मंदिर में चढ़ावा तो प्रतिबंधित है, तो लगता है कि शायद आय की आपूर्ति के लिए संबंधित लोगों का सारा ध्यान मंदिर के बाहर और अंदर की दुकानों की बिक्री पर केंद्रित हो गया है ! नहीं तो चारों ओर फैलती गंदगी पर ध्यान न जाए ये तो असंभव सा ही है। इसके साथ ही एक और विडंबना भी दिखी कि दर्शनार्थ आने वाले भगत और श्रद्धालुगण सिर्फ किसी तरह कूड़े-पानी-गंदगी से बचते हुए अंदर जाने की जुगत में ही रहते हैं इस परेशानी को नजरंदाज करते हुए ! कभी-कभी मन में आता है कि क्या हमारे धर्मस्थलों की नियति ही है गंदा रहना ...............?
#हिन्दी_ब्लागिंग
देहरादून दूसरा दिन ! जैसा की तय किया गया था, सुबह साढ़े नौ बजते-बजते शहर भ्रमण का दौर शुरू हो गया। सबसे पहले मसूरी रोड पर, घंटाघर से करीब बारह कि.मी. दूर. कुठाल गेट के पास सड़क के किनारे स्थित #प्रकाशेश्वर_महादेव_मंदिर पर रुकना हुआ। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। हर रोज मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। स्फटिक का शिवलिंग यहां का मुख्य आकर्षण है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां किसी भी तरह के चढ़ावे या दान की मनाही है। लाल और नारंगी रंगों से सजे इस मंदिर की छत पर शिव जी के त्रिशूल सजे हुए हैं। मंदिर की दीवारों को लाल और नारंगी रंग में चित्रित किया गया है। आने वाले श्रद्धालुओं को दिन भर खीर का प्रसाद मिलता है। किसी शिव भक्त के द्वारा निर्मित इस मंदिर का इतिहास फिलहाल अज्ञात है। हालांकि मुख्य द्वार पर बंगला भाषा में सूचना पट पर एक "फरमान" जरूर लिखा हुआ है जिसमें किसी भी तरह के चढावे की मनाही का निर्देश दिया गया है।
मंदिर के अंदर किसी पूजा सामग्री या मिठाई वगैरह की दूकान नहीं है। अलबत्ता मोती-रत्नों-रुद्राक्ष-माला वगैरह की बिक्री के लिए खासी बड़ी जगह घेर कर बिक्री की जाती है। उसी तरह मंदिर के प्रवेश द्वार के साथ ही खाने-पीने की दूकान खोल दी गयी है। वहीं एक बात और महसूस हुई कि मंदिर से जुड़े अधिकांश लोग तनावग्रस्त से लगे बाहर की दूकान पर उपस्थित सज्जन तो जैसे ग्राहकों पर एहसान सा कर रहे थे। सच कहूं तो किसी धर्मस्थल के अंदर जाते समय जो एक श्रद्धा की भावना उपजती उसका यहां तनिक अभाव सा लगा !
इस प्रसिद्ध मंदिर को देखने की लालसा लिए जैसे ही मंदिर के मुख्य द्वार के सामने उतरे वैसे ही मन खिन्नता से भर उठा। मुख्य द्वार के सामने ही दो बड़े-बड़े ऊपर तक कूड़े से भरे कूड़ा पात्र रखे हुए थे ! जिनके पूरे भरे होने की वजह से कूड़ा निकल-निकल कर मंदिर के अंदर-बाहर गंदगी फैला रहा था। मंदिर के अंदर भी एक कूड़ादान रखा हुआ था ! ऊपर से रही-सही कसर वहां घूमते बंदर पूरी कर रहे थे। दरवाजे पर ही एक नल भी लगा हुआ था जिसकी वजह से जूते उतारने की जगह भी गीली थी। कूड़ा और पानी दोनों मिल कर गंदगी का कहर ढा रहे थे। जबकि मंदिर के सामने जहां गाड़ियां खड़ी होती हैं वहां अफरात जगह है। वैसे भी मंदिर की काफी बड़ी जगह है, कूड़ेदान कहीं और भी बिना परेशानी रखे जा सकते हैं।
उस समय तो संकोचवश किसी से कुछ नहीं कहा पर लौटते समय रहा ना गया ! श्रीमती जी की भी इच्छा थी एक बार और दर्शन करने की ! सो इस बार पुजारी जी से अति नम्रता से अपने मन की बात कही ! पहले तो वे मेरा मुंह ही देखते रह गए ! फिर उन्होंने सारा इल्जाम बंदरों पर थोप दिया ! जिस पर मैंने कहा कि चूँकि कूड़ादान ठीक दरवाजे पर मंदिर के सामने है तो बंदर तो आऐंगे ही और वे यहीं गंदगी फैलाएंगे, इसमें जानवरो का क्या कसूर है ? कूड़ादान को ही कहीं और रखा जाए तो ही बात बनेगी। मेरी बात कुछ समझ में आने पर उन्होंने मुझे प्रबंधक से बात करने को कहा। ये महोदय भी कुछ असमंजस में घिर गए ! बोले इस ओर ध्यान ही नहीं गया ! फिर आपकी बात पर जरूर कार्यवाही करेंगे, ये आश्वासन जरूर दिया।
ये सब देख यही लगता है कि मंदिर में चढ़ावा तो प्रतिबंधित है, तो आय की आपूर्ति के लिए संबंधित लोगों का सारा ध्यान मंदिर के बाहर और अंदर की दुकानों की बिक्री पर केंद्रित हो गया है ! नहीं तो इतनी बड़ी बात पर ध्यान न जाए ये तो असंभव सा ही है। इसके साथ ही एक और विडंबना भी दिखी कि दर्शनार्थ आने वाले भगत और श्रद्धालुगण सिर्फ किसी तरह कूड़े-पानी-गंदगी से बचते हुए अंदर जाने की जुगत में ही रहते हैं इस परेशानी को नजरंदाज करते हुए ! कभी-कभी मन में आता है कि क्या हमारे धर्मस्थलों की नियति ही है गंदा रहना ?
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-11-2019) को "हिस्सा हिन्दुस्तान का, सिंध और पंजाब" (चर्चा अंक- 3522) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, लेख सम्मिलित करने का हार्दिक आभार
बहुत अच्छा लेख। यदि भक्तगण मिलकर आवाज उठाएँ तो बात बन सके शायद।
सहमत मीना जी, पर अधिकांश मंदिरों का यही हाल देखने को मिलता है यही दुखद विषय है
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