शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

भारतीय गणना की श्रेष्ठता सिद्ध करता एक अद्भुत अंक, 2520

जब रामानुजनजी ने विश्व के गणितज्ञों को बताया कि हिन्दू संवत्सर के अनुसार यह वह सबसे छोटी संख्या है जो सम और विषम सभी अंकों से विभाजित हो जाती है और वास्तव में यह सप्ताह के सात दिनों, महीने के तीस दिनों और साल के बारह महीनों (7x12x30) का गुणनफल है तो उनके मुंह खुले के खुले रह गए..........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

गणित में 0 से लेकर 9 तक के अंक होते हैं ! इन्हीं से सारी संख्याएं और गणनाएं की जाती हैं ! इन्हें दो भागों में बांटा गया है, सम और विषम यानी EVEN और ODD ! सम अंकों से बनने वाली संख्याएं सम अंकों से विभाजित होती हैं और विषम से बनने वाली विषम अंकों से ! सदियों तक यह माना जाता रहा था कि ऐसी कोई भी संख्या हो ही नहीं सकती, जिसे 1 से 10 तक के सभी अंको से विभाजित किया जा सके। वैसे एक से लेकर नौ अंको के गुणनफल से ऐसी संख्या बन तो सकती है पर बनाने और होने में बहुत फर्क होता है ! लेकिन हमारे महान गणितज्ञ रामानुजन ने गहन अध्ययन और शोध के बाद एक ऐसी संख्या खोज ही निकाली, जिसे 1 से लेकर 10 तक के सभी अंकों से विभाजित किया जा सकता है, यानी भाग दिया जा सकता है। एक अद्भुत संख्या, जो सम और विषम दोनों से पूर्णतया विभाजित हो जाती है, गणित के विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हैं इसकी प्रकृति पर ! यह संख्या है, 2520 !    

श्रीनिवास रामानुजन् 

यह वह विचित्र, सबसे छोटी संख्या है, जो 1 से 10 तक प्रत्येक अंक से विभाजित हो सकती है और जिसे इकाई तक के किसी भी अंक से भाग देने के उपरांत शेष शून्य रहता है ! जब रामानुजनजी ने विश्व के गणितज्ञों को बताया कि हिन्दू संवत्सर के अनुसार यह वह सबसे छोटी संख्या है जो सम और विषम सभी अंकों से विभाजित हो जाती है और यह वास्तव में सप्ताह के सात दिनों, महीने के तीस दिनों और साल के बारह महीनों 7x12x30 का गुणनफल है तो उनके मुंह खुले के खुले रह गए ! 

यही है भारतीय गणना की श्रेष्ठता ! जो कभी शून्य दे कर जगत की गणना को अनंत विस्तार देती है ! कभी कलिष्ट गणनाओं को हल कर सुगमता प्रदान करती है ! कभी सूक्ष्मताओं को सामने ला असीम को भी संभव बना देती है ! पर पता नहीं क्यों इस विलक्षणता पर गर्व करने की बजाए हमारे ही द्वारा इसे परदे के पीछे छिपाने का कुत्सित प्रयास किया जाता रहा है !

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

कर्मनाशा, एक शापित नदी, जिसके पानी को छूने से भी लोग डरते हैं

इसका नाम दो शब्दों से मिल कर बना है, कर्म, यानी काम और नाशा, यानी नाश होना। इसके बारे मान्यता चली आ रही है कि चाहे काले सांप का काटा या हलाहल जहर पीने वाला आदमी एक बार बच सकता है, किंतु जिस पौधे को एक बार कर्मनाशा का पानी छू ले, वह फिर हरा नहीं हो सकता ! कर्मनाशा के बारे में एक और विश्वास प्रचलित है कि यदि एक बार नदी उफान पर आ जाए तो बिना मानुस की बलि लिए नहीं लौटती............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

जगत के सारे जीव-जंतु सदा से ही जल स्रोतों के आस-पास रहना पसंद करते आए हैं। खासकर मनुष्य का तो नदियों के साथ आदिम व अटूट रिश्ता रहा है ! इतिहास गवाह है कि संसार की सारी सभ्यताएं नदियों के सानिद्य से ही विकसित हुई हैं ! नदियां ही मनुष्य की चेतना और सभ्यता को सर्वोच्च शिखर तक पहुँचाने में मददगार रही हैं ! जल के रूप में उनमें जीवन प्रवाहित होता रहता है ! इसीलिए हमारे यहां नदियों को देवतुल्य और पूजनीय माना गया है, उन्हें माँ का दर्जा प्रदान किया गया है ! उनकी पूजा-अर्चना की जाती है ! इस सब के बावजूद यह जान कर हैरत होगी कि हमारे ही देश में एक नदी ऐसी भी है जिसके पानी को छूने से भी लोग डरते हैं ! नाम है उसका कर्मनाशा !


कर्मनाशा नदी का उद्गम कैमूर जिले के अधौरा व भगवानपुर नामक स्थान पर स्थित कैमूर की पहाड़ी से होता है ! यह बिहार और यू.पी. की सीमा निर्धारित करते हुए, सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी व गाजीपुर से गुजर, करीब 192 की.मी. का सफर तय कर बक्सर के समीप गंगा नदी में विलीन हो जाती है। इसका नाम दो शब्दों से मिल कर बना है, कर्म, यानी काम और नाशा, यानी नाश होना।इसके बारे मान्यता चली आ रही है कि चाहे काले सांप का काटा या हलाहल जहर पीने वाला आदमी एक बार बच सकता है, किंतु जिस पौधे को एक बार कर्मनाशा का पानी छू ले, वह फिर हरा नहीं हो सकता ! कर्मनाशा के बारे में एक और विश्वास प्रचलित है कि यदि एक बार नदी उफान पर आ जाए तो बिना मानुस की बलि लिए नहीं लौटती ! 

इसकी उत्पत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार राजा सत्यव्रत ने एक बार अपने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग में जाने की इच्छा व्यक्त की जिसे गुरु वशिष्ठ के नकार देने पर नाराज सत्यव्रत ऋषि विश्वामित्र के पास चले गए ! वशिष्ठ से प्रतिस्पर्द्धा होने और उन्हें नीचा दिखाने का अवसर होने के कारण विश्वामित्र ने राजा सत्यव्रत की बात स्वीकार कर अपने तपोबल से उन्हें स्वर्ग भेज दिया ! इस पर इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने सत्यवर्त को स्वर्ग से बाहर धकेल दिया पर ऋषि के तपोबल से वह पृथ्वी पर ना आ स्वर्ग और धरती के बीच त्रिशंकु हो उलटे लटकते रह गए ! कथा के अनुसार देवताओं और विश्वामित्र के युद्ध के बीच त्रिशंकु धरती और आसमान में जब उलटे लटक रहे थे तभी इसी बीच उनके मुंह से तेजी से लार टपकने लगी और यही लार धरती पर नदी के रूप में बहने लगी, चूँकि ऋषि वशिष्ठ ने राजा को चांडाल होने का शाप दे दिया था और उनकी लार से नदी बन रही थी, इसलिए इसे शापित कहा और मान लिया गया ! 

ऐसे ही चरित्रों, कथाओं, गाथाओं, मान्यताओं से भरा पड़ा है हमारा इतिहास ! जो बातों ही बातों में अच्छे-बुरे का विश्लेषण कर लोगों को सद्ऱाह दिखाता रहता है ! पर आज इस नदी की बात करें तो दुखद वास्तविकता यह है कि यह नदी कई स्थानों पर सूख चुकी है ! बिहार में मिलों और तमाम औद्योगिक इकाइयों का गंदा पानी इसी में छोड़े जाने के कारण ये पूरी तरह विषाक्त हो चुकी है ! कथाओं के अनुसार शापित हो या ना हो पर आज यह सचमुच त्याज्य हो चुकी है !

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

लो, कर लो बात ! मेरी आय बढ गई और मुझे पता ही नहीं

एक वातानुकूलित कमरा होता है ! जिसमें अंदर का बाहर और बाहर का अंदर कुछ पता नहीं चलता ! उस कमरे की एक दिवार पर एक बोर्ड़ लगा रहता है। उस पर एक आड़ी-टेढ़ी-वक्र सी लकीर बनी होती है जिसके आगे एक तीर लगा होता है। उस लकीर को ही ऊपर-नीचे कर यह पता लगा लिया जा सकता है कि लोगों की कितनी आमदनी बढ़ी, कितनी मंहगाई कम हो गई, बेरोजगारी कितनी घट गई, भ्रष्टाचार कितना कम हो गया, आदि-आदि। निष्णात विशेषज्ञ बिना बाहर झांके या जायजा लिए, वहां बैठे-बैठे इस लकीर की मार्फ़त यह सब प्रतिशत और आंकड़ों में बता देते हैं, समझे........?


#हिन्दी_ब्लागिंग

आज ठंड़ कुछ ज्यादा ही थी। चाय की दुकान पर अपने वही पुराने गुरु शिष्य मिल गए, जिनको हम सुविधानुसार ज्ञानी और अज्ञानी के रूप में जानते रहे हैं ! आपस में मिलते ही आदत के अनुसार जन्मजात अज्ञानी शिष्य फिर शुरु हो गया।

अज्ञानी : गुरु, ये सरकार समिति, कमेटी वगैरह क्यूं बनाती रहती है, जब-तब, वह भी बाहर से लोगों को लेकर ? सरकार में तो ऐसे ही काम करने वालों की बहुत भरमार होती है !

ज्ञानी : अरे पगले, कभी किसी मामले को वर्षों लटकाने के लिये, कभी विवादास्पद मुद्दे से अपना सर बचाने के लिये और कभी जनता का ध्यान बंटाने के लिये यह सब करना पड़ता है, तू नहीं समझेगा !

अज्ञानी : गुरु ! पर इसके लिये ज्यादातर लोग अवकाश प्राप्त ही क्यों चुने जाते हैं ?

ज्ञानी : तू जब करेगा, मूर्खता की बातें ही करेगा ! सरकार को बहुतों को उपकृत करना पड़ता है। जिंदगी भर वफादार रह कर भी जो ढंग का कुछ नही पा सका उसे ऐसे काम दे दिए जाते हैं। इधर आम लोगों की धारणा रहती है कि सारी उम्र सरकारी काम में रहने से यह तजुर्बेदार तो होगा ही, इसीलिए इसे चुना गया ! अब यह मत कहना कि सरकारी काम तो..............!

अज्ञानी : पर गुरु अभी एक बहुते जिम्मेदार आदमी ने एलाउंस किया है कि देशवासियों की आय बढ गई है ! पर मेरी तो वहीं की वहीं है ! यह कैसी बात हुई कि मेरी आय बढ़ी और मुझे ही पता नहीं चला....!

ज्ञानी : अरे, तू रहा मूर्ख का मूर्ख ! वैसे भी यह सब समझना इतना आसान भी नहीं होता ! खैर बताता हूँ ! कुछ तथाकथित विशेषज्ञ होते हैं ! जो समय और परिस्थिति अनुसार एक और एक, एक ! एक और एक, दो या फिर एक और एक ग्यारह, सिद्ध करने और उस ओर विश्वास दिलवाने में सिद्धहस्त होते हैं ! उन पर यह मंहगाई-वंहगाई की कोई गति नहीं व्यापति ! उनका एक वातानुकूलित कमरा होता है ! जिसमें अंदर का बाहर और बाहर का अंदर कुछ पता नहीं चलता ! उस कमरे की एक दिवार पर एक बोर्ड़ लगा रहता है। उस पर एक आड़ी-टेढ़ी-वक्र सी लकीर बनी होती है जिसके आगे एक तीर लगा रहता है। उस लकीर को ही ऊपर-नीचे कर यह लोग पता लगा लेते हैं कि लोगों की कितनी आमदनी बढ़ी, कितनी मंहगाई कम हो गई, स्वास्थ्य सेवाओं में कितनी बढोत्तरी हुई, मृत्यु दर में कितनी कमी आई, बेरोजगारी कितनी कम हो गई, शिक्षित लोगों का कितना ईजाफा हो गया, भ्रष्टाचार कितना घट गया, अपराध कितने कम हो गए, आदि-आदि। 

निष्णात विशेषज्ञ बिना बाहर झांके या जायजा लिए, वहां बैठे-बैठे इस लकीर की मार्फ़त यह सब प्रतिशत और आंकड़ों में बता देते हैं ! समझे कि नाहीं......!


अज्ञानी (मुंह बाए हुए) : गुरुजी, एक लकीर से इतना कुछ पता चल जाता है ! गजब है ! फिर भी उनकी बात मान भी लें तो, मेरी ना भी सही औरों की तो आमदनी बढी होगी ! पर उसके साथ-साथ मंहगाई भी तो पिछले वर्षों की तुलना में आसमान छू रही है। अब गैस और पेट्रोल के मासिक खर्च के अलावा जो ट्रकों की ढूलाई से कीमतें बढेंगी उसकी तुलना में कितनी आय बढ़ी होगी, आम आदमी की। कोई दुगनी या तिगुनी तो बढ नही गई होगी ?

ज्ञानी : नहीं !! यानि कि !!! अब !!!! अबे, बेकार की बहस करने लग जाता है... जब देखो ! फालतू की बातें छोड़, अपना फर्ज देख देश के प्रति ! कितनी बार समझाया है कि यह मत सोच कि देश ने तुझे क्या दिया, यह देख कि तुम देश को का दे रहे हो। चलो भगो...! बहुते काम पेंडिग है हमरा,,! चले आते हैं एक चाय के बदले हमारा दिमाग खाने !

अज्ञानी (चलते-चलते) : गुरु, मुंह मत खुलवाओ। और कुछ तो मैं नहीं जानता ! पर अब तो सच यही है कि मंहगाई मारे डाल रही है ! सांसो लेना दूभर हो गया है ! आम लोगों की परेशानी और हालत मैं भी जानता हूं, तुम भी जानते हो ! कल से अपनी चाय का इंतजाम खुद ही कर लेना ! चलता हूँ, नहीं तो एक दिन की पगार कट जायेगी, मंदी के नाम पर !
राम, राम.........! 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

संस्कार भी किसी उपलब्धि को हासिल करने के लिए सहायक हो सकते हैं

जापान के नागरिक चाहे देश में रहें या विदेश में उनका स्वत अनुशासन सभी जगह एक सा रहता है ! इसकी एक झलक अपने ही देश में राजस्थान के अलवर जिले के नीमराना क्षेत्र में देखने को मिलती है ! जहां कई जापानी कंपनियों जगह आवंटित की गई है ! नीमराना का यह इलाका काफी हरा-भरा है ! अफरात मात्रा में पेड़-पौधे हैं ! पर हर कंपनी का परिसर बिलकुल साफ सुथरा, एक तिनका तक नजर नहीं आता ! जबकि यहां जापानियों की संख्या नगण्य सी ही है, पर उनका अनुशासन, उनका समर्पण, उनकी संस्कृति, उनकी जीवनशैली यहां चप्पे-चप्पे पर नजर आती है.........!    

#हिन्दी_ब्लागिंग 

अपने देश में सफाई व स्वच्छता को लेकर काफी हो-हल्ला मचता रहता है ! अब दिल्ली को ही लें, इसके कूड़े के पहाड़ों की चर्चा दूर-दूर तक हो रही है ! हम सब दिल्ली वासी शर्मिंदा और दुखी होने का दिखावा भी खूब करते हैं ! पर निजी तौर पर अपने घर से निकलने वाले कूड़े में कोई कटौती करने की कभी कोई कोशिश नहीं करते ! हाँ, दूसरों पर इल्जाम लगाने में कोई कोताही नहीं बरतते ! सब यही चाहते हैं कि दूसरे इस मुहीम में जुटे रहें ! हमारा काम भी कोई और कर दे ! वैसे हम दिखावा करने या स्थान-परिवेश के अनुसार खुद को प्रस्तुत करने में भी बहुत माहिर हैं ! विदेश प्रवास पर हम खूब अनुशासित रहते हैं ! वहां के नियम-कानूनों का शत-प्रतिशत पालन करते हैं ! मर्यादित रहते हैं ! पर देश में कदम रखते ही उच्श्रृंखल हो जाते हैं ! यहां आते ही हमें अपनी आजादियां तो याद आ जाती हैं पर अपने कर्तव्य की कोई चिंता या परवाह नहीं रहती ! जब तक दिल से हर कोई इस काम में नहीं जुटेगा, सफाई सिर्फ बातों और कागजों पर ही रहेगी ! वैसे इसके लिए संस्कार भी बहुत जरुरी हैं !

नीमराना 

दुनिया के सबसे अनुशासित देश जापान को देखें ! उसके नागरिक चाहे देश में रहें या विदेश में उनका स्वत अनुशासन सभी जगह एक सा रहता है ! इसकी एक झलक देखनी हो तो जापान जाने की जरुरत नहीं है, अपने ही देश में राजस्थान के अलवर जिले के नीमराना क्षेत्र तक ही जाना बहुत है ! यहां बहुत सी जापानी कंपनियों को उत्पादन के लिए जगह आवंटित की गई है ! नीमराना का यह इलाका काफी हरा-भरा है ! अफरात मात्रा में पेड़-पौधे हैं ! पर हर कंपनी का परिसर बिलकुल साफ सुथरा, एक तिनका तक नजर नहीं आता ! जबकि यहां जापानियों की संख्या नगण्य सी ही है, पर उनका अनुशासन, उनका समर्पण, उनकी संस्कृति, उनकी जीवनशैली यहां चप्पे-चप्पे पर नजर आती है !

उदहारण स्वरूप नीमराना स्टील सर्विस सेंटर इंडिया नाम की कंपनी में तक़रीबन चार सौ कर्मचारी काम करते हैं, जिनमें जापानी कर्मचारी सिर्फ तीन हैं पर उन्होंने सफाई से लेकर अनुशासन तक हर चीज में अपने भारतीय साथियों को भी अपनी संस्कृति में ढाल लिया है ! इतनी हरियाली के बावजूद परिसर में एक तिनका तक दिखाई नहीं देता ! वहां के जनरल मैनेजर के अनुसार यहां चलने वाली तीन शिफ्टों में हर व्यक्ति को अनिवार्यतः दस मिनट का समय सफाई में देना होता है ! शिफ्ट में निश्चित समय पर सफाई अभियान के लिए म्यूजिक बजना शुरू हो जाता है उस दौरान बिना किसी भेदभाव के छोटे-बड़े सारे अधिकारी सफाई में जुट जाते हैं ! इस इलाके में करीब 46 जापानी कंपनियां हैं जिनमें गिनती के जापानी लोग हैं, बाकी तक़रीबन 25-26 हजार लोग भारतीय हैं ! इन सभी की कार्यप्रणाली की संरचना एक सी है ! यहां कार्यरत लोगों की एक विशेष जीवनशैली बन चुकी है। यहां फैक्ट्रियों में आदमी हर कहीं नहीं चल सकता। एक लेन निर्धारित है। सफाई के अलावा कंपनी की कैंटीन में एम.डी. से लेकर लेबर तक सब एक साथ बैठते हैं। खाने के लिए कतार में अपना नंबर आने का इंतजार करते हैं।


इसके उलट हम अपने सरकारी दफ्तरों या कारखानों की हालत देख लें ! जहां ज्यादातर लोग समय काटने और रौब जमाने जाते हैं ! सारा ध्यान मिलने वाली पगार पर ही रहता है ! वहाँ की तो छोड़ें अपने घरों की और भी एक निगाह डालें तो निराशा ही हाथ लगती है ! अधिकतर घरों में सफाई और बेतरतीबी को व्यस्थित करने की जिम्मेदारी काम पर आने वाले/वाली सहायिका पर ही डाल दी गई होती है ! जैसे घर आपका नहीं उसका हो ! जहां-तहां कबाड़ पसरा रहने देते हैं ! यही संस्कार बच्चों में भी स्थांतरित होते चले जाते हैं ! फलत हर काम के लिए इधर हम दूसरों का और उधर कूड़े के पहाड़ आकाश का मुंह जोहने लगते हैं ! 

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से  

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"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...