सोमवार, 16 सितंबर 2019

बायोमिमीक्री ! यह क्या चीज है.?

मानव-हितार्थ आविष्कारों के दौरान बहुतेरी बार ऐसा हुआ कि इस तरह के उपक्रमों में कई-कई तरह की अड़चनें व बाधाएं भी आ खड़ी होने लगीं ! उनको दूर करने के प्रयासों में वैज्ञानिकों ने पाया कि उनकी समस्या का हल कुदरत ने उससे मिलती-जुलती कई चीजों के तत्व, अवयव या नमूनों में पहले से दे रखा है ! इसके अलावा वे मानव-निर्मित यंत्रों की तुलना में हलकी, लचीली और मज़बूत तो होती ही हैं, उनसे कहीं भी, किसी तरह का प्रदूषण भी नहीं होता ! उनको अमल में लाया गया और परिणाम यह रहा कि आज के बेहतरीन आविष्कारों में से बहुत-से ऐसे हैं जो कुदरत में पाए जानेवाले जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों की नकल करके ही बनाए जा सके हैं...................!

#हिन्दी_ब्लागिंग   
मिमिक्री,  जिसका सीधा-सरल अर्थ होता है किसी की नक़ल, स्वांग या अनुकरण करना। यानी नामी-गिरामी नेताओ, अभिनेताओं, गायकों, जीव-जंतुओं इत्यादि की आवाज, उनके हाव-भाव, चाल-ढाल की नक़ल ! शायद ही कोई होगा जिसने कभी किसी की, किसी के द्वारा मिमिक्री ना देखी सुनी हो ! कुछ लोग तो इसी विधा के चलते नामी ''कलाकार'' बन नाम और शोहरत बटोरते चले गए। पर आज यहां एक दूसरी तरह की मिमिक्री की चर्चा हो रही है और वह है बायोमिमीक्री ! जिसको हिंदीं में  ‘‘जैव अनुकृतिकरण’’ कहा जाता है। यानी कुदरत की रचनाओं की वह नक़ल जो मानव निर्मित यंत्रों को सुधारने-बनाने में उपयोगी सिद्ध होती है। इसको बायोमिमेटिक्स भी कहा जाता है।    


क्या होती है बायोमिमिक्री या बायोमिमेटिक्स ! वैसे तो यह एक लंबा-चौड़ा विषय है, मगर  संक्षेप में देखें तो जब समय के साथ-साथ मानव हित और उसके उपयोग के लिए तरह-तरह के आविष्कार जीवन के हर क्षेत्र में होने लगे, तब बहुतेरी बार ऐसा हुआ कि इस तरह के उपक्रमों में कई-कई तरह की अड़चनें व बाधाएं भी आ खड़ी होने लगीं ! उनको दूर करने के प्रयासों में वैज्ञानिकों ने पाया कि उनकी समस्या का हल कुदरत ने उससे मिलती-जुलती कई चीजों के तत्व, अवयव या नमूनों में पहले से दे रखा है ! इसके अलावा वे मानव-निर्मित यंत्रों की तुलना में हलकी, लचीली और मज़बूत तो होती ही हैं, उनसे कहीं भी, किसी तरह का प्रदूषण भी नहीं होता।उदाहरण के लिए एक हड्डी और उतने ही वज़न के स्टील की तुलना में हड्डी ज़्यादा मज़बूत होती है ! देखा जाए तो इस तरह की नक़ल की शुरुआत तब ही हो गयी थी जब लिओनार्दो दा विंची ने पक्षियों की उड़ान को देख उड़ने की कोशिश की थी ! हालांकि वह सफल नहीं हुआ पर उसकी कल्पना आगे चल कर जरूर साकार हो गयी। आज इस विज्ञान का मकसद प्रकृति में पाई जानेवाली चीज़ों की नकल करके अपने यंत्रों में सुधार के साथ-साथ नयी मशीनों का आविष्कार करना भी है। वैसे भी आज के बेहतरीन आविष्कारों में से बहुत-से ऐसे हैं जो कुदरत में पाए जानेवाले जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों की नकल करके किए गए हैं।
लिओनार्दो का सपना 
वेल्क्रो

छिपकली के पंजों की खासियत 
मधुमक्खी की तकनीक 
ऐसे अनगिनत उदहारण हैं जो बताते हैं कि कैसे इस विधा की सहायता से अनगिनत बाधाएं दूर कर यंत्रों को सुगम और उपयोगी बनाया गया है ! आज की सबसे लोकप्रिय, सुलभ, छोटी सी पर बेहद जरुरी ''वेल्क्रो'' नामक तकनीक जो वस्त्रों, बैगों, सूटकेसों इत्यादि के दो हिस्सों को जोड़ने या बंद करने के काम आती है, ख़ास कर जिसका प्रयोग आजकल जूतों के फीतों की जगह बेहद आम है, उसका विचार प्रकृति के एक जंगली, कंटीले फल को देख कर ही आया ! शुरू में जब जापान की बुलेट ट्रेन किसी सुरंग से निकलती थी तो उसकी गति और वातावरण बदलने से एक जोर की धमाकेनुमा आवाज होती थी ! वैज्ञानिको ने खोज के दौरान पाया कि किंगफिशर पक्षी चाहे कितनी भी जोर से पानी में डुबकी क्यों ना लगाए पानी में ज़रा सी भी आवाज नहीं होती ! उन्होंने ट्रेन के इंजिन के अगले भाग को पक्षी के सर और चोंच की शक्ल में ढाला तो आवाज तो कम हुई ही ऊर्जा की भी बचत होने लगी। 
किंग फिशर और रेल इंजन 
गोग की तरह की चढ़ाई 
शार्क की चमड़ी 
रेगिस्तान में पानी का बचाव 
कठफोड़वे को प्रकृति के देन 
छिपकली या गोह के पंजों की संरचना आने वाले समय में इंसान को कांच की दिवार पर चढ़ने लायक बना देगी। दीमकों की बांबी जो एक अद्भुत संरचना है जिसके बाहर का तापमान कुछ भी हो भीतर एक सा ही रहता है, भविष्य में ऊर्जा और पर्यावरण की रक्षा का कारण  होगी। अफ्रिका के मरुस्थल के कीड़े से पानी की बचत सीखने की कोशिश हो रही है। दुनिया की बेहतरीन तैराक शार्क है। जिसका राज उसकी चमड़ी में हैं ! उसका अध्ययन पानी के जहाज़ों, पनडुब्बियों, नौकाओं की गति सुधारने के काम आएगा। कठफोड़वे को ही लें जिसके पेड़ों में छेद करने के एक सेकेण्ड में तक़रीबन 20-22 प्रहार भी उसकी गरदन में बने प्राकृतिक ''शॉक एब्जॉर्बर'' के कारण उसके शरीर को क्षति नहीं पहुँचने देते ! मक्खियों के पर, जुगनुओं की रौशनी, बया का घोंसला, अगर इंसान मकड़ी की तरह का जाल, जो मछली पकड़ने वाले जाल जितना बड़ा हो, बना सके तो उससे एक हवाई जहाज़ को भी आगे बढ़ने से रोका जा सकता है ! क्या-क्या गिना-गिनाया जाए ! कुदरत ऐसी हजारों अद्भुत की संरचनाओं से भरी पड़ी है। निकट भविष्य में वे सब किसी ना किसी रूप में इंसानों के काम आ सकती हैं।  

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-09-2019) को     "मोदी का अवतार"    (चर्चा अंक- 3461) (चर्चा अंक- 3454)  पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी हार्दिक आभार

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