बंगाल के सैकड़ों गांवों में निर्धन परिवार की महिलाएं अपनी छोटी-बड़ी जरुरत को पूरा करने के लिए अपने खूबसूरत बालों का सौदा कर रही हैं, बिना इस बात पर ध्यान दिए या सोचे कि उनकी इस प्रकृति-प्रदत्त नियामत को बिचौलिए औने-पौने दामों में खरीद कर निहायत ऊंची कीमतों में बाजार में जा बेचते हैं। पर उन्हें इससे कोई मतलब नहीं, बाल घर की खेती हैं, दो-तीन महीने में फिर उतने के उतने
कोलकाता से करीब सवा सौ की.मी. दूर मिदनापुर का काननडीहि गांव। आबादी करीब दो-सवा दो सौ के लगभग। समय शाम के तीन बजे के आस-पास। एक सायकिल सवार डुग-डुगी बजाता गांव के बीचो-बीच पहुँच खड़ा हो जाता है। उसके साथ ही एक बड़े से सायकिल ठेले में घरों में काम आने वाला लोहे-अल्युमिनियम और प्लास्टिक का सामान भरा हुआ है। हर गांव में साप्ताहिक हाट की तरह इनके आने का दिन भी निश्चित होता है। तभी एक महिला अपने हाथों में लिए करीब आठ-दस इंच लम्बे बालों की लट सायकिल सवार को थमा देती है जो उसे तौल कर उसके बदले में महिला की पसंद की कोई वस्तु उसे थमा देता है। घंटे भर में कोई 12-13 महिलाएं-युवतियां अपने बालों के बदले अपने मन-मुताबिक़ जींस ले खुश-खुश घर की ओर लौट जाती हैं और क्रेता भी आधा किलो के करीब "सामान" बटोर अपनी राह लगता है।
कोलकाता से करीब सवा सौ की.मी. दूर मिदनापुर का काननडीहि गांव। आबादी करीब दो-सवा दो सौ के लगभग। समय शाम के तीन बजे के आस-पास। एक सायकिल सवार डुग-डुगी बजाता गांव के बीचो-बीच पहुँच खड़ा हो जाता है। उसके साथ ही एक बड़े से सायकिल ठेले में घरों में काम आने वाला लोहे-अल्युमिनियम और प्लास्टिक का सामान भरा हुआ है। हर गांव में साप्ताहिक हाट की तरह इनके आने का दिन भी निश्चित होता है। तभी एक महिला अपने हाथों में लिए करीब आठ-दस इंच लम्बे बालों की लट सायकिल सवार को थमा देती है जो उसे तौल कर उसके बदले में महिला की पसंद की कोई वस्तु उसे थमा देता है। घंटे भर में कोई 12-13 महिलाएं-युवतियां अपने बालों के बदले अपने मन-मुताबिक़ जींस ले खुश-खुश घर की ओर लौट जाती हैं और क्रेता भी आधा किलो के करीब "सामान" बटोर अपनी राह लगता है।
यह दृश्य बंगाल के किसी एक गांव का नहीं है। मुर्शिदाबाद, मिदनापुर, लालगोला, बनगाँव, बेहरामपुर जैसे दसियों जिलों के सैकड़ों गांवों में निर्धन परिवार की महिलाएं अपनी छोटी-बड़ी जरुरत को पूरा करने के लिए अपने खूबसूरत बालों का सौदा कर
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बाजार की सबसे बड़ी पूर्ती हमारे मंदिरों से होती है पर गांव-देहात से इकट्ठा किए गए बालों की मांग इसलिए ज्यादा होती है क्योंकि वे प्राकृतिक और बिना रंग, ट्रीटमेंट या मेंहदी लगे होते हैं। सबसे ज्यादा मांग डेढ़ से दो फुट लम्बे बालों की है जिनकी कीमत करीब 16000 रुपये किलो तक होती है।
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पर उधर व्यवसाय में कुछ भी होता रहे पर अगली बार जब भी कटिंग करवाएं तो प्रकृति की इस नियामत को फ़िजूल की चीज ना समझें हो सकता है कुछ ही दिनों बाद आपके ये ही बाल, कुछ रूप-रंग बदल कर, अपनी कीमत वसूल, किसी जरूरतमंद के सिर की शोभा बढ़ा रहे हों।
8 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-06-2016) को "मन भाग नहीं बादल के पीछे" (चर्चा अंकः2363) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी
स्नेह बना रहे
adbhut jankari ...
कविता जी,
सदा स्वागत है
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 10/06/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
कुलदीप जी, धन्यवाद
बहुत अच्छी जानकारी ।
मधुलिका जी, 'कुछ अलग सा' पर सदा स्वागत है आपका
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