घडी का सेल बदलने के लिए टाइटन के शो रूम से काम करवा कर बिल माँगा तो वही जवाब मिला, 12 % GST लग जाएगा ! मैंने कहा तो क्या हुआ ? बोला, देख लीजिए ! मैंने कहा, देखना है, मुझे चाहिए ! तो दूसरे ग्राहकों तथा उसकी अजीब सी नज़रों का सामना करते हुए मैंने बिल लिया। यही हाल आगे दवा की दूकान पर भी हुआ , GST लग जाएगा ...जैसे टैक्स न हो कोई बला हो ! पिछले हफ्ते उत्तराखंड के एक होटल में भी ऐसा ही कुछ हुआ था ! देश में अलग-अलग जगहें, अलग-अलग लोग, अलग-अलग तरह का वातावरण, पर व्यापारिक मानसिकता सब जगह एक जैसी !
#हिन्दी_ब्लागिंग
पिछले दिनों कराधान करते समय सरकार की तरफ से बार-बार कहा गया कि आप अपनी हर खरीदी का बिल जरूर लें ! पर क्या व्यापारियों को भी ऐसा कुछ कडा निर्देश दिया गया कि आपको भी हर बिक्री का बिल काटना ही है ! क्योंकि भले ही यह कानून हो पर इस वर्ग के अधिकाँश भाग में बिल ना देना, आदत में शुमार है ! टैक्स पहले भी थे, शायद कुछ ज्यादा होंगे ! पर इधर बहुत हो-हल्ला मचा, GST को लेकर, तरह-तरह की अफवाहें उड़ीं, दोनों तरफ से उलटे-सीधे आंकड़े प्रस्तुत होते रहे ! विरोध के लिए विरोध हुआ पर "कुछेक" की आदत सुधारने का किसी ने भी कोई सुझाव नहीं दिया !
#हिन्दी_ब्लागिंग
पिछले दिनों कराधान करते समय सरकार की तरफ से बार-बार कहा गया कि आप अपनी हर खरीदी का बिल जरूर लें ! पर क्या व्यापारियों को भी ऐसा कुछ कडा निर्देश दिया गया कि आपको भी हर बिक्री का बिल काटना ही है ! क्योंकि भले ही यह कानून हो पर इस वर्ग के अधिकाँश भाग में बिल ना देना, आदत में शुमार है ! टैक्स पहले भी थे, शायद कुछ ज्यादा होंगे ! पर इधर बहुत हो-हल्ला मचा, GST को लेकर, तरह-तरह की अफवाहें उड़ीं, दोनों तरफ से उलटे-सीधे आंकड़े प्रस्तुत होते रहे ! विरोध के लिए विरोध हुआ पर "कुछेक" की आदत सुधारने का किसी ने भी कोई सुझाव नहीं दिया !
अभी कुछ दिन पहले अल्मोड़ा जाना हुआ था, ट्रेन विलंब से काठगोदाम पहुंची, रात का एक बजने को था सो बिना ज्यादा हंडराए, स्टेशन के सामने के ही एक होटल में रुकना हुआ। काउंटर पर उपस्थित व्यक्ति ने 1200/- लिए और कमरे में पहुंचा दिया, ना कोई एंट्री ना कोई रजिस्टर ! रात काफी हो चुकी थी: सो सुबह चलते समय बिल माँगा तो जवाब मिला GST लग जाएगा ! मैंने कहा, तो क्या ! बिल दो। फिर भी कुछ ना-नुकुर, झिझक पर कुछ मेरे अड़े रहने पर ही वह एंट्री कर बिल देने पर मजबूर हुआ। यह बात थी दिल्ली से करीब 300 की.मी. दूर की। अब दिल्ली की देख लीजिए। पता चला था कि चांदनी चौक के भागीरथ प्लेस में दवा वगैरह के मूल्यों में काफी फर्क है। दो दिन पहले चांदनी चौक गया इसी सिलसिले में। लगे हाथ घडी का सेल भी बदलने के लिए टाइटन के शो रूम से काम करवा कर बिल माँगा तो वही जवाब मिला, 12 % GST लग जाएगा ! मैंने कहा तो क्या हुआ ? बोला, देख लीजिए ! मैंने कहा, देखना है, मुझे चाहिए ! तो दूसरे ग्राहकों तथा उसकी अजीब सी नज़रों का सामना करते हुए मैंने बिल लिया। यही हाल दवा की दूकान पर भी हुआ !!! GST लग जाएगा जैसे टैक्स न हो कोई बला हो। वहाँ भी थोड़ी हूँ-हाँ, आना-कानी के बाद ही बिल मिला। यह तो देश के सिर्फ दो राज्यों की बानगी है, अलग-अलग जगहें, अलग-अलग लोग, अलग-अलग तरह का वातावरण, पर व्यापारिक मानसिकता एक जैसी !
सोचने की बात यह है कि ईमानदारी से टैक्स देना क्या आम आदमी का ही फर्ज है ? क्या देश सुधारने का सारा जिम्मा इसी वर्ग पर है ? क्या सबकी धौंस इसी जमात पर चलती है ? क्या डरा-धमका कर सिर्फ इन्हें ही नीबू की तरह अंतिम बूँद लेने के लिए निचोड़ा जाता रहेगा ? यह भी एक कारण है उसके सौ-पचास बचाने का। उसे लगता है कि जब हर तरह की उगाही सिर्फ उसीसे होती है तो वह क्यों नहीं जहां बचता है वहाँ से बचा ले !
क्या कभी उन CA या Tax Consultants से सवाल-जवाब किए जाते हैं जो ऐसे व्यापारियों को कानून की आडी-टेढ़ी गलियों में घुमा कर चोरी करना सिखाते हैं ? क्यों नहीं ऐसे गलत लोगों के काम रोक लगाई जाती ? क्यों नहीं कर चोरी करने वाले तिजारतदारों को किसी का भय रहता ? क्यों नहीं लाखों की पगार लेने वाले अफसर इन पर हाथ डाल पाते ? या डालना नहीं चाहते ? क्यों ?
सोचने की बात यह है कि ईमानदारी से टैक्स देना क्या आम आदमी का ही फर्ज है ? क्या देश सुधारने का सारा जिम्मा इसी वर्ग पर है ? क्या सबकी धौंस इसी जमात पर चलती है ? क्या डरा-धमका कर सिर्फ इन्हें ही नीबू की तरह अंतिम बूँद लेने के लिए निचोड़ा जाता रहेगा ? यह भी एक कारण है उसके सौ-पचास बचाने का। उसे लगता है कि जब हर तरह की उगाही सिर्फ उसीसे होती है तो वह क्यों नहीं जहां बचता है वहाँ से बचा ले !
क्या कभी उन CA या Tax Consultants से सवाल-जवाब किए जाते हैं जो ऐसे व्यापारियों को कानून की आडी-टेढ़ी गलियों में घुमा कर चोरी करना सिखाते हैं ? क्यों नहीं ऐसे गलत लोगों के काम रोक लगाई जाती ? क्यों नहीं कर चोरी करने वाले तिजारतदारों को किसी का भय रहता ? क्यों नहीं लाखों की पगार लेने वाले अफसर इन पर हाथ डाल पाते ? या डालना नहीं चाहते ? क्यों ?
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-12-2017) को "पढ़े-लिखे मुहताज़" (चर्चा अंक-2805) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
टैक्स
टैक्स
और
टैक्स...
पुरानी पद्धति फिर लागू हो गई
जिसे सेटऑफ कहते हैं
समझाने के लिए एक पेज की प्रतिक्रिया लिखनी होगी
सादर
शास्त्री जी,
धन्यवाद
यशोदा जी,
सहने को हम !!!
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