सैनेटाइजर को प्रयोग में लाने वाले करोड़ों लोग इसे जादुई चिराग ही समझते हैं जिसके छूने भर से बैक्टेरिया का सफाया हो जाता है। जबकि ऐसा नहीं है, जिस तरह साबुन ग्रीस, चिकनाई, मिटटी इत्यादि को साफ़ करता है उस तरह से सैनेटाइजर काम नहीं कर पाता। ज्यादातर कीटाणु उँगलियों के बीच, नाखूनों के अंदर, पोरों में छिपे होते हैं जिन्हें साफ़ करने के लिए हाथों को कम से कम बीस से तीस सेकेण्ड तक धोना बहुत जरुरी होता है.....
गर्मी के बावजूद इस बार अप्रैल में कई जगह आना-जाना करना पड़ा था। जिसमें सालासर बालाजी के दर्शनों का
सुयोग भी था। जिसका ब्यौरा पिछली पोस्ट में कर भी चुका हूँ। पर इस यात्रा के दौरान एक चीज पर ध्यान गया कि टी.वी पर रोज हर मिनट बरसाए जा रहे इश्तहारों का असर तो पड़ता ही है। जैसे झूठ को रोज-रोज कहने-सुनने पर वह भी सच लगने लगता है। इन्हीं उत्पादों में एक है "सैनेटाइज़र", जिसको साबुन-पानी का पर्याय मान कर, हर जगह, बिना उसके दुष्प्रभावों को जाने, खुलेआम घर-बाहर-स्कूल-कार्यक्षेत्र व अन्य जगहों में होने लगा है। इसका एक दूसरा कारण इसको आसानी से अपने साथ रख लाना ले जा सकना भी है। धीरे-धीरे यह आधुनिकता की निशानी बन फैशन में शुमार हो गया है। जिस तरह साधारण पानी की जगह "मिनिरल वाटर" ने ले ली है और लोग बिना उसकी गुणवत्ता जाने-परखे भेड़-चाल सा उसका उपयोग करते जा रहे हैं, उसी तरह साबुन-पानी की जगह अब "सैनेटाइजर" स्टेटस सिंबल बन कर छा गया है।
गर्मी के बावजूद इस बार अप्रैल में कई जगह आना-जाना करना पड़ा था। जिसमें सालासर बालाजी के दर्शनों का
सुयोग भी था। जिसका ब्यौरा पिछली पोस्ट में कर भी चुका हूँ। पर इस यात्रा के दौरान एक चीज पर ध्यान गया कि टी.वी पर रोज हर मिनट बरसाए जा रहे इश्तहारों का असर तो पड़ता ही है। जैसे झूठ को रोज-रोज कहने-सुनने पर वह भी सच लगने लगता है। इन्हीं उत्पादों में एक है "सैनेटाइज़र", जिसको साबुन-पानी का पर्याय मान कर, हर जगह, बिना उसके दुष्प्रभावों को जाने, खुलेआम घर-बाहर-स्कूल-कार्यक्षेत्र व अन्य जगहों में होने लगा है। इसका एक दूसरा कारण इसको आसानी से अपने साथ रख लाना ले जा सकना भी है। धीरे-धीरे यह आधुनिकता की निशानी बन फैशन में शुमार हो गया है। जिस तरह साधारण पानी की जगह "मिनिरल वाटर" ने ले ली है और लोग बिना उसकी गुणवत्ता जाने-परखे भेड़-चाल सा उसका उपयोग करते जा रहे हैं, उसी तरह साबुन-पानी की जगह अब "सैनेटाइजर" स्टेटस सिंबल बन कर छा गया है।
इस यात्रा पर भी सदा की तरह "कानूनी भाई" सपरिवार साथ थे। यात्रा के और धर्मस्थान में रहने के दौरान कई बार हाथ वगैरह को साफ़ करने की जब भी जरुरत महसूस होती, पानी-साबुन की उपलब्धता के बावजूद उन्हें "सैनेटाइजर" का इस्तेमाल करते पाया। एक-दो बार टोका भी कि बार-बार केमिकल का प्रयोग ठीक नहीं रहता, पर और लोगों की तरह उनके दिलो-दिमाग में भी इश्तहारों ने ऐसा घर बना लिया था कि अब उन्हें साबुन वगैरह का प्रयोग असुरक्षित और पिछड़ेपन की निशानी लगने लगा था। जबकि आज वैज्ञानिक और डॉक्टर भी इसके कम से कम इस्तेमाल की सलाह देने लगे हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिसोरी, कोलंबिया ने अपनी खोज से सिद्ध किया है कि इसके ज्यादा इस्तेमाल से हाथों पर रहने वाले अच्छे बैक्टेरिया के खत्म होने के साथ-साथ हमारी एंटीबायोटिक अवरोध की क्षमता के कम होने की आशंका भी बढ़ जाती है। शोधों से यह भी सामने आया है कि सैनेटाइजर के ज्यादा उपयोग से खतरनाक रसायनों को शरीर अवशोषित करने लगता है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। कई बार तो इसके तत्व यूरीन और खून के सैम्पल में भी दिखाई पड़ने लगे हैं। खासकर बच्चों को इसका कम से कम उपयोग करना चाहिए। वैसे भी अधिकतर सैनेटाइजर में अल्कोहल सिर्फ 60% ही होता है जो जीवाणुओं के खात्मे के लिए पर्याप्त नहीं होता। इसका उत्तम विकल्प साबुन और पानी ही है।
इसका उपयोग न करने की सलाह के कुछ और भी कारण बताए गए हैं, जैसे इसके ज्यादा उपयोग से त्वचा को नुक्सान होता है। इसमें "ट्राइक्लोसन" और "विस्फेनोल" जैसे हानिकारक और विषैले केमिकल मिले होते हैं। जो तरह-तरह की बीमारियों को तो न्यौता देते ही हैं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कम कर देते हैं। अमेरिका के Epidemic Intelligence Service द्वारा की गयी पड़तालों से भी यह सच सामने आया है कि इसके दिन में छह-सात बार के इस्तेमाल से हाथों पर "नोरोवायरस" के पनपने का खतरा उत्पन्न हो जाता है जो हमारे पेट की जटिल बीमारियों का जरिया बनते हैं।
अब तो U.S. Food and Drug Administration ने भी सैनेटाइजर बनाने वाली कंपनियों से पूरा शोध करने को कहा है जिससे इसका प्रयोग निरापद हो सके। वैसे भी इसको प्रयोग में लाने वाले करोड़ों लोग इसे जादुई चिराग ही समझते हैं जिसके छूने भर से बैक्टेरिया का सफाया हो जाता है। जबकि ऐसा नहीं है, जिस तरह साबुन ग्रीस, चिकनाई, मिटटी इत्यादि को साफ़ करता है उस तरह से सैनेटाइजर काम नहीं कर पाता। ज्यादातर कीटाणु उँगलियों के बीच, नाखूनों के अंदर, पोरों में छिपे होते हैं जिन्हें साफ़ करने के लिए हाथों को कम से कम बीस से तीस सेकेण्ड तक धोना बहुत जरुरी होता है। साबुन से धोने के बाद हाथों को ठीक से सूखा लेना चाहिए। वैसे ही यदि सैनेटाइजर का उपयोग करना ही पड़े तो उसके केमिकल को ठीक से वाष्पीकृत होने देना चाहिए और इसके उपयोग के कुछ देर बाद ही भोजन को छूना चाहिए। फिर भी कोशिश यही रहनी चाहिए कि इसका कम से कम ही प्रयोग हो। साबुन-पानी पर खुद और दूसरों का विश्वास बनाए रखने की कोशिश जरूर होनी चाहिए।
अब तो U.S. Food and Drug Administration ने भी सैनेटाइजर बनाने वाली कंपनियों से पूरा शोध करने को कहा है जिससे इसका प्रयोग निरापद हो सके। वैसे भी इसको प्रयोग में लाने वाले करोड़ों लोग इसे जादुई चिराग ही समझते हैं जिसके छूने भर से बैक्टेरिया का सफाया हो जाता है। जबकि ऐसा नहीं है, जिस तरह साबुन ग्रीस, चिकनाई, मिटटी इत्यादि को साफ़ करता है उस तरह से सैनेटाइजर काम नहीं कर पाता। ज्यादातर कीटाणु उँगलियों के बीच, नाखूनों के अंदर, पोरों में छिपे होते हैं जिन्हें साफ़ करने के लिए हाथों को कम से कम बीस से तीस सेकेण्ड तक धोना बहुत जरुरी होता है। साबुन से धोने के बाद हाथों को ठीक से सूखा लेना चाहिए। वैसे ही यदि सैनेटाइजर का उपयोग करना ही पड़े तो उसके केमिकल को ठीक से वाष्पीकृत होने देना चाहिए और इसके उपयोग के कुछ देर बाद ही भोजन को छूना चाहिए। फिर भी कोशिश यही रहनी चाहिए कि इसका कम से कम ही प्रयोग हो। साबुन-पानी पर खुद और दूसरों का विश्वास बनाए रखने की कोशिश जरूर होनी चाहिए।
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-05-2017) को
संघर्ष सपनों का ... या जिंदगी का; चर्चामंच 2629
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी,
स्नेह बना रहे।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बुद्ध पूर्णिमा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर्ष जी,
हार्दिक धन्यवाद
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