शनिवार, 23 अप्रैल 2016

I.P.L. में ऐसी कौन सी देश हित की भावना जुडी है ?

पानी की समस्या सिर्फ हमारी ही नहीं है सारा संसार इस से जुझ रहा है। पर विडंबना यह है कि अपने देश में कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने मतलब के सिवा और कुछ भी नज़र नहीं आता। धन-बल और सत्ता के मद में वे कोर्ट के आदेश की भी आलोचना से बाज नहीं आते और अपनी गलत बात पर अड़े रहते हैं...

अपनी बात कहने से पहले नम्रता पूर्वक यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि क्रिकेट बचपन से ही मेरा प्रिय खेल रहा है और अभी भी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में, जहां खिलाड़ी देश के लिए खेलते हैं, गहरी रूचि है। पर समझ नहीं आता कि I.P.L. जैसे तमाशों का, जो पैसे और सिर्फ पैसों के लिए आयोजित किए जाते हों, वह भी आज की विषम परिस्थितियों और परिवेश में आयोजन करने का क्या औचित्य है ? अभी पिछले दिनों महाराष्ट्र में पानी 
की भारी कमी के कारण कानून की  फटकार खाने के बाद ही वहां होने वाले मैचों को दूसरे राज्यों में शिफ्ट किया गया। क्या आयोजकों को यह गंभीर संकट दिखाई नहीं पड रहा था ? फिर सवाल यह भी उठता है कि क्या दूसरे राज्यों में पानी की इतनी बहुलता है कि उसे इस भयंकर गर्मी में खेतों-खलिहानों में उपयोग करने के बजाए  खेल के मैदानों के रख-रखाव में बर्बाद कर दिया जाए ? गर्मी के मौसम में ऐसे नौटंकीनुमा खेलों को अपने देश के किसी भी राज्य या फिर विदेश में करवाने से पानी की बचत तो नहीं हो जाएगी। क्योंकि सच्चाई यही है कि यह समस्या सिर्फ हमारी ही नहीं है सारा संसार इस से जूझ रहा है। पर विडंबना यह है कि अपने देश में कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने मतलब के सिवा और कुछ भी नज़र नहीं आता। धन-बल और सत्ता के मद में वे कोर्ट के आदेश की भी आलोचना करने से 
बाज नहीं आते और अपनी गलत बात पर अड़े रहते हैं।  ऐसे लोगों का बेहूदा तर्क रहता है कि खेल के बदले वह राज्य के राजस्व में योगदान दे रहे हैं ! कोई उनसे पूछे कि उनके दिए गए पैसों से घटते जल-स्तर की भरपाई

कैसे हो सकती है ? अब सवाल यह भी उठता है कि इस तमाशे का आयोजन गर्मी में ही क्यों ? तो आयोजकों का कहना है कि दुनिया भर के कार्यक्रमों से ताल-मेल बिठा कर ऐसा करना पड़ता है,     तो हमारे यहां ही 

ऐसा मौसम क्यों चुना जाता है ?  जब कि दुनिया भर के क्रिकेट के खेल की नकेल हमारे हाथों में है !

अब सारे मसले का लब्बो-लुआब यही है कि इन सब का मूल पैसा है। जिसके लिए बड़े से बड़ा खिलाड़ी वह चाहे देसी हो या विदेशी बिकने तक को तैयार रहता है, जैसे कोई उपभोक्ता वस्तु हो।  फिर नैतिकता जैसी कोई मजबूरी नहीं होती, चाहे जिस किसी की तरफ से किसी के विरुद्ध खिलवा लो। इनकी तुलना उन भाड़े के सैनिकों से की जा सकती है. जो पैसे के लिए किसी भी देश के लिए लड़ने पहुँच जाते थे। ये खिलाड़ी भाई लोग भी कहीं भी, कैसी भी जगह,     किसी के साथ  
भी, किसी भी बेढब मौसम में मैदान में उतर जाते हैं। कई खिलाड़ी तो अपने देश के बोर्ड से बगावत कर भारत सिर्फ पैसे के लिए खेलने आने लगे हैं। उस पर विडंबना देखिए कि जिन खिलाड़ियों के बल-बूते पर यह आयोजन सफल होता है, जिन्हें देखने भीड़ उमड़ती है, उन्हीं की मर्जी- नामर्जी का कोई मूल्य नहीं रहता।  ये बिके हुए खिलाड़ी यह भी प्रतिवाद नहीं कर सकते कि सारे खेल रात को ही हों।  टी. वी. प्रसारण की आमदनी के लालच में जिस दिन दो मैचों के आयोजन की मज़बूरी होती है, वैसे एक चौथाई मैच दोपहर बाद भरी गर्मी में ही शुरू करवा दिए जाते हैं। क्योंकि एक साथ एक ही समय दो मैच होने पर टी.वी. चैनलों पर दर्शकों की संख्या बंटने की स्थिति हो जाती है। जिससे तथाकथित T.R.P. पर फर्क पड़ता है।  अब गुलामों की क्या हैसियत कि मालिकों की इच्छा के विरुद्ध चूँ भी कर सकें ? जैसा कहा जाता है वैसा करने को वे मजबूर होते हैं।

इस तरह के आयोजन की सफलता में सबसे बड़ा हाथ दर्शकों का होता है जो इन तमाशों की असलियत जानते-बूझते हुए  भी अपनी उपस्थिति से इसे सफल बनाते हैं,  भले ही परिस्थितियां कैसी और कितनी भी  प्रतिकूल हों। आज देश के किसी भी स्टेडियम में जहां   I.P.L. खेली जा रही है, वहां दोपहर बाद की धूप से दर्शकों के बचाव के लिए पूरी छत नहीं है। आधे से अधिक दर्शकों को मंहगे टिकट खरीदने पर भी धूप में बैठ कर ही खेल देखना पड़ता है। गर्मी से बचाव तभी हो पाता है, जब सूर्य ढल जाए। पर फिर भी लोग तो जाते ही हैं ! क्या जाने वाले सारे लोग जल की कमी या वातावरण के प्रदूषण से अनभिज्ञ होते हैं ? नहीं ! यही बात और उन लोगों का इस खेल के प्रति प्रेम  इस आयोजन की सफलता का राज है।

घूम-फिर कर  के बात वहीं, जागरूकता पर आ जाती है कि जब तक हम इस जैसे क्षणिक रोमांचों के सुख को त्याग, सामने मुंह बाए खड़ी समस्याओं का सामना करने के लिए एकजुट हो कटिबद्ध नहीं होंगे, तब तक किसी भी समस्या का हल नहीं निकल पाएगा। फिर चाहे वह पानी की हो या हवा के प्रदूषण की !  

3 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Digvijay ji, aabhar

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व मलेरिया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Harshvardhan ji,
Aabhar

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