अक्सर लोगों को कहते पाया जाता है कि उम्र तो सिर्फ एक नंबर है, उसके बढ़ने से क्या होता है; दिल तो जवान है ! बात कुछ हद तक ठीक हो सकती है, पर सच्चाई यह है कि दिल भले ही कितना भी जोश, उमंग, उत्साह से भरा रहे पर शरीर की मशीनरी एक उम्र के बाद धीमी पड़नी शुरु हो जाती है। दिमाग और अंग-प्रत्यंग का संबंध कमजोर होना शुरू हो जाता है। दिमाग के द्वारा भेजे गए संदेश धीमे पड़ने लगते हैं। जिससे ताल-मेल कम होने की वजह से कुछ का कुछ हो जाता है जो दुर्घटनाओं का वॉयस बन जाता है.........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
इंसान जैसे ही होश संभालता है उसका शरीर अपने दिलो-दिमाग के आदेशों का एक आज्ञाकारी सेवक की तरह उनके हर आदेश का तुरंत और सही तरीके से पालन करने लगता है। पर उम्र के साथ-साथ यह आज्ञाकारिता धीरे-धीरे काम होने लगती है। दिमाग और अंग-प्रत्यंग का संबंध कमजोर होना शुरू हो जाता है। दिमाग के द्वारा भेजे गए संदेश धीमे पड़ने लगते हैं। जिससे ताल-मेल कम होने की वजह से कुछ का कुछ हो जाता है जो दुर्घटनाओं का वॉयस बन जाता है। इसी बात पर दिल्ली के प्रसिद्ध स्नायु-विशेषज्ञ, डॉक्टर रमेश चंद्र पराशर जी ने अपने वर्षों के शोध से मिले अनुभव से पचपन पार के लोगों के फायदे के लिए कुछ सावधानियां और हिदायतों की एक सूचि तैयार की है, जो निम्नाकिंत है -
#हिन्दी_ब्लागिंग
इंसान जैसे ही होश संभालता है उसका शरीर अपने दिलो-दिमाग के आदेशों का एक आज्ञाकारी सेवक की तरह उनके हर आदेश का तुरंत और सही तरीके से पालन करने लगता है। पर उम्र के साथ-साथ यह आज्ञाकारिता धीरे-धीरे काम होने लगती है। दिमाग और अंग-प्रत्यंग का संबंध कमजोर होना शुरू हो जाता है। दिमाग के द्वारा भेजे गए संदेश धीमे पड़ने लगते हैं। जिससे ताल-मेल कम होने की वजह से कुछ का कुछ हो जाता है जो दुर्घटनाओं का वॉयस बन जाता है। इसी बात पर दिल्ली के प्रसिद्ध स्नायु-विशेषज्ञ, डॉक्टर रमेश चंद्र पराशर जी ने अपने वर्षों के शोध से मिले अनुभव से पचपन पार के लोगों के फायदे के लिए कुछ सावधानियां और हिदायतों की एक सूचि तैयार की है, जो निम्नाकिंत है -
एक उम्र, खासकर पचपन-साठ के बाद, मन चाहे कितना भी जोशीला, उमंग व् उत्साह भरा रहे, तन उतना फ़ुर्तीला नहीं रह जाता ? शरीर ढलान पर होता है और ‘रिफ्लेक्सेज़’ कमज़ोर ! कभी कभी मन भ्रम बनाए रखता है कि ये काम तो चुटकी मे कर लूँगा, पर बहुत जल्दी एक नुक़सान के साथ सच्चाई सामने होती है !धोखा तभी होता है जब मन सोचता है "कर लूंगा" और शरीर करने से ‘चूक’ जाय ! परिणाम एक एक्सीडेंट और शारीरिक क्षति ! ये क्षति, हड्डी के फ़्रैक्चर से लेकर हेड इंज्यूरी तक हो सकती है ! कभी कभी जान लेवा भी ! इसलिये जिन्हें हमेशा हड़बड़ी मे रहने और काम करने की आदत हो, बेहतर होगा कि वे अपनी उम्र के साथ-साथ अपनी आदतें भी बदल डालें। भ्रम न पालें , सावधानी बरतें; क्योंकि अब शरीर पहले की तरह फ़ुर्तीला नहीं रह गया होता है ! छोटी सी चूक कभी-कभी बड़े नुक्सान का सबब बन जाती है। सीनियर सिटिज़न होने पर कुछ बातों का ख़याल जरूर रखा जाना चाहिये।
सुबह नींद खुलते ही तुरंत बिस्तर छोड़ खड़े न हों ! पहले बिस्तर पर कुछ मिनट बैठे रहें, शरीर को पूरी तरह चैतन्य होने दें। कोशिश करें कि बैठे बैठे ही स्लीपर-चप्पलें पैरों मे डालें या खड़े होने पर मेज़ या किसी सहारे को पकड़ कर ही चप्पलें पहने ! अकसर यही समय होता है डगमगा कर गिर जाने का !
सबसे ज़्यादा गिरने के हादसे बॉथरूम, वॉशरूम या टॉयलेट मे ही होते हैं ! घर मे अकेले रहते हों तो अतिरिक्त सावधानी बरतें, क्योंकि गिरने पर यदि उठ न सके तो दरवाज़ा तोड़कर ही आप तक सहायता पहुँच सकेगी ! वह भी तब, जब आप पड़ोसी तक सूचना पहुँचाने मे समय से कामयाब हो पाएंगे ! बाथरूम मे भी मोबाइल किसी सूखी जगह साथ रखें ताकि वक़्त ज़रूरत काम आ सके।
हमेशा ऊँचे कमोड का ही इस्तेमाल करें ! कमोड के पास संभव हो तो एक हैंडिल लगवा लें ! कमज़ोरी की स्थिति मे यह उठने-बैठने में सहायक रहता है।
हमेशा ऊँचे स्टूल पर बैठकर ही नहाएं ! बॉथरूम के फ़र्श पर रबर की मैट ज़रूर बिछा कर रखें जिससे गीले फर्श पर फिसलने से बचा जा सके। गीले हाथों से टाइल्स लगी दीवार का सहारा कभी न लें, हाथ फिसलते ही आप असंतुलित होकर गिर सकते हैं।
बॉथरूम के ठीक बाहर सूती मैट भी रखें जो गीले तलवों से पानी सोख ले ! कुछ देर उस पर खड़े होकर फिर फ़र्श पर सावधानी से पैर रखें !
अंडरगारमेंट हों या कपड़े, बाथरूम से बाहर आ कर ही पहनें। हमेशा बैठ कर ही अंडरवियर, पजामा या पैंट के पायचों मे पैर डालें, वर्ना दुर्घटना घट सकती है ? कभी-कभी जल्दीबाजी और स्मार्टनेस की बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ जाती है !
अपनी दैनिक ज़रूरत की चीज़ों को नियत जगह पर ही रखने की आदत डाल लें , जिससे उन्हें आसानी से उठाया या तलाशा जा सके ? भूलने की आदत हो तो आवश्यक चीज़ों की लिस्ट मेज़ या दीवार पर लगा लें, घर से निकलते समय एक निगाह उस पर डाल लें, आसानी रहेगी !
जो दवाएँ रोज़ाना लेनी हों उन्हें प्लास्टिक के प्लॉनर मे रखें; जिसकी डिब्बियों मे हफ़्ते भर की दवाएँ दिनवार के हिसाब से रखी जाती है, क्योंकिं अक्सर कई लोगों को भ्रम हो जाता है कि दवाएँ ले ली हैं या नहीं ! प्लॉनर मे रखने से दवा खाने मे चूक नही होगी।
सीढ़ियों से चढ़ते-उतरते समय, सक्षम होने पर भी, हमेशा रेलिंग का सहारा लें ! मॉल्स, स्टेशन वगैरह के एक्सलेटर पर ख़ासकर ! जूते-चप्पल ऐसे हों जो फिसलन से बचाते हों। सुबह-सबेरे टहलते समय ऊबड़-खाबड़ सतहों पर चलने से बचें। सड़क पार करने में जल्दीबाजी ना करें। जहां संशय हो वहां रुक कर वाहन निकल जाने के बाद ही आगे बढ़ें।
सदा ध्यान रखें कि आपका शरीर अब आपके मन का पहले जैसा "ओबीडियेंट सर्वेंट" नही रहा है …
4 टिप्पणियां:
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २१०० वीं बुलेटिन अपने ही अलग अंदाज़ में ... तो पढ़ना न भूलें ...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कुछ इधर की - कुछ उधर की : 2100 वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार !
बढ़ती उम्र के साथ यह सब समझ लेना ही कल्याण कारी है.
प्रतिभा जी, समझदारी भी है समय के साथ समझौता कर लेने में !
एक टिप्पणी भेजें