शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मातृभूमि ! ऐसा क्यों कहा जाता है ?

मातृभूमि ! ज्यादातर या सरल भाषा में कहा जाए तो जो इंसान जहां जन्म लेता है, वही उसकी मातृभूमि कहलाती है। पर आज दुनिया सिमट सी गयी है। रोजी-रोटी, काम-धंधे या बेहतर भविष्य की चाहत में लोग विदेश आने-जाने लगे हैं। तो ऐसे लोगों की संतान का जन्म यदि दूसरे देश में होता है तो उसकी मातृभूमि कौन सी कहलाएगी ? उसकी वफादारी किस देश के साथ होगी ? जहां उसने जन्म लिया है या फिर उस देश के प्रति जिसको उसने देखा ही नहीं है.......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
मदर लैंड यानी मातृभूमि ! ज्यादातर या सरल भाषा में कहा जाए तो जो इंसान जहां जन्म लेता है, वही उसकी मातृभूमि कहलाती है। पर आज समय बदल चुका है, हमारी सनातन विचारधारा वसुधैव कुटुम्बकम् आज चरितार्थ होने लगी है। दुनिया सिमट सी गयी है। रोजी-रोटी, काम-धंधे या बेहतर भविष्य की चाहत में लोग विदेश आने-जाने लगे हैं। तो ऐसे लोगों की संतान का जन्म यदि दूसरे देश में होता है तो उसकी मातृभूमि कौन सी कहलाएगी ? उसकी वफादारी किस देश के साथ होगी ? जहां उसने जन्म लिया है या फिर उस देश के प्रति जिसको उसने देखा ही नहीं है ! देखा  जाए तो ऐसे प्रवासी लोगों  की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है क्योंकि इनके दो जगह से भावनात्मक संबंध बने होते हैं, पहला अपनी मातृभूमि से जहां उनका जन्म हुआ होता है दूसरा उनकी कर्मभूमि से जो उनको पालती-पोसती है। ऐसे में उनका अपने बच्चों के प्रति फर्ज बनता है कि उन्हें अपने देश, जहां उनकी जड़ें हैं, उसके बारे में भी उन्हें जरूर बताएं ! अपने संस्कार, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपना इतिहास, अपने गौरव ग्रंथों से उनका परिचय करवाएं। क्योंकि जो रि‍श्ता एक माँ का अपनी संतान से होता है लगभग वही अटूट रि‍श्ता हर इंसान का अपनी मि‍ट्टी यानी अपनी मातृभूमि‍ से होता है और हमारी तो सनातन परंपरा रही है अपनी धरती को माँ मानने की। इसीलिए चाहे कोई अपने देश को छोड़ कितने समय के लिए भी, कहीं भी चला जाए, यह रि‍श्ता उस इंसान की हर बात में, उसके हर ख्याल में, उसके व्‍यवहार में सदा झलकता रहता है।  

"जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" अर्थात् जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है । हमारे वेद पुराण तथा धर्मग्रंथ सदियों से दोनों की महिमा का बखान करते रहे हैं । जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा उनका लालन-पालन करती है, अनेक कष्टों को सहते हुए भी बालक की खुशी के लिए अपने सुखों का परित्याग करने में भी नहीं चूकती उसी प्रकार जन्मभूमि जन्मदात्री की भाँति ही अनाज उत्पन्न करती है । उसी की नियामतों से हमारा गुजर-बसर होता है। उसी का दिया हुआ अन्न-जल-फल-फूल-जड़ी-बूटियां ग्रहण कर हम स्वस्थ व प्रसन्न रह पाते हैं। जिस व्यक्ति का जन्म जहाँ पर होता है उसे उस जगह, उस परिवेश से एक अनूठा लगाव हो जाता है। क्योंकि वह उस भूमि की गोद में ही अन्न-फल खा कर पला-बढ़ा-पोषित हुआ होता है, जिससे वह धरती उसकी माँ के समान हो जाती है, मातृभूमि हो जाती है। ऋणी हो जाता है वह उस जगह का ! जिस तरह माँ के प्यार, ममता व वात्सल्य की कोई तुलना नहीं है उसी प्रकार जन्मभूमि की महत्ता सर्वोपरि है। यही कारण है कि समय आने पर सदा ही शहीदों ने अपने परिवार, सगे-संबंधियों के बदले देश को तरजीह दी। मातृभूमि पर यदि कभी भी विपदा पड़ी है तो उसके बच्चों ने बिना एक पल गवाए अपनी क़ुरबानी दी है। 

हमारी मातृभूमि भारत है और हमें इससे बहुत प्यार है। प्रकृति ने भी दिल खोल कर इसे अपनी सौगातें बख्शी हैं। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश या जगह होगी जहां कायनात के, सागर-नदी-पहाड़-जंगल-मरुस्थल, इतने विभिन्न रूप देखने को मिलते होंगे। यह ऋषि-मुनियों की धरती कहलाती है। जिन्होंने सारी दुनिया को गणित, खगोल, चिकित्सा, योग, ज्योतिष, विज्ञान के साथ-साथ कला, संस्कृति और साहित्य का भी भरपूर ज्ञान प्रदान किया। समस्त मानव जाति को अपना बंधु मानने के साथ ही पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं से भी प्रेम करने का पाठ पढ़ाया। उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों में मानव जाति के कल्याण हेतु दिए गए दिशा-निर्देश आज भी सामयिक हैं। तभी तो हमारे देश को जगद्गुरु के रूप में जाना और माना जाता रहा है।

सर्वधर्म समभाव वाली हमारी इस पुण्य धरा पर देवावतारों के साथ-साथ अनगिनत महापुरूषों का भी जन्म हुआ है। जिन्होंने मानव हित हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर कर जगत का मार्गदर्शन किया। उन्हीं लोगों के आशीर्वाद, निर्देशन व मार्गदर्शन का फल है कि सैकड़ों सालों तक आक्रांताओं के हमले, लूट-खसोट, गुलामी के दंश सहने के बावजूद आज भी दुनिया में हमारी साख है, एक पहचान है। ढेरों कमियों, समस्याओं, आपदाओं आपसी वैमनस्यों के बावजूद हमने आगे बढ़ना नहीं छोड़ा है। कहीं कुछ चूक भले ही हो जाती हो, कोई कमी रह जाती हो जो की स्वाभाविक भी है, क्योंकि करीब डेढ़ अरब की आबादी को संभालना उनकी जरूरतें पूरी करना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी चाहे आकाश हो, पाताल हो, दुर्गम हिमाच्छादित प्रदेश हो, आत्म निर्भरता की बात हो, हर बाधा को पार करते हुए हमने हर क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन्हीं उपलब्धियों के कारण हम गर्व से कह सकते हैं "हमारा भारत महान" ! 

5 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, हार्दिक धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी, स्नेह बना रहे!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, यह इश्क़ नहीं आसान - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी,हार्दिक आभार

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