मंगलवार, 24 जनवरी 2017

आम आदमी और सरकारी अफसर

किसी ख़ास दिन रेलवे स्टेशन पर जरुरत से ज्यादा ही गहमा-गहमी नजर आती है। कर्मचारी चुस्त-दुरुस्त व मुस्तैद, नाहीं कहीं गंदगी ना दाग-धब्बे, करीने से सजे सैंकड़ों गमले जिनमें बड़े-बड़े सुंदर फूल-पौधे अपनी छटा बिखेरते शोभा पा रहे होते हैं। प्लेटफार्म इतने साफ़ और चमकदार कि उस पर रख भोजन भी किया जा सके !  हर चीज करीनेवार अपनी जगह पर स्थित होती है !वह दिन होता है किसी जी. एम. या और किसी बड़े अधिकारी के आने-जाने या उसके निरक्षण का....... 

कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रेलवे के बिलासपुर जोन के जी. एम. के विदाई समारोह में रेलवे के कुछ अफसरों ने उनके सम्मान में दी गयी पार्टी में एक महिला कर्मी द्वारा अपने बॉस के साथ मंच पर एक से ज्यादा युगल गीत ना गाने के कारण अनुशासनहीनता के आरोप में उसे चार्ज-शीट तो थमाई ही उसका तबादला भी कर दिया। चार्ज-शीट में साफ़ लिखा था कि विदाई पार्टी में जी. एम. के साथ युगल गीत गाने से इंकार करना उस महिला कर्मी का अव्यावहारिक बर्ताव है इसलिए उस पर अनुशासत्मक कार्यवाही की जा रही है। एक ओर तो सरकार महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने की वकालत करते नहीं थकती दूसरी ओर उन्हीं के अफसर बेजा हरकतों से बाज नहीं आते।

सवाल यह उठता है कि क्या ऐसी किसी पार्टी में किसी पर भी जबरदस्ती गाने या कला प्रदर्शन का जोर डाला जा सकता है, जबकि यह उसकी ड्यूटी का हिस्सा नहीं होता ? उस पर भी जब वह कोई महिला कर्मी हो ! किसी भी महिला का, जो प्रोफेशनल गायिका ना हो, ऐसे वक्त पर संकोच करना कोई गुनाह नहीं है। फिर हो सकता है उस दिन वहां का माहौल कुछ इस तरह का हो गया हो जिससे उस महिला कर्मी ने गाने से इंकार कर दिया हो। यह तो उन जी. एम. साहब को भी सोचना और देखना चाहिए था कि उनका विदाई समारोह गरिमा-पूर्ण ही रहे !! हालांकि चहुर्दिक हुए विरोध के कारण उस महिला को दिया गया आदेश वापस ले लिया गया था। पर मानसिक प्रतारणा तो उसे सहनी ही पड़ी थी, उसका क्या  !!

आदमी की फ़ितरत में है कि वह अपनी चापलूसी करवाना पसंद करता है। इसीलिए समाज के हर विभाग में अर्श पर बैठे हुए लोग अपने स्तुति गायकों से घिरे रहते हैं। बात रेलवे की हो रही है। हम में से अधिकतर ने कभी न कभी जरूर देखा होगा कि किसी ख़ास दिन रेलवे स्टेशन पर जरुरत से ज्यादा ही गहमा-गहमी नजर आती है। कर्मचारी चुस्त-दुरुस्त व मुस्तैद, नाहीं कहीं गंदगी ना दाग-धब्बे, करीने से सजे सैंकड़ों गमले जिनमें बड़े-बड़े सुंदर फूल-पौधे अपनी छटा बिखेरते शोभा पा रहे होते हैं। प्लेटफार्म इतने साफ़ और चमकदार कि उस पर रख भोजन भी किया जा सके !  हर चीज करीनेवार अपनी जगह पर स्थित होती है !! वह दिन होता है ऐसे ही किसी जी. एम. या और किसी बड़े अधिकारी के आने-जाने या उसके निरक्षण का। क्या इन आला अफसरों से उस स्टेशन के या उस जैसे और स्टेशनों के हाल छिपे  रहते हैं ? क्या उनको स्टेशनों की दुर्दशा के हालात पता नहीं होते ? क्या उनकी पोस्टिंग सीधे उच्च पद पर हो गयी होती है जिससे उन्हें देश के रेलवे स्टेशनों की हालात के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती ? जबकि सच्चाई यह है कि वे भी समय के साथ पदोन्नति पा कर ही उस उच्च पद पर पहुंचे होते हैं और ऐसी खुशामदी भरी हरकतें खुद भी कर चुके होते हैं। इसीलिए जब खुद का समय आता है तो उसका आंनद लेने में कोताही नहीं करते। इन्हीं के लिए अलग से डिब्बे जोड़े जाते हैं, इन्हीं के लिए ट्रेन को इंतजार करते भी पाया गया है। इन्हीं के दोस्त-मित्र, नाते-रिश्तेदार, घर-परिवार वाले मुफ्त में ट्रेनों की शाही यात्रा का मजा भी लेते हैं। उधर पैसे चुकाने के बाद भी, कभी-कभी अतिरिक्त भी, आम आदमी धक्के खाता अपने सफर को "सफर" करता येन-केन-प्रकारेण पूरा करता है !

अब तो समय आ गया है कि रेल विभाग अंग्रेजों के वक्त से चली आ रही, आम यात्रियों के जले पर नमक छिडकने वाली, ऐसी क्रियाओं को बंद कर उन कर-दाताओं को अधिकतम सुविधाऐं प्रदान करने पर ध्यान दे, जो रोज अपनी मेहनत से कमाई पूंजी को खर्च कर रेल यात्रा करने के बावजूद सकून प्राप्त नहीं कर पाते।           

2 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - राष्ट्रीय मतदाता दिवस और राष्ट्रपति का सन्देश में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Post sammalit karne ke lie aabhari hoon

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