से कतराते हैं, जितनी इस वाद्य में जान फूंकने के लिए जरुरी है ! वैसे भी यह पूरे शारीरिक दम-ख़म की मांग करता है। इसे बजाने के लिए फेफड़ों का अत्याधिक मजबूत होना अति आवश्यक है। समय भी अपनी पूरी दावेदारी रखता है ! पर वे आमदनी की बात पर अपने बेटे से पूरी तरह सहमत हो जाते हैं ! यही वह कारण है जिसकी वजह से जहां उनके पैतृक गांव में घर-घर में बीन वादक होते थे, अब वहाँ गिने-चुने पांच-सात लोग ही रह गए हैं ! 

बीन अपने एक नए उपकरण के साथ 
हालांकि सुना गया है कि भारतीय जन नाट्य संघ #IPTA देश की पहचान गंवाती प्राचीन कलाओं को सहेजने का प्रयास कर रही है पर उसमें सक्षम देश वासियों का सहयोग भी जरुरी है। आए दिन कोई ना कोई कलाकार, स्टैंडिंग कॉमेडियन या कोई संस्था अपने साथ कुछ लोगों को साथ ले विदेश में कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं, ऐसे लोग यदि अपने साथ बीन जैसी विलुप्त होती विधाओं के किसी एक कलाकार को भी साथ ले जाएं तो इन पारंपरिक कलाओं को विलुप्त होने से कुछ हद तक रोका जा सकता है ! यदि #भारत_सरकार और #संस्कृति_मंत्रालय या दूसरी #सरकारी_संस्थाएं सचमुच ऐसे कलाकारों का सरंक्षण चाहती हैं तो वे एक नियम ही बना दें कि मनोरंजन के लिए विदेश जाने वाले हर ग्रुप को कम से कम एक ऐसे कलाकार को ले जाना आवश्यक है, पारंपरिक कला से जुड़ा हो। यदि ऐसा हो सके तो हम अपनी विलुप्त विरासतों को संरक्षित तो कर ही सकेंगे साथ ही उपार्जन की कमी के कारण विमुख होते लोक कलाकारों की हौसला-अफ़जाई भी कर सकेंगे।  

बुधवार, 13 मार्च 2024

अवमानना संविधान की

आज CAA के नियमों को लेकर जैसा बवाल मचा हुआ है, उसका मुख्य कारण उसके नियम नहीं हैं बल्कि हिन्दू विरोधी नेताओं की शंका है, जिसके तहत उन्हें लगता है कि गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता मिल जाने से उनका वोट बैंक कमजोर पड़ जाएगा ! उन्हें अपने मतलब के अंधकार में उन लाखों लोगों का दर्द नहीं दिखलाई पड़ता जो वर्षों-वर्ष से बिना किसी पहचान के निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हैं ! ये लोग सीधे-सीधे तो कह नहीं सकते तो उसी संविधान की आड़ ले कर इस कानून का विरोध कर रहे हैं जो उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं देता ! पर वे ऐसा अभी भी आम जनता को बौड़म समझने वाली सोच की तहत किए जा रहे हैं..........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

एक होता है संविधान, जिसके अनुसार देश चलता है ! एक होता है न्यायालय, जिस पर देश की कानून व न्याय व्यवस्था की जिम्मेवारी होती है। न्यायालय का शिखर है सर्वोच्च न्यायालय ! यही सर्वोच्च न्यायालय संविधान का संरक्षक होता है ! अब देखने की बात यह है कि जब न्यायालयों के संचालकों, महामहिमों की बात की जरा सी अवहेलना पर किसी पर भी मानहानि का मुकदमा चल सकता है तो उनके संरक्षण में रहने वाले संविधान, के विरुद्ध आचरण करने वालों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जाती ! क्यों उसका मजाक बनाया जाता है ? उसकी गलत आड़ लेकर अपना मतलब सिद्ध करने वालों को कोर्ट क्यों नहीं तुरंत बेनकाब करता ? जबकि संविधान सर्वोपरि है, गुरुग्रंथ है, उसकी कसमें खाई जाती हैं !

ज्यादातर राजनीति करने वालों का मुख्य लक्ष्य सत्ता हासिल करने का ही होता है ! उसके लिए वे किसी भी हथकंडे को काम में लाने में नहीं हिचकते ! इसमें कोई भी दल दूध का धुला नहीं होता ! वर्षों से मौकापरस्त, सत्ता पिपासु लोग समयानुसार संविधान की दुहाई दे कर जनता को गुमराह करते रहे हैं ! जबकि जनता ज्यादातर अनपढ़ होती थी ! आज भी अनपढ़ को तो छोड़िए, लाखों पढ़े-लिखे लोगों को भी संविधान के "स'' का पता नहीं है ! पर अब जिस तरह से देश में जागरूकता दस्तक दे रही है,  हर तरफ बदलाव दिख रहा है, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में ! बच्चे भी पहले से ज्यादा समझदार और जानकार हो गए हैं, तो अब होना यह चाहिए कि संविधान की मुख्य बातें स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर दी जाएं ! जिससे वे जब बड़े हो कर जिम्मेदार नागरिक बनें तो कोई भी ऐरा-गैरा उन्हें बेवकूफ ना बना सके ! हालांकि अभी भी हमारी आँखों पर धर्म, जाति, भाषा, सम्प्रदाय की पट्टी बंधी हुई है। अभी भी चुनावों में यह मुख्य कारक होते हैं फिर भी कोशिश तो जारी रहनी ही चाहिए ! इसके लिए सबसे अहम है जागरूकता और उसके लिए जरुरी है शिक्षा और यही वह अस्त्र है जिसके द्वारा हर तरह की कुटिलता का नाश संभव हो सकता है। सत्य की सदा जय हो सकती है। 

आज नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के नियमों को लेकर जैसा बवाल मचा हुआ है, उसका मुख्य कारण उसके नियम नहीं हैं बल्कि हिन्दू विरोधी नेताओं की शंका है, जिसके तहत उन्हें लगता है कि गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता मिल जाने से उनका वोट बैंक कमजोर पड़ जाएगा ! उन्हें अपने मतलब के अंधकार में उन लाखों लोगों का दर्द नहीं दिखलाई पड़ता जो वर्षों-वर्ष से बिना किसी पहचान के निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हैं ! ये लोग सीधे-सीधे तो कह नहीं सकते तो उसी संविधान की आड़ ले कर इस कानून का विरोध कर रहे हैं जो उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं देता ! पर वे ऐसा अभी भी आम जनता को बौड़म समझने वाली सोच की तहत किए जा रहे हैं ! विडंबना है कि वे उसी संविधान का गलत सहारा लेने की कोशिश कर रहे हैं, जिसकी शपथ ले वे सत्ता की कुर्सी पर काबिज हुए हैं ! 

जो भी दल सत्ता में होता है वह चुनावों में अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए हर दांव चलता है, हर पैंतरा आजमाता है ! ऐसे में विरोधी दलों के नेता, जो खुद उसी खेल के खिलाड़ी हैं, ऐसे दांव-पेंच वे खुद भी बखूबी आजमाते रहते हैं, उनको अपनी अलग मजबूत रणनीति बना मुकाबला करना चाहिए नाकि सिर्फ सत्ता पक्ष को गरियाते हुए चिल्ल्पों मचा के अपना ही जुलुस निकलवाना चाहिए ! जनता तो इनका तमाशा देख ही रही है पर आश्चर्य है कि संविधान के संरक्षक क्यों चुप हैं.........!

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