गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

कर्मनाशा, एक शापित नदी, जिसके पानी को छूने से भी लोग डरते हैं

इसका नाम दो शब्दों से मिल कर बना है, कर्म, यानी काम और नाशा, यानी नाश होना। इसके बारे मान्यता चली आ रही है कि चाहे काले सांप का काटा या हलाहल जहर पीने वाला आदमी एक बार बच सकता है, किंतु जिस पौधे को एक बार कर्मनाशा का पानी छू ले, वह फिर हरा नहीं हो सकता ! कर्मनाशा के बारे में एक और विश्वास प्रचलित है कि यदि एक बार नदी उफान पर आ जाए तो बिना मानुस की बलि लिए नहीं लौटती............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

जगत के सारे जीव-जंतु सदा से ही जल स्रोतों के आस-पास रहना पसंद करते आए हैं। खासकर मनुष्य का तो नदियों के साथ आदिम व अटूट रिश्ता रहा है ! इतिहास गवाह है कि संसार की सारी सभ्यताएं नदियों के सानिद्य से ही विकसित हुई हैं ! नदियां ही मनुष्य की चेतना और सभ्यता को सर्वोच्च शिखर तक पहुँचाने में मददगार रही हैं ! जल के रूप में उनमें जीवन प्रवाहित होता रहता है ! इसीलिए हमारे यहां नदियों को देवतुल्य और पूजनीय माना गया है, उन्हें माँ का दर्जा प्रदान किया गया है ! उनकी पूजा-अर्चना की जाती है ! इस सब के बावजूद यह जान कर हैरत होगी कि हमारे ही देश में एक नदी ऐसी भी है जिसके पानी को छूने से भी लोग डरते हैं ! नाम है उसका कर्मनाशा !


कर्मनाशा नदी का उद्गम कैमूर जिले के अधौरा व भगवानपुर नामक स्थान पर स्थित कैमूर की पहाड़ी से होता है ! यह बिहार और यू.पी. की सीमा निर्धारित करते हुए, सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी व गाजीपुर से गुजर, करीब 192 की.मी. का सफर तय कर बक्सर के समीप गंगा नदी में विलीन हो जाती है। इसका नाम दो शब्दों से मिल कर बना है, कर्म, यानी काम और नाशा, यानी नाश होना।इसके बारे मान्यता चली आ रही है कि चाहे काले सांप का काटा या हलाहल जहर पीने वाला आदमी एक बार बच सकता है, किंतु जिस पौधे को एक बार कर्मनाशा का पानी छू ले, वह फिर हरा नहीं हो सकता ! कर्मनाशा के बारे में एक और विश्वास प्रचलित है कि यदि एक बार नदी उफान पर आ जाए तो बिना मानुस की बलि लिए नहीं लौटती ! 

इसकी उत्पत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार राजा सत्यव्रत ने एक बार अपने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग में जाने की इच्छा व्यक्त की जिसे गुरु वशिष्ठ के नकार देने पर नाराज सत्यव्रत ऋषि विश्वामित्र के पास चले गए ! वशिष्ठ से प्रतिस्पर्द्धा होने और उन्हें नीचा दिखाने का अवसर होने के कारण विश्वामित्र ने राजा सत्यव्रत की बात स्वीकार कर अपने तपोबल से उन्हें स्वर्ग भेज दिया ! इस पर इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने सत्यवर्त को स्वर्ग से बाहर धकेल दिया पर ऋषि के तपोबल से वह पृथ्वी पर ना आ स्वर्ग और धरती के बीच त्रिशंकु हो उलटे लटकते रह गए ! कथा के अनुसार देवताओं और विश्वामित्र के युद्ध के बीच त्रिशंकु धरती और आसमान में जब उलटे लटक रहे थे तभी इसी बीच उनके मुंह से तेजी से लार टपकने लगी और यही लार धरती पर नदी के रूप में बहने लगी, चूँकि ऋषि वशिष्ठ ने राजा को चांडाल होने का शाप दे दिया था और उनकी लार से नदी बन रही थी, इसलिए इसे शापित कहा और मान लिया गया ! 

ऐसे ही चरित्रों, कथाओं, गाथाओं, मान्यताओं से भरा पड़ा है हमारा इतिहास ! जो बातों ही बातों में अच्छे-बुरे का विश्लेषण कर लोगों को सद्ऱाह दिखाता रहता है ! पर आज इस नदी की बात करें तो दुखद वास्तविकता यह है कि यह नदी कई स्थानों पर सूख चुकी है ! बिहार में मिलों और तमाम औद्योगिक इकाइयों का गंदा पानी इसी में छोड़े जाने के कारण ये पूरी तरह विषाक्त हो चुकी है ! कथाओं के अनुसार शापित हो या ना हो पर आज यह सचमुच त्याज्य हो चुकी है !

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

11 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
बहुत बहुत आभार सम्मिलित करने हेतु🙏

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कर्मनाशा नदी के बारे में रोचक जानकारी।

Kamini Sinha ने कहा…

बेहद रोचक जानकारी,इस नदी के बारे में जानकारी नहीं थी। साझा करने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर 🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
आभार आपका 🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
सदा स्वागत है आपका 🙏

Onkar ने कहा…

बेहद रोचक जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी
हार्दिक आभार आपका🙏

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नई जानकारी मिली । कथा भी पहली ही बार पढ़ी ।।

रेणु ने कहा…

नमस्ते गगन जी,संयोग ही है कि एक कथा में कुछ दिन पहले ही कर्मनाशा नदी के बारे में सुनने को मिला।इसके बारे में गूगल बाबा से जानकारी लेना चाह ही रही थी कि आपका लेख आ गया। एक जीवन्त जलधार ( भले अभी सूख रही पर कभी तो अपने उज्जवल और जीवन्त रूप में बहती होगी)को शापित घोषित5कर4उसके अस्तित्व को असमय मिटा देना ना सिर्फ एक उपयोगी जल स्त्रोत वरन मानवता के प्प्रति भी अपराध और अधर्म है।पर पौराणिक मान्यताओं का तिरस्कार और प्रतिकार कौन करे?? यूँ भी श्रद्धा और विश्वास का कोई तर्क नहीं होता।और जीवन के धर्म के विपरीत कृत्य से राजा सत्यव्रत ने तो दंड भुगता ही इसी बहाने क्रोधी और अविवेकी ऋषियों के मौलिक चरित्र भी साकार हो गये और उनकी आपसी शत्रुता खुलकर सामने आ गई।एक सार्थक लेख के लिए बधाई और आभार आपका 🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रेणु जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका 🙏🏻

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
सार्थक टिप्पणी हेतु अनेकानेक धन्यवाद🙏

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