अब तो यह जुमला भी घिस-पिट गया है कि आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं ! पर यह स्मार्टनेस तो तभी आई ना जब इन्होंने आँख खोलते ही दसियों गैजटों को अपने इर्द-गिर्द पाया, देखा-भाला-समझा-उपयोग किया और महारत हासिल की। पर माँ-बाप फूले नहीं समाते, उनकी उपलब्धि पर। फिर गुण-गान शुरू हो जाता है, इस टिपण्णी के साथ की हमें तो आज की चीजों के बारे में कुछ भी नहीं पता, यही बतलाता/ती है ! बार-बार यही सुन-सुन कर जड़ पकड़ने लगता है, अहम भाव बच्चों के मन में। उसे लगता है कि वह सर्वज्ञानी है, बाकियों को कुछ पता ही नहीं है। धीरे-धीरे घमंड, अक्खड़ता, अवमानना, दूसरों को कुछ ना समझना उसका स्वभाव बन जाता है.........
#हिन्दी_ब्लागिंग
मेरी उम्र की पीढ़ी बहुत भाग्यशाली है। इसने विज्ञान की मदद से दुनिया में होते बदलावों को अपनी आँखों से अपने सामने घटते देखा है। देखते-देखते सैकड़ों ईजादों-सुविधाओं ने अपनी अच्छाई और बुराई के साथ हमारी जिंदगी में पैठ बना ली है। छोटे-बड़े आदि हो चुके हैं सुविधाओं के। अब तो यह जुमला भी घिस-पिट गया है कि आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं ! बात तो सही है पर यह स्मार्टनेस तो तभी आई ना जब सारी सुविधाएं मौजूद थीं ! इन्होंने आँख खोलते ही दसियों गैजटों को अपने इर्द-गिर्द पाया, देखा-भाला-समझा-उपयोग किया और महारत हासिल की। माँ-बाप फूले नहीं समाते, गर्व महसूस करते हैं उनकी उपलब्धि पर। फिर गुण-गान शुरू हो जाता है, जान-पहचान-परिवार में, इस टिपण्णी के साथ की हमें तो आज की चीजों के बारे में कुछ भी नहीं पता, यही बतलाता/ती है ! बार-बार यही सुन-सुन कर जड़ पकड़ने लगता है, अहम भाव बच्चों के मन में। उसे लगता है कि वह सर्वज्ञानी है, बाकियों को कुछ पता ही नहीं है। धीरे-धीरे घमंड, अक्खड़ता, अवमानना, दूसरों को कुछ ना समझना, उसका स्वभाव बन जाता है। इसका पहला असर घरवालों पर ही दिखता है जब उन्हें सुनना पड़ता है, पापा से यह कहाँ होगा ! मम्मी को तो कुछ पता ही नहीं है, किसी चीज के बारे में !! बुआ तुम तो रहने ही दो !!! और घर वाले फिर भी लाड-प्यार में मुस्कुराते रहते हैं।
धीरे-धीरे वह नीम-ज्ञानी बाहर वालों पर भी रोब ग़ालिब करने लगता है। अब सोचिए कि यदि कोई पाबला जी को अपने पालतू के रख-रखाव, उनके स्वभाव, उनकी देख-रेख के बारे में बताने लगे या सुब्रमनियम जी को फूल-पत्तीयों के बारे में बता उनके चित्र लेने की विधि समझाने लगे, ललित जी को घुम्मकड़ी के फायदे बताने लगे तो उन सब की क्या प्रतिक्रिया होगी ? ललित तो झापड़ ही रसीद कर देंगे। तो इतनी बकैती का मुद्दा यह था कि कल शाम कुछ काम-अध्ययन करते समय, बाहरी द्वार के सामने एक श्वान पुत्र लगातार अपने दूर कहीं खड़े साथी से वार्तालाप करे जा रहा था। काफी देर सहन करने के पश्चात मैंने एक मग पानी को कुकुर के पास जमीन पर दे मारा, उसकी आवाज और छीटों से आदतन उसने दुम को दबाया और निकल लिया। मैं अंदर आ गया: उसके बाद जो हुआ वह तो मेरे लिए गजबे का हादसा था..........
कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, जाकर देखा एक बालक नुमा युवा, मन तो लखनवी सम्बोधन का हो रहा है, खड़ा था ; बोला अंकल आपने डॉगी पर पानी डाला ? ऐसा नहीं करना चाहिए ये बहुत मासूम होते हैं ! सुनते ही BP तो झट से बढ़ा पर फिर भी शांत स्वर में जवाब दिया कि आधे घंटे से वह भौंके जा रहा था, काम में विघ्न पड़ रहा था, हटाना जरुरी था। बोला, पानी डालने से वह भौंकना बंद तो नहीं करेगा ! मैंने कहा तो तुम्हीं उपाय बताओ ! बोला, नहीं पानी डालना था तो दूसरी तरफ डालते ! मैं, तो क्या इससे वह चुप हो जाता ? नहीं ये मासूम होते हैं। मेरे दरवाजे पर डोलते रहते हैं। हम कुछ नहीं कहते। अब थोड़ा BP का असर होने लगा था। मैंने कहा यदि मेरे दरवाजे पर खड़ा हो वह यदि फिर चिल्लाएगा तो मेरी समझ में जो आएगा वह मैं करूंगा: यदि तुम्हें तकलीफ है तो ये जितने भी आठ-दस हैं इन्हें अपने घर के अंदर ले जा कर रख लो !! आवाज की तुर्शी शायद उसको समझ आ गयी थी, कुछ बुड़बुड़ाते हुए गुगलाई जानकारी से भरा ज्ञान-हीन, रहमदिल इंसान चल दिया। बाद में पता चला कि दो घर छोड़ कर ही रहता है।
अब क्या मैं उसे बताता या अपनी सफाई देता, कि इन "मासूमों" के लिए मेरा और मेरे परिवार का क्या योगदान है, कितनों को कैसे-कैसे बचाया है ! कितने रोज खुराक पाते हैं: और यह जो महाशय अपने मित्र से वार्तालाप कर रहे थे और पानी के छीटों से भगे, वे मेरे सामने ही इस दुनिया में आए थे और रोज अपनी खुराक का हिस्सा यहीं से पाते हैं। यहां तक कि उसके माँ-बाप का राशन भी हमारे यहां से ही जाता था वह भी उनकी सेहत को ध्यान में रख। यदि उनके प्रति मुझे सहानुभूति है तो उनकी गलती को सुधारने का हक़ भी है !!
#हिन्दी_ब्लागिंग
मेरी उम्र की पीढ़ी बहुत भाग्यशाली है। इसने विज्ञान की मदद से दुनिया में होते बदलावों को अपनी आँखों से अपने सामने घटते देखा है। देखते-देखते सैकड़ों ईजादों-सुविधाओं ने अपनी अच्छाई और बुराई के साथ हमारी जिंदगी में पैठ बना ली है। छोटे-बड़े आदि हो चुके हैं सुविधाओं के। अब तो यह जुमला भी घिस-पिट गया है कि आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं ! बात तो सही है पर यह स्मार्टनेस तो तभी आई ना जब सारी सुविधाएं मौजूद थीं ! इन्होंने आँख खोलते ही दसियों गैजटों को अपने इर्द-गिर्द पाया, देखा-भाला-समझा-उपयोग किया और महारत हासिल की। माँ-बाप फूले नहीं समाते, गर्व महसूस करते हैं उनकी उपलब्धि पर। फिर गुण-गान शुरू हो जाता है, जान-पहचान-परिवार में, इस टिपण्णी के साथ की हमें तो आज की चीजों के बारे में कुछ भी नहीं पता, यही बतलाता/ती है ! बार-बार यही सुन-सुन कर जड़ पकड़ने लगता है, अहम भाव बच्चों के मन में। उसे लगता है कि वह सर्वज्ञानी है, बाकियों को कुछ पता ही नहीं है। धीरे-धीरे घमंड, अक्खड़ता, अवमानना, दूसरों को कुछ ना समझना, उसका स्वभाव बन जाता है। इसका पहला असर घरवालों पर ही दिखता है जब उन्हें सुनना पड़ता है, पापा से यह कहाँ होगा ! मम्मी को तो कुछ पता ही नहीं है, किसी चीज के बारे में !! बुआ तुम तो रहने ही दो !!! और घर वाले फिर भी लाड-प्यार में मुस्कुराते रहते हैं।
धीरे-धीरे वह नीम-ज्ञानी बाहर वालों पर भी रोब ग़ालिब करने लगता है। अब सोचिए कि यदि कोई पाबला जी को अपने पालतू के रख-रखाव, उनके स्वभाव, उनकी देख-रेख के बारे में बताने लगे या सुब्रमनियम जी को फूल-पत्तीयों के बारे में बता उनके चित्र लेने की विधि समझाने लगे, ललित जी को घुम्मकड़ी के फायदे बताने लगे तो उन सब की क्या प्रतिक्रिया होगी ? ललित तो झापड़ ही रसीद कर देंगे। तो इतनी बकैती का मुद्दा यह था कि कल शाम कुछ काम-अध्ययन करते समय, बाहरी द्वार के सामने एक श्वान पुत्र लगातार अपने दूर कहीं खड़े साथी से वार्तालाप करे जा रहा था। काफी देर सहन करने के पश्चात मैंने एक मग पानी को कुकुर के पास जमीन पर दे मारा, उसकी आवाज और छीटों से आदतन उसने दुम को दबाया और निकल लिया। मैं अंदर आ गया: उसके बाद जो हुआ वह तो मेरे लिए गजबे का हादसा था..........
कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, जाकर देखा एक बालक नुमा युवा, मन तो लखनवी सम्बोधन का हो रहा है, खड़ा था ; बोला अंकल आपने डॉगी पर पानी डाला ? ऐसा नहीं करना चाहिए ये बहुत मासूम होते हैं ! सुनते ही BP तो झट से बढ़ा पर फिर भी शांत स्वर में जवाब दिया कि आधे घंटे से वह भौंके जा रहा था, काम में विघ्न पड़ रहा था, हटाना जरुरी था। बोला, पानी डालने से वह भौंकना बंद तो नहीं करेगा ! मैंने कहा तो तुम्हीं उपाय बताओ ! बोला, नहीं पानी डालना था तो दूसरी तरफ डालते ! मैं, तो क्या इससे वह चुप हो जाता ? नहीं ये मासूम होते हैं। मेरे दरवाजे पर डोलते रहते हैं। हम कुछ नहीं कहते। अब थोड़ा BP का असर होने लगा था। मैंने कहा यदि मेरे दरवाजे पर खड़ा हो वह यदि फिर चिल्लाएगा तो मेरी समझ में जो आएगा वह मैं करूंगा: यदि तुम्हें तकलीफ है तो ये जितने भी आठ-दस हैं इन्हें अपने घर के अंदर ले जा कर रख लो !! आवाज की तुर्शी शायद उसको समझ आ गयी थी, कुछ बुड़बुड़ाते हुए गुगलाई जानकारी से भरा ज्ञान-हीन, रहमदिल इंसान चल दिया। बाद में पता चला कि दो घर छोड़ कर ही रहता है।
अब क्या मैं उसे बताता या अपनी सफाई देता, कि इन "मासूमों" के लिए मेरा और मेरे परिवार का क्या योगदान है, कितनों को कैसे-कैसे बचाया है ! कितने रोज खुराक पाते हैं: और यह जो महाशय अपने मित्र से वार्तालाप कर रहे थे और पानी के छीटों से भगे, वे मेरे सामने ही इस दुनिया में आए थे और रोज अपनी खुराक का हिस्सा यहीं से पाते हैं। यहां तक कि उसके माँ-बाप का राशन भी हमारे यहां से ही जाता था वह भी उनकी सेहत को ध्यान में रख। यदि उनके प्रति मुझे सहानुभूति है तो उनकी गलती को सुधारने का हक़ भी है !!
4 टिप्पणियां:
वैसा करना आवश्यक ही था।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-12-2017) को "मेरी दो पुस्तकों का विमोचन" (चर्चा अंक-2811) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी,
आभार। इस बार अल्मोड़ा यात्रा के दौरान सोचा था, खटिमा आने का पर हो ना सका था।
सुब्रमनियन जी,
न चाहते हुए भी कभी-कभी ऐसा करना पड जाता है
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