शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

तकनीक को सेवक बना कर ही रखें

इसमें कोई शक नहीं कि आधुनिक फोन के अनगिनत लाभ, ढेरों अच्छाइयां, विशेषताएं तथा उपयोग हैं पर साथ ही कुछ बुराइयां भी हैं। सही मायने में यह फोन की भी बुराइयां नहीं हैं हमारी ही गलतियां हैं, जो हम बिना सोचे-समझे उसका अनियंत्रित तरीके से प्रयोग करते रहते हैं। अति तो किसी भी चीज की बुरी होती है फिर चाहे वह अमृत ही क्यों न हो !

आजके युग में जितनी क्रांति, जितनी खोज, संचार-माध्यम में हुई है उतना शायद और किसी भी क्षेत्र में नहीं हो पाया है। यहां तो अभी भी तूफान चल  रहा है। नयी-नयी ईजादें, नयी-नयी तकनीकें, नए-नए उपकरण दुनिया भर के बाज़ारों में तहलका मचा  रहे हैं। उपकरणों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय आज स्मार्ट फोन है जिसका उपयोग
बाल, वृद्ध, नौजवान सभी धड्डले से कर रहे हैं पर जिसका सबसे बड़ा ग्राहक आजका युवा वर्ग है। जो बुरी तरह इसको अपनी लत बना चुका है, दिन-दोपहर-शाम-रात जब देखो, जहां देखो फोन से चिपका नज़र आता है, जाने-अनजाने, बिना इसकी फ़िक्र किए कि यह आदत सेहत और शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है। अब तो डॉक्टरों ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि जहां मोबायल फोन का अनियंत्रित उपयोग कान, गर्दन, हाथो, उँगलियों, कलाइयों और उनके जोड़ों में तरह-तरह की समस्याएं उत्पन्न कर गठिया रोग तक का कारण बन जाता है, वहीँ यह आँखों की रौशनी के लिए भी अत्यंत खतरनाक सिद्ध हो चुका है।  

आजकल देखा गया है कि घरों में बाकी सदस्यों के सो जाने के बाद बच्चे और युवा अंधेरे में भी अपने स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते रहते हैं जिससे शरीर के सबसे नाजुक अंग आँख पर बहुत जोर पड़ता है। लगातार ऐसा होने से वह अपनी देखने की क्षमता खो बैठती है। अभी "जर्नल ऑफ मेडिसिन" पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दो महिलाओं में ट्रांजिएट स्मार्टफोन ब्लाइंडनेस पाया गया। इस बिमारी में किसी के अंधेरे में लगातार स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने पर एक आंख की रौशनी कुछ मिनटों के लिए चली जाती है। यदि आदत ना बदली जाए तो आँख स्थाई तौर पर देखने की शक्ति गंवा देती है।

हमारी आँख का रेटिना बहुत ही संवेदनशील तथा नाजुक अवयव होता है। उजाले से अँधेरे में जाने या फिर अँधेरे से तुरंत प्रकाश में आने पर इसे स्थिति से सामंजस्य बैठाने में कुछ समय लगता है। इसीलिए जब हम
रौशनी से अँधेरे में जाते हैं तो पहले कुछ भी दिखाई नहीं देता पर धीरे-धीरे वातावरण से आँखें अभ्यस्त हो जाती हैं वैसे ही अँधेरे से उजाले में जाने पर आँखें चौधिया जाती हैं जिसके अनुकूलन में समय लगता है। बहुत से लोगों की आदत है कि सुबह उठाते ही वे फोन की ओर लपकते हैं जबकि आँखें अभी प्रकाश की अभ्यस्त नहीं हुई होतीं इससे रेटिना पर जबरदस्त जोर पड़ता है जो आँखों के लिए नुक्सान-दायक होता है। दूसरी ओर पाया गया है कि अधिकतर लोग सोते समय रात के अँधेरे में फोन पर एक ही आँख से नज़र गड़ा उसका प्रयोग करते हैं जिससे एक आँख फोन की तीव्र सफ़ेद रौशनी में तथा दूसरी अँधेरे में होने की वजह से आपस में तारतम्य नहीं बैठा पातीं और क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। 

इसमें कोई शक नहीं कि आधुनिक फोन के अनगिनत लाभ, ढेरों अच्छाइयां, विशेषताएं तथा उपयोग हैं पर साथ ही कुछ बुराइयां भी हैं। सही मायने में यह फोन की भी बुराइयां नहीं हैं हमारी ही गलतियां हैं, जो हम बिना सोचे-समझे उसका अनियंत्रित तरीके से प्रयोग करते रहते हैं। अति तो किसी भी चीज की बुरी होती है फिर चाहे वह अमृत ही क्यों न हो ! इसीलिए जहां तक हो सके इसका संभल कर उपयोग करना चाहिए वहीँ दूसरों को खासकर बच्चों को इसके गुण-दोषों से अवगत कराते रहना चाहिए। वैसे तो इसका जहां तक हो सके काम उपयोग करना चाहिए जो की संभव नजर नहीं आता फिर भी सोने के पहले इस पर अपने काम बीसेक मिनट पहले निपटा लें, सोते समय इसे अपने शरीर से करीब चार फिट दूर रखें, रात को बहुत जरुरी हो तो इसका स्क्रीन "डार्क" कर इसका उपयोग करें और सुबह उठाने के बाद करीब पन्द्रह मिनट बाद ही इसे प्रयोग में लाएं। सदा ध्यान रखें शरीर ही है जिससे दुनिया का उपभोग है यही साथ नहीं देगा तो दुनिया किस काम की !

7 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, शास्त्री जी

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "तीन सवाल - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन का आभार

Onkar ने कहा…

उपयोगी पोस्ट

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Dhanywad, Onkar ji

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

राजीव जी, आप का सदा स्वागत है

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