गयासुर को देख कर ही लोग मुक्ति पाने लग गए। पापी लोग भी स्वर्ग जाने लग गए। यमलोक सूना पड़ गया, देवताओं के लिए यज्ञ होने बंद हो गए। जिससे देवताओं को हविष्य मिलना बन्द हो गया परिणामस्वरूप उनकी शक्ति क्षीण होने लगी। देवलोक में घबड़ाहट फ़ैल गयी......
भगवान ने उसे यह वरदान दे तो दिया पर इसका बड़ा ही अप्रत्याशित फल हुआ। अब गयासुर को देख कर ही लोग मुक्ति पाने लग गए ! पापी लोग भी स्वर्ग जाने लग गए ! यमलोक सूना पड़ गया ! देवताओं के लिए यज्ञ होने बंद हो गए ! जिससे देवताओं को हविष्य मिलना बन्द हो गया, परिणामस्वरूप उनकी शक्ति क्षीण होने लगी ! देवलोक में घबराहट फैल गयी। सारे देवता चिंतित हो ब्रह्मा जी के पास गए। विचार-विमर्श के बाद देवताओं ने फिर छल का सहारा लिया। ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए और उससे कहा कि देवता एक खास यज्ञ करना चाहते हैं, जिसके लिए पवित्र स्थान चाहिए और तुम्हारे शरीर से पवित्र तो कोई जगह है ही नहीं, तो तुम अपने शरीर को इस काम के लिए प्रस्तुत करो। गयासुर इसके लिए राजी हो गया और उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की ओर
#हिन्दी_ब्लागिंग
पुराणों और धर्मग्रथों के अनुसार आदिकाल में जो मुख्य जातियां हुआ करती थीं, उनमें सुर यानी देवताओं को उत्कृष्ट और अपने कर्मों, उच्चश्रृंखलता और देव विरोधी होने के कारण असुरों यानी दैत्य, दानव और राक्षसों को हेय व हीन माना गया है। पर इन अलग-अलग जातियों में भी विद्वान, पराकर्मी, शूरवीर, धर्मात्मा और नेकदिल पुरुषों के साथ ही अनेक महिला विदुषियों का जन्म भी हुआ था, जिन्होंने अपनी विद्वता, साहस, त्याग, और प्रेम से
दुनिया भर में अपनी जाति का नाम रौशन किया था। इनमें से कुछ को तो आज भी आदर-सम्मान से देखा जाता है और उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। ऐसा ही एक नाम है गयासुर। कथाओं के अनुसार भस्मासुर के वंशज गयासुर ने अपनी कठोर तपस्या के बल पर विष्णु भगवान् से यह वर प्राप्त कर लिया कि उसका शरीर समस्त तीर्थों के बनिस्पत अधिक पवित्र हो जाए। जो भी उसे देखे या उसका स्पर्श कर ले उसे यमलोक नहीं जाना पड़े। ऐसा व्यक्ति सीधे विष्णुलोक जाए।
दुनिया भर में अपनी जाति का नाम रौशन किया था। इनमें से कुछ को तो आज भी आदर-सम्मान से देखा जाता है और उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। ऐसा ही एक नाम है गयासुर। कथाओं के अनुसार भस्मासुर के वंशज गयासुर ने अपनी कठोर तपस्या के बल पर विष्णु भगवान् से यह वर प्राप्त कर लिया कि उसका शरीर समस्त तीर्थों के बनिस्पत अधिक पवित्र हो जाए। जो भी उसे देखे या उसका स्पर्श कर ले उसे यमलोक नहीं जाना पड़े। ऐसा व्यक्ति सीधे विष्णुलोक जाए।
भगवान ने उसे यह वरदान दे तो दिया पर इसका बड़ा ही अप्रत्याशित फल हुआ। अब गयासुर को देख कर ही लोग मुक्ति पाने लग गए ! पापी लोग भी स्वर्ग जाने लग गए ! यमलोक सूना पड़ गया ! देवताओं के लिए यज्ञ होने बंद हो गए ! जिससे देवताओं को हविष्य मिलना बन्द हो गया, परिणामस्वरूप उनकी शक्ति क्षीण होने लगी ! देवलोक में घबराहट फैल गयी। सारे देवता चिंतित हो ब्रह्मा जी के पास गए। विचार-विमर्श के बाद देवताओं ने फिर छल का सहारा लिया। ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए और उससे कहा कि देवता एक खास यज्ञ करना चाहते हैं, जिसके लिए पवित्र स्थान चाहिए और तुम्हारे शरीर से पवित्र तो कोई जगह है ही नहीं, तो तुम अपने शरीर को इस काम के लिए प्रस्तुत करो। गयासुर इसके लिए राजी हो गया और उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की ओर
मुख करके लेट गया। गयासुर की पीठ पर सभी देवताओं के बैठने के बावजूद वह स्थिर नहीं हो पा रहा था, इसलिए एक भारी भरकम शिला, जो आज भी प्रेत शिला कहलाती है, को भी उसके ऊपर रखा गया पर कोई असर न पड़ता देख गदा धारण कर विष्णु जी भी उस पर बैठे तब जा कर उसका शरीर स्थिर हुआ। उसके इस त्याग को देख कर प्रभू ने उसे यह वरदान दिया कि जब तक यह धरती रहेगी तब तक ब्रह्मा, विष्णु और शिव इस शिला पर विराजेंगे तथा तुम्हारे नाम पर यह तीर्थ गया कहलाएगा ! इस
तीर्थ से समस्त मानव जाति का कल्याण होगा। आज भी ऐसा माना जाता है कि गया में जिसका श्राद्ध हो गया हो, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। इसीलिए गया में श्राद्ध व पिंडदान करने के बाद फिर कभी श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। मान्यता है कि गयासुर का शरीर पांच कोस में फैला हुआ था इसलिए उस पूरे पांच कोस के भूखण्ड का नाम "गया" पड़ गया।
बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गया। जहां देश के किसी भी हिस्से से
आसानी से जाया जा सकता है। धार्मिक दृष्टि से यह न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी तीर्थस्थल है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं, जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं। इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू गया आकर अपने परिवार के मृत परिजन की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते हैं। @चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
6 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - पी. वी. नरसिंह राव और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर्षवर्धन जी आपका व ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक धन्यवाद।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (29-06-2017) को
"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
शास्त्री जी,
नमस्कार। आशा है पूर्णतया स्वस्थ होंगे
Nice Post
Unknown जी
इतने सुंदर उपाय सुझाते हैं तो सामने आने में झिझक क्यों
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