बुधवार, 26 मई 2021

चैनलिया घालमेल

देश में पहला प्राइवेट टीवी न्यूज चैनल ला खबरों को रोचक बनाने का श्रेय पूरी तौर से जाता है प्रणय रॉय को ! यही वो शख्स है जिसने भारत में होने वाले चुनावों और उनके परिणामों को टीवी पर सबसे पहले लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई। अपार सफलता पाने के बाद इन्होंने 1988 में जिस NDTV नाम के अपने प्रोडक्शन हाउस की स्थापना की थी, वह अब एक बड़े मीडिया घराने में बदल गया है और इतना ताकतवर हो चुका है कि उसके उद्घोषक या संचालक बिना किसी हिचक या संकोच के सरकार, उसके सदस्यों, उसके वरिष्ठ प्रवक्ताओं की सरे-आम, दिन-रात छीछालेदर करने से बाज नहीं आते ! ऐसा क्यूँ ..................!

#हिन्दी_ब्लागिंग  

भारत में टीवी का उद्भव, प्रयोगात्मक तौर पर ''टेलीविजन इंडिया'' के नाम से 1959 के सितम्बर महीने की 15 तारीख को हुआ था ! जिसे 1975 में ''दूरदर्शन'' का नाम दिया गया। बेहतरीन गुणवत्ता, जबरदस्त लोकप्रियता, लोगों के प्रेम व उत्सुकता के बावजूद इसका सही उपयोग नहीं हो पाया। कारण ! वही सरकारी नियंत्रण, लाल फीताशाही, अदूरदर्शी सरकारी हाकिम, बंधा-बंधाया रवैया और अनगिनत बदिशें ! जिन्होंने कभी इसे उबरने ही नहीं दिया ! इसीलिए दूरदर्शन को देश भर के शहरों तक पहुँचने और रंगीन होने में 21 साल लग गए ! फिर भी वह जैसा भी था, अच्छा था। सदा सरकारी नियंत्रण में रहने के बावजूद उसने विरोधी दलों और उनके नेताओं पर अनर्गल कुछ नहीं कहा। जो भी टिपण्णी होती थी, सब मर्यादित। भाषा का संयम सदा बरकरार। पर फिर एक सुनामी आई तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ! जिसके तहत तरह-तरह के चैनल उग आए ! जिन्होंने अपना अस्तित्व बनाए व बचाए रखने के लिए या अपने पर हुए अहसानों का बदला चुकाने के लिए किसी ना किसी छाते के नीचे शरण ले ली ! फिर ना कोई मर्यादा रही ! ना किसी का सम्मान ! ना हीं कोई गरिमा ! 

दूरदर्शन के समय में ही एक शख्स ने इस विधा की असीमित ताकत, क्षमता, पहुंच व सम्मोहिनी शक्ति को पहचाना और उसे एक अलग दिशा दे डाली। जिसकी बदौलत देश में पहले प्राइवेट टीवी न्यूज चैनल का पदार्पण हुआ। इसका श्रेय पूरी तौर से जाता है प्रणय रॉय को जिन्होंने दूरदर्शन की एक ही शैली-पद्यति-ढाँचे में ढली, दूरदर्शन की खबरों से बाहर निकल कर उन्हें रोचक बना ''वर्ल्ड दिस वीक'' और ''न्यूज टुनाइट'' के नाम से पेश करना शुरू किया। कहना ना होगा कि इस प्रयोग को दर्शकों ने हाथों-हाथ लिया। यही वो शख्स है जिसने भारत में होने वाले चुनावों और उनके परिणामों को टीवी पर सबसे पहले तथ्यों से परिपूर्ण, रोचक और लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई। अपार सफलता पाने के बाद इन्होंने 1988 में जिस NDTV नाम के अपने प्रोडक्शन हाउस की स्थापना की थी, वह अब एक बड़े मीडिया हाउस में बदल चुका है और इतना ताकतवर हो चुका है कि उसके उद्घोषक या संचालक बिना किसी हिचक के सरकार, उसके सदस्यों, उसके वरिष्ठ प्रवक्ताओं की सरे-आम, दिन-रात छीछालेदर करने से बाज नहीं आते ! ऐसा कैसे और क्यूँ हो गया !

जाहिर है यह सब बिना किसी के संरक्षण के कतई संभव नहीं है ! इसके लिए जरा पीछे मुड़ कर देखने से ही सब साफ़ हो जाता है ! प्रणय रॉय की तत्कालीन सरकार से बहुत घनिष्टता थी। इसीलिए NDTV की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री के निवास से हुई थी और उसने अपना 25वां जन्मदिन राष्ट्रपति भवन में मनाया था ! इसी से प्रणय रॉय की पहुंच, उनकी साख, उनके दबदबे का अंदाजा लगाया जा सकता है। लाजिमी है कि जिसकी बदौलत इतनी इज्जत-शोहरत-कामयाबी-दौलत मिली हो उसका वफादार रहा जाए ! और यह वफादारी यह मीडिया हॉउस आँख बंद कर निभा रहा है !

यदि एक नजर इससे जुड़े लोगों पर डाल ली जाए तो बात और भी साफ़ हो जाती है ! शुरू से ही देखें तो प्रणय रॉय का विवाह, CPI(M) के पूर्व प्रमुख प्रकाश कारत की पत्नी वृंदा कारत की बहन राधिका रॉय के साथ हुआ है।  

प्रणय रॉय, अरुंधति रॉय के चचेरे भाई (cousin) हैं। प्रणय के बंगाली पिता ने क्रिश्चियन धर्म अपना कर एक आयरिश महिला से विवाह किया था और एक ब्रिटिश कंपनी में ही कार्यरत थे। 

NDTV में कार्यरत बरखा दत्त ने जम्मू-कश्मीर की पीडीपी पार्टी के सदस्य हसीब अहमद द्राबू के साथ दूसरा निकाह किया है जबकि उनकी पहली शादी भी कश्मीर के ही एक युवक मीर से हुई थी। 

NDTV की निधि राजदान जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला की बहुत ख़ास दोस्त हैं। 

NDTV की ही सोनिया सिंह की शादी, आरपीएन सिंह, जो कांग्रेस से जुड़े हैं और यूपीए के मंत्रिमंडल के सदस्य भी रह चुके हैं, के साथ हुई है !
 
राजदीप सरदेसाई, जो पहले NDTV में हुआ करते थे, का विवाह सागरिका घोष के साथ सम्पन्न हुआ है, जो पहले CNN में कार्यरत थीं ! ये वही सागरिका घोष हैं जिनके पिता भास्कर घोष को दूरदर्शन में कांग्रेस की सरकार द्वारा डायटेक्टर जनरल का पद दिया गया था ! जिन पर बाद में NDTV को आर्थिक लाभ पहुंचाने का इल्जाम भी लगा था ! जो उनके दामाद के मालिक की कंपनी थी !

NDTV ने उन विष्णु सोम को अपने यहां एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी, जिनके पिता हिमाचल सोम को कांग्रेस सरकार ने इटली का राजदूत बनाया था और जिनकी माताश्री रेबा सोम ने नेहरूजी और कांग्रेस की विरदावली में अनेक पुस्तकें लिख डाली थीं। 

इन सब के देखने-समझने के बाद NDTV  की कार्यप्रणाली या उसके उद्देश्य या उसकी विचारधारा के बारे में कुछ कहने-सुनने की जरुरत रह जाती है क्या  ? 

21 टिप्‍पणियां:

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सभी मीडिया हाउसेस के यही हाल हैं। जी, रिपब्लिक और इंडिया टीवी के अपने अपने आका हैं। सभी अपने अपने एजेंडाओं के हिसाब से खबर परोसते हैं। आम नागरिक तो बस यह देखना होगा कि कौन सा चैनल गलत या फर्जी खबरे फैला रहा है। उन चैनल्स को इंगित करने की जरूरत है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
सहमत!कुछ प्रमुखों का "बायोडेटा" पढने की कोशिश रहगी

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

और ये दूसरो को गोदी मीडिया बोलते है जिनकी शुरुआत ही गोद में बैठकर हुई थी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
अपने खटिए के नीचे कोई सोटी नहीं फेरता! अब बेशर्मी या निर्लज्जता भी शरमा कर किनारे हो जाती हैं

Jyoti Dehliwal ने कहा…

आज सभी चैनल का यही हाल है। सब चोर चोर मौसेरे भाई है। सुंदर प्रस्तुति, गगन भाई।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
यह सही है कि अस्तित्व बनाए रखने के लिए किसी ना किसी आसरे की जरूरत है पर कुछ तो लिहाज, मर्यादा, शिष्टाचार तो जरूर बचाए रखना चाहिए ! चाहे निष्ठा किसी पर भी हो

MANOJ KAYAL ने कहा…

चुनौती यह बहुत बड़ी हैं

Kadam Sharma ने कहा…

Poora giroh hi hai

SANDEEP KUMAR SHARMA ने कहा…

ये हाल अब अमूमन अधिकांश का है, मैं तो कुल मिलाकर इतना ही जानता हूं कि मीडिया को निष्पक्ष होना चाहिए लेकिन वो इस दौर में नहीं रहा, विवादों में रहा और आरोप प्रत्यारोप झेलता रहा। गहन आलेख है आपका।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

गगन जी आंख खोलने वाली जानकारी दी आपने, ñसार्थक विषय पर सार्थक लेख लिखने के लिए आपको शुभकामनाएं ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
एक तरफा एजेंडा है इनका

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संदीप जी
निष्पक्षता जरूरी है होनी भी चाहिए पर सुरसा रूपी जरूरतें कैसे पूरी होंगी! जो भी सत्ता में हो कमोबेश उसका ख्याल रखना ही पडेगा।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी

इनकी अपनी मजबूरियां-विवशताऐं हैं। पर कुछ तो मर्यादा, लिहाज जरूरी होना ही चाहिए

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनोज जी
सही है। पर पार तो पाना ही पडेगा

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28 -5-21) को "शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" ( चर्चा - 4079) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा

Manisha Goswami ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने सर! एक कहवत है-
"अन्धों में काना राजा" वही स्थिति है वर्तमान में!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनीषा जी
हार्दिक आभार

मन की वीणा ने कहा…

बहुत शानदार पोस्ट है, खरी खरी बात सुनाई गगन जी
आपके लेख सार्थक सामायिक और विचारोत्तेजक होते हैं।
साधुवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपने तो कच्चा चिटठा खोल दिया कौंग्रेस का ...
इन सब ने बहुत ग़दर मक्स्चाया है देश में ... अब समय इनको पाठ पढ़ाने का है ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
लगता है इसे पत्रकार नहीं कोई गिरोह चला रहा है

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