याद कीजिए, अभी के वोडाफोन विज्ञापन के युगल को, जो पहली बार गोवा यात्रा पर निकले हैं। इसका हर अंक मन मोह लेता है। 78 साल के श्री वी.पी. धनंजयन और 74 साल की श्रीमती शांता धनंजयन को भरतनाट्यम में उनके योगदान के लिए 2009 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी जीजीविषा को सलाम है कि इस उम्र में धनंजयन जी ने स्कूटर चलाना सीखा, पहली बार धोती छोड़ पैंट-टी शर्ट पहनी, युवाओं की तरह के करतब किए और विश्वसनीयता व सहजता से इंटरनेट का उपयोग कर जीवन का आनंद लेते दिखे....
चाहे कितने भी विवाद खड़े हों, चाहे कितनी भी आलोचना हो, सच्चाई यही है कि आईपीएल की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आ रही। बीस ओवरों की इस सनसनी ने "टेस्ट" और "एक दिवसीय" क्रिकेट को कहीं पीछे छोड़ दिया है। आंकड़े बतला रहे हैं कि हर साल इसे देखने वालों की भीड़ में इजाफा हो रहा है। एक समय में लाखों आँखें, दीन-दुनिया को भूल, टकटकी लगाए सारा समय टी.वी. से चिपकी रहती हैं। इसी कारण विज्ञापन देने वाली कंपनियां मुंह मांगी कीमत पर यहां समय लेने के लिए होड़ लगाए रहती हैं।
जिस तरह खेल के दौरान मैदान में चौके-छक्कों की बरसात होती है उसी तरह घर बैठे मैच देखने वाले लोगों पर विज्ञापनों की झड़ी लगी रहती है। पर इनमें ज्यादातर तो बकवास ही होते हैं। क्योंकि जिस तरह विज्ञापन बनवाने की मांग बढ़ी है उसी तरह गुणवत्ता भी हाशिए पर चली गयी है। विज्ञापनदाता का पहला प्रयास होता है
किसी जाने-माने फ़िल्मी कलाकार को अनुबंधित करना, उसके बाद उसके इर्द-गिर्द अपने उत्पाद का ताना-बाना बुनना। उन्हें लगता है कि उस कलाकार के आभामंडल से ही बेडा पार हो जाएगा पर होता उल्टा है, ज्यादातर ऐसे विज्ञापन दर्शकों को "बोर" करने लगते है। उदाहरण स्वरूप, एवरेस्ट मसाले, विमल, गंजी-बनियान, हेयर टॉनिक, ओप्पो कैमरा, जिसे पिछले दो सालों से झेलते हुए लोग उसके आते ही "ओफ्फो" कहने लगे हैं। हालांकि हर साल ये कंपनी फ़िल्मी जगत के चर्चित चहरे को ही चुनती है।
पर कुछ विज्ञापन ऐसे हैं जो अपनी पहली स्क्रीनिंग के साथ ही दर्शकों को मोह लेते हैं। दर्शकों का यही प्रेम विज्ञापनदाताओं को उनकी अगली कड़ी बनाने का हौसला देता है। याद कीजिए अभी हाल के #वोडाफोन विज्ञापन के युगल को, जो पहली बार गोवा यात्रा पर निकला है। इसका हर अंक मन मोहता है। दर्शक उम्रदराज युगल को अपने घर के सदस्य समान मानने लगता है। इन के बारे में प्रसिद्ध पत्रकार श्री रघुरामन जी के सौजन्य से पता चला कि 78 साल के श्री वी.पी. धनंजयन और 74 साल की श्रीमती शांता धनंजयन, चेन्नई के अड्यान में 1968 से भरतनाट्यम सिखाने के लिए भारत कलांजलि स्कूल चला रहे हैं, जिसके लिए उन्हें 2009 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी जीजीविषा को सलाम है कि इस उम्र में धनंजयन जी ने स्कूटर चलाना सीखा, पहली बार धोती छोड़ पैंट-टी शर्ट पहनी, युवाओं की तरह के करतब किए और विश्वसनीयता व सहजता से इंटरनेट का उपयोग कर जीवन का आनंद लेते दिखे।
वोडाफोन वाले बधाई के पात्र हैं जो उन्होंने फूहड़ता के युग में भी इतना साफ़-सुथरा, दिल को छूने वाला विज्ञापन रचा। जिसमें पहली बार बुजुर्गों को आधुनिक तकनीक को इस्तेमाल करते दिखाया गया है। ऐसा ही एक और
सीधा-सरल विज्ञापन वोल्टास का है, जिसमें "श्री मूर्ति" अपने मासूम अंदाज में ए.सी. की बड़ाई करते-करते लोगों के चहेते बन गए हैं। वैसे ही बिलकुल अंजान चेहरों को लेकर बनाया गया amazon का विज्ञापन है जो अपने हर अंक के साथ दर्शकों को मुस्कुराने पर मजबूर कर देता है। यह सारे विज्ञापन अपने अनजाने पर सक्षम कलाकारों के साथ वह काम कर गए हैं जो जाने-पहचाने करोड़ों की फीस लेने वाले स्टार नहीं कर पाए हैं।
इनसे उन निर्माताओं को सबक लेना चाहिए जो बड़े नामों को ही सफलता की कुंजी समझ हजार की जगह लाखों फूँक कर भी कोई जादू नहीं जगा पाते।
चाहे कितने भी विवाद खड़े हों, चाहे कितनी भी आलोचना हो, सच्चाई यही है कि आईपीएल की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आ रही। बीस ओवरों की इस सनसनी ने "टेस्ट" और "एक दिवसीय" क्रिकेट को कहीं पीछे छोड़ दिया है। आंकड़े बतला रहे हैं कि हर साल इसे देखने वालों की भीड़ में इजाफा हो रहा है। एक समय में लाखों आँखें, दीन-दुनिया को भूल, टकटकी लगाए सारा समय टी.वी. से चिपकी रहती हैं। इसी कारण विज्ञापन देने वाली कंपनियां मुंह मांगी कीमत पर यहां समय लेने के लिए होड़ लगाए रहती हैं।
जिस तरह खेल के दौरान मैदान में चौके-छक्कों की बरसात होती है उसी तरह घर बैठे मैच देखने वाले लोगों पर विज्ञापनों की झड़ी लगी रहती है। पर इनमें ज्यादातर तो बकवास ही होते हैं। क्योंकि जिस तरह विज्ञापन बनवाने की मांग बढ़ी है उसी तरह गुणवत्ता भी हाशिए पर चली गयी है। विज्ञापनदाता का पहला प्रयास होता है
पर कुछ विज्ञापन ऐसे हैं जो अपनी पहली स्क्रीनिंग के साथ ही दर्शकों को मोह लेते हैं। दर्शकों का यही प्रेम विज्ञापनदाताओं को उनकी अगली कड़ी बनाने का हौसला देता है। याद कीजिए अभी हाल के #वोडाफोन विज्ञापन के युगल को, जो पहली बार गोवा यात्रा पर निकला है। इसका हर अंक मन मोहता है। दर्शक उम्रदराज युगल को अपने घर के सदस्य समान मानने लगता है। इन के बारे में प्रसिद्ध पत्रकार श्री रघुरामन जी के सौजन्य से पता चला कि 78 साल के श्री वी.पी. धनंजयन और 74 साल की श्रीमती शांता धनंजयन, चेन्नई के अड्यान में 1968 से भरतनाट्यम सिखाने के लिए भारत कलांजलि स्कूल चला रहे हैं, जिसके लिए उन्हें 2009 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी जीजीविषा को सलाम है कि इस उम्र में धनंजयन जी ने स्कूटर चलाना सीखा, पहली बार धोती छोड़ पैंट-टी शर्ट पहनी, युवाओं की तरह के करतब किए और विश्वसनीयता व सहजता से इंटरनेट का उपयोग कर जीवन का आनंद लेते दिखे।
वोडाफोन वाले बधाई के पात्र हैं जो उन्होंने फूहड़ता के युग में भी इतना साफ़-सुथरा, दिल को छूने वाला विज्ञापन रचा। जिसमें पहली बार बुजुर्गों को आधुनिक तकनीक को इस्तेमाल करते दिखाया गया है। ऐसा ही एक और
सीधा-सरल विज्ञापन वोल्टास का है, जिसमें "श्री मूर्ति" अपने मासूम अंदाज में ए.सी. की बड़ाई करते-करते लोगों के चहेते बन गए हैं। वैसे ही बिलकुल अंजान चेहरों को लेकर बनाया गया amazon का विज्ञापन है जो अपने हर अंक के साथ दर्शकों को मुस्कुराने पर मजबूर कर देता है। यह सारे विज्ञापन अपने अनजाने पर सक्षम कलाकारों के साथ वह काम कर गए हैं जो जाने-पहचाने करोड़ों की फीस लेने वाले स्टार नहीं कर पाए हैं।
इनसे उन निर्माताओं को सबक लेना चाहिए जो बड़े नामों को ही सफलता की कुंजी समझ हजार की जगह लाखों फूँक कर भी कोई जादू नहीं जगा पाते।