धर्मग्रन्थों में असुरों का वर्णन शक्तिशाली, अतिमानवीय और अर्धदेवों के रूप में किया गया है। कथाओं में उनके अच्छे और बुरे दोनों गुणों पर प्रकाश डाला गया है। असुरों में मुख्य, दैत्य दिति के तथा दानव दनु के पुत्र थे। राक्षस प्राचीन काल की एक प्रजाति का नाम था, जो रक्ष संस्कृति या रक्ष धर्म की अनुयायी थी, इसकी स्थापना रावण ने की थी....
पौराणिक कथाओं के अनुसार दानवों और राक्षसों का आपस में काफी पुराना बैर चला आ रहा था, इसी के चलते राक्षसराज रावण ने अपने ही बहनोई दानव विद्युतजिह्वा का वध कर दिया था। आम धारणा और बोलचाल में असुर, दानव, दैत्य और राक्षसों को तकरीबन एक जैसा ही माना जाता है। पर इनमें आपस में बहुत फर्क है। यह विषय काफी गूढ़ और पेचीदा है। हमारे ग्रंथों में इसको पूरी तरह परिभाषित किया गया है कि कैसे, कहां और किससे इन उत्पत्ति हुई और किन कारणों से इनमें आपस में विद्वेष जन्मा। पर किसी एक ग्रंथ से पूरी जानकारी हासिल नहीं की जा सकती। तर्क-कुतर्क की बहुत गुंजाइश है। फिर भी सरल जानकारी के तौर पर जाना जा सकता है कि देवताओं की अदिति, दैत्यों की दिति, दानवों की दनु और राक्षसों
की सुरसा से उत्पत्ति हुई। जबकि इनके पिता एक ही थे, वैदिक ऋषि कश्यप, जिनकी गणना सप्तऋषियों में की जाती है। जिनका गोत्र इतना विशाल है कि माना जाता है कि सृष्टि के प्रसार में उनके वंशजों का योगदान ही सर्वोपरि है। पर महान पिता की विभिन्न माताओं से जन्मी संताने, जो आपस में भाई-बहन ही थे, कभी भी एक मत नहीं हुए और अपने-अपने हित, स्वार्थ के लिए जिंदगी भर लड़ते-मरते रहे। वैसे कुछ विद्वानों का मानना है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और उनके कुल के लोग धरती के वासी नहीं थे। उन्होंने धरती पर अपने कुल के विस्तार की खातिर आक्रमण कर यहां दैत्यों और दानवों का दमन किया जिसकी वजह से धरती और स्वर्ग के वाशिंदों में सदा के युद्ध की शुरुआत हुई थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार दानवों और राक्षसों का आपस में काफी पुराना बैर चला आ रहा था, इसी के चलते राक्षसराज रावण ने अपने ही बहनोई दानव विद्युतजिह्वा का वध कर दिया था। आम धारणा और बोलचाल में असुर, दानव, दैत्य और राक्षसों को तकरीबन एक जैसा ही माना जाता है। पर इनमें आपस में बहुत फर्क है। यह विषय काफी गूढ़ और पेचीदा है। हमारे ग्रंथों में इसको पूरी तरह परिभाषित किया गया है कि कैसे, कहां और किससे इन उत्पत्ति हुई और किन कारणों से इनमें आपस में विद्वेष जन्मा। पर किसी एक ग्रंथ से पूरी जानकारी हासिल नहीं की जा सकती। तर्क-कुतर्क की बहुत गुंजाइश है। फिर भी सरल जानकारी के तौर पर जाना जा सकता है कि देवताओं की अदिति, दैत्यों की दिति, दानवों की दनु और राक्षसों
की सुरसा से उत्पत्ति हुई। जबकि इनके पिता एक ही थे, वैदिक ऋषि कश्यप, जिनकी गणना सप्तऋषियों में की जाती है। जिनका गोत्र इतना विशाल है कि माना जाता है कि सृष्टि के प्रसार में उनके वंशजों का योगदान ही सर्वोपरि है। पर महान पिता की विभिन्न माताओं से जन्मी संताने, जो आपस में भाई-बहन ही थे, कभी भी एक मत नहीं हुए और अपने-अपने हित, स्वार्थ के लिए जिंदगी भर लड़ते-मरते रहे। वैसे कुछ विद्वानों का मानना है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और उनके कुल के लोग धरती के वासी नहीं थे। उन्होंने धरती पर अपने कुल के विस्तार की खातिर आक्रमण कर यहां दैत्यों और दानवों का दमन किया जिसकी वजह से धरती और स्वर्ग के वाशिंदों में सदा के युद्ध की शुरुआत हुई थी।
ऐसा नहीं था कि देवताओं का विरोध करने वाले असुर सिर्फ बुरे ही थे, धर्मग्रन्थों में उनका वर्णन शक्तिशाली, अतिमानवीय और अर्धदेवों के रूप में किया गया है। कथाओं में उनके अच्छे और बुरे दोनों गुणों पर प्रकाश डाला गया है। असुरों में मुख्य, दैत्य दिति के तथा दानव दनु के पुत्र थे। राक्षस प्राचीन काल की एक प्रजाति का नाम था, जो रक्ष संस्कृति या रक्ष धर्म की अनुयायी थी। इसकी स्थापना रावण ने की थी। रक्ष धर्म को मानने वाले राक्षस कहलाते थे। एक अन्य कथा के अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। उनमें से कुछ प्राणियों ने सबकी रक्षा की जिम्मेदारी संभाली इसीलिए वे रक्षा करने वाले यानी राक्षस कहलाए।
हालांकि इनकी छवि देवताओं के विरोधी होने की वजह से धूमिल मानी जाती है पर इन अलग-अलग जातियों में भी विद्वान, पराकर्मी, शूरवीर, धर्मात्मा और नेकदिल पुरुषों के साथ ही अनेक महिला विदुषियों का जन्म भी हुआ था, जिन्होंने अपनी विद्वता, साहस, त्याग और प्रेम से दुनिया भर में अपनी जाती का नाम रौशन किया था। इनमें कुछ प्रमुख हस्तियां थीं, शुक्राचार्य, गयासुर, मायासुर, बलि, प्रह्लाद, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, माल्यवान, सुमाली, मंदोदरी, सुलोचना, वृंदा, लंकिनी, त्रिजटा आदि।
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (25-06-2016) को "हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी" (चर्चा अंक-2649) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी,
स्नेह बना रहे।
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