मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021

जूते भी OTP मांगने लगे हैं

हालात के चलते कहीं भी आना-जाना न होने के कारण, इन तक़रीबन दो सालों से जूते-मौजे की जहमत से बचने के लिए चप्पल-सैंडल से ही काम चलता रहा है ! पर जब खेल का मौका मिला तो उससे संबंधित जूतों की खोज-खबर ली गई ! एक ने तो पहचानने से ही साफ इंकार कर दिया ! दूसरे को आजमाया तो उसने छूते ही OTP मांग लिया ! किसी तरह उसको समझा-बुझा कर पैरों में फंसा तो लिया पर पार्क से लौटते-लौटते उसने आपे से बाहर हो ''सुसाइड'' ही कर डाला ! अब इतनी भी क्या नाराजगी हो गई, पता नहीं ! शायद इतने दिनों की उपेक्षा उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर गई............!

#हिन्दी_ब्लागिंग     

कोरोना की महामारी से दुनिया भर में, रहने-सहने, चलने-फिरने, उठने-बैठने,खाने-पीने यानी हर क्रिया-कलाप में बदलाव महसूसा जा रहा है ! लोग इन सब बातों के साथ-साथ अपनी सेहत को लेकर भी काफी संजीदा हो गए हैं ! इनकी तंदरुस्ती बनाए रखने के चक्कर में पार्कों को अपनी सेहत की फिक्र होने लगी है ! रात को तो इन्हें कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करना ही होता है, सुबह शाम लोग यहां आ कर पता नहीं कैसी-कैसी हरकतें कर कौन-कौन सी गैसें माहौल में घोलने लगे हैं ! फिर भी पादप परिवार इन्हें स्वस्थ रखने के लिए कटिबद्ध है ! 

अपना तो शुरू से ही नागा-बेनागा शरीर को उसके कर्मों की याद दिलाए रखने के लिए उसे ''हिलाते-डुलाते'' रखने का प्रयत्न रहा है ! और कुछ नहीं तो शाम को पार्क, नहीं तो छत और नहीं तो आंगन में ही कदम-ताल कर उसके आंकड़ों से संतुष्टि का भाव बनाए रखने की कोशिश रही है। पर जग जाहिर है कि ऐसे कामों में मन भटकाता बहुत है, तो उसको बहलाए रखने के लिए घूमने की जगहों में कुछ-कुछ अंतराल के बाद बदलाव करते रहना पड़ता है ! पर किसी भी जगह में सुस्ताने हेतु पहली ही बार में एक ही जगह को पसंदीदा बना डालता हूँ, पता नहीं क्यों ! आदत सी है !

रैकेट तो थाम लिया, पर एक तो आँखों पर पड़ती पार्क की चमकीली रौशनी और करीब बीस सालों से खेल से बनी हुई दूरी के कारण रैकेट का 9''x7'' का अंडाकार शेप का जाल ''चिरई'' को छू ही नहीं पा रहा था

ऐसे ही एक नई जगह में अपनी रुटीन पूरी कर, पसीना सूखने के इंतजार में बैठने के लिए, पार्क की ''हाई -मास्ट'' की रौशनी में अपनी एक पसंदीदा बेंच चुन ली थी। उसी के पास कुछ लोग बैडमिंटन भी खेलते रहते थे। एक दिन वहीं बैठा उनका खेल भी देख रहा था तो उन्हीं में से एक ने मुझे आवाज दी, ''आइए, बैडमिंटन खेलते हैं'' ! ना करने का कोई कारण ही नहीं था, सो जा कर रैकेट थाम लिया !

अब रैकेट तो थाम लिया, पर एक तो आँखों पर पड़ती पार्क की चमकीली रौशनी और करीब बीस सालों से खेल से बनी हुई दूरी के कारण रैकेट का 9''x7'' का अंडाकार शेप का जाल ''चिरई'' को छू ही नहीं पा रहा था ! साथ वाले भी सोच रहे होंगे, किस नौसिखिए को बुला लिया ! पर कहते हैं ना, स्विमिंग, सायकिलिंग का गुर कभी भूलता नहीं हैं ! वैसे ही यदि कोई भी खेल वर्षों खेला गया हो तो उसकी आदत शरीर में कहीं न कहीं पैबस्त हो रह ही जाती है ! खंगालना पड़ता है, सामने लाने के लिए ! सो पांच-दस मिनट बाद शरीर को भी याद आ गया होगा और खेल में लय बनने लगी ! 

अब क्या है कि हालात के चलते कहीं भी आना-जाना न होने के कारण, इन तक़रीबन दो सालों से जूते-मौजे की जहमत से बचने के लिए चप्पल-सैंडल से ही काम चलता रहा है ! पर जब खेल का मौका मिला तो उससे संबंधित जूतों की खोज-खबर ली गई ! एक ने तो पहचानने से ही साफ इंकार कर दिया ! दूसरे को आजमाया तो उसने छूते ही OTP मांग लिया ! किसी तरह उसको समझा-बुझा कर पैरों में फंसा तो लिया पर पार्क से लौटते-लौटते उसने आपे से बाहर हो ''सुसाइड'' ही कर डाला ! अब इतनी भी क्या नाराजगी हो गई, पता नहीं ! शायद इतने दिनों की उपेक्षा उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर गई !

हमारे ऋषि-मुनियों-ज्ञानियों ने चीजों की कद्र करने के लिए जो समझाया है कि कण-कण में भगवान होता है, उसका सीधा सा एक अर्थ यह भी है कि हर चीज की अपनी महत्ता है ! एक तरह से उनमें भी जान होती है, जान के होने का मतलब यह नहीं कि उसका सांस लेना आवश्यक हो ! उसकी अपनी उपादेयता होती है ! कोई भी चीज प्रभु द्वारा निष्प्रयोजन नहीं बनाई गई है ! इस घटे क्रिया-कलाप से भी यह बात तो सिद्ध हो ही जाती है। इसलिए जीवन में किसी की भी उपेक्षा ना करें ! जहां तक हो अपने आस-पास के हर जीव-निर्जीव का ख्याल रखें ! जरुरत और सक्षमतानुसार सभी की सहायता करें ! जहां तक हो सके दूसरों को क्षमा करने की कोशिश करें ! 

22 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धन्यवाद, सुशील जी

Kadam Sharma ने कहा…

बढिया व्यंग्य

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सार्थक लेखन...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
यह सच्ची घटना है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रसन्नवदन जी
ब्लॉग पर सदा स्वागत है,आपका

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२८-१०-२०२१) को
'एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ'(चर्चा अंक-४२३०)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार

जिज्ञासा सिंह ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जिज्ञासा सिंह ने कहा…

आपके इस लेख से कई संदेश मिलते हैं, हल्के फुल्के मिजाज़ में गंभीर लेखन ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
हार्दिक आभार

मन की वीणा ने कहा…

बहुत ही सुंदर लेख है गगन जी, सार्थक दृष्टि कोण, सुंदर विवेचना।
नियोजित सृजन।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
सदा स्वागत है, आपका

MANOJ KAYAL ने कहा…

सुन्दर लेख

Sudha Devrani ने कहा…

लगभग दो साल से बन्द जूते अब आलसी हो गये है हमारी ही तरह ....चलो रुटीन शुरु हो रहा है पार्क में चहल-पहल भी है....।
सुंदर एवं सार्थक लेख।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धन्यवाद, मनोज जी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
आरामतलब हो गए हैं ज्यादा जोर जबरदस्ती की तो पैरों पर गुस्सा उतारेंगे 😃

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुंदर लेखन... सही बात हर चीज का अपना महत्व होता है। उसकी कद्र करेंगे तो वह हमारी कद्र करेगा।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
हार्दिक आभार! जरा सी बात समझ ली जाए तो अधिकांश मसले यूंही सुलझ जाएं

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर आलेख आप का, अच्छी विवेचना, सरल और सहज भाव से गंभीर बातें समझाई गईं। जय श्री राधे श्याम।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुरेन्द्र जी
आपका हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

तुलसी जी
स्वागत है

ABHISHEK SHORI ने कहा…

बहुत ही शानदार लेख,
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