अपने नाम के अनुसार सूर्योदय से सूर्यास्त तक यह आम पर्यटक के लिए, पांच रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क के साथ खुला रहता है। आज इसकी प्रसिद्धि का सारा श्रेय हरियाणा सरकार को जाता है, जिसने इसके पास खाली पड़े भूभाग पर 1987 में हस्त-शिल्प और बुनकरों की भलाई को मद्दे-नज़र रख एक मेले की शुरुआत की। जिसने धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली, उसके साथ ही सूरजकुंड भी दुनिया में मशहूर हो गया
कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो समय के साथ अपनी पहचान खोती चली जाती हैं। भागम-भाग के इस युग में लोगों को फुर्सत ही नहीं रहती अपने मतलब के सिवा कुछ देखने-सुनने की। यहां तक की उसके आस-पास रहने वाले लोग भी उसकी ऐतिहासिक महत्ता को भूल जाते हैं। पर फिर शायद संयोगवश कुछ ऐसा घटित हो जाता है, जिससे वह जगह या स्थान देश ही नहीं विदेश में भी अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहता है।
सूरजकुंड, दिल्ली-हरियाणा-राजस्थान को छूती अरावली पर्वत श्रृंखला के पास हरियाणा के फरीदाबाद शहर के नजदीक बहरपुर और लक्करपुर गांवों के बीच, दसवीं सदी का बना हुआ मानवनिर्मित प्राचीन सरोवर या झील है। सतह से करीब 15 से 20 फिट गहरा, एक फ़ुटबाल के मैदान के बराबर, इसका तल हरी-पीली घास से
घिरा रहता है। उगते सूरज की तरह इसकी आकृति अर्द्ध वृताकार है। जिसकी तुलना किसी खुली नाट्यशाला की बनावट से भी की जा सकती है जिसमें नीचे तल तक जाने के लिए चट्टानों को काट कर सीढ़ियां बनाई गयी हैं। जिसका प्रतीकात्मक महत्व भी है। इसके नामकरण के पीछे भी दो धारणाएं हैं। पहली तो इसकी बनावट को कारण मानती है, दूसरी के अनुसार क्योंकि इसे सूर्य भक्त तोमर राज, सूरज पाल ने बनवाया था, इसलिए
इसका नाम सूरजकुंड होना ज्यादा उचित है। राजा सूरजपाल ने इसके साथ ही एक सूर्य मंदिर का निर्माण भी करवाया था जिसके भग्नावशेष अभी भी दिख जाते हैं। वैसे तो यह कुण्ड सूखा ही रहता है पर बरसातों में इसकी छटा देखने लायक होती है। यहाँ से कुछ दूरी पर एक सिद्ध कुण्ड भी है जिसके बारे में धारणा है कि उसके पानी में चर्म रोगों से मुक्त करने की तासीर है। सूरजकुण्ड से करीब दो की.मी. दूर अरावली पर्वत श्रृंखला के पास अनगपुर डैम है। जिसमे पहाड़ियों से आ कर पानी जमा होता रहता था, उसी से एक जलस्रोत सूरजकुंड को पानी उपलब्ध करवाता था। इतिहासकारों ने तो खुदाई कर इसका संबंध प्रैतिहासिक काल और प्रस्तर युग से भी खोज निकाला है। उनके अनुसार यह क्षेत्र उस समय के मानव की रिहायश के बहुत अनुकूल था।
कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो समय के साथ अपनी पहचान खोती चली जाती हैं। भागम-भाग के इस युग में लोगों को फुर्सत ही नहीं रहती अपने मतलब के सिवा कुछ देखने-सुनने की। यहां तक की उसके आस-पास रहने वाले लोग भी उसकी ऐतिहासिक महत्ता को भूल जाते हैं। पर फिर शायद संयोगवश कुछ ऐसा घटित हो जाता है, जिससे वह जगह या स्थान देश ही नहीं विदेश में भी अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहता है।
सूरजकुंड, जैसा अभी है |
जंगल से विचरने आए वानर |
सूरजकुंड, दिल्ली-हरियाणा-राजस्थान को छूती अरावली पर्वत श्रृंखला के पास हरियाणा के फरीदाबाद शहर के नजदीक बहरपुर और लक्करपुर गांवों के बीच, दसवीं सदी का बना हुआ मानवनिर्मित प्राचीन सरोवर या झील है। सतह से करीब 15 से 20 फिट गहरा, एक फ़ुटबाल के मैदान के बराबर, इसका तल हरी-पीली घास से
सरोवर तल |
सीढ़ियों के अलावा समतल उर्ध्वगामी पथ |
जंगल को छूता एक छोर |
संरक्षण
दक्षिण दिल्ली से महज 8 किमी की दूरी पर स्थित, कभी अपनी पहचान को खोता सूरजकुंड, आज एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल और प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट बन चुका है। आज इसकी देख-रेख, संरक्षण का भार भारत सरकार के पास है। अपने नाम के अनुसार सूर्योदय से सूर्यास्त तक यह आम पर्यटक के लिए, पांच रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क के साथ खुला रहता है।
आज इसकी प्रसिद्धि का सारा श्रेय #हरियाणा सरकार को जाता है, जिसने इसके पास खाली पड़े भूभाग पर 1987 में हस्त-शिल्प और बुनकरों की भलाई को मद्दे-नज़र रख एक मेले की शुरुआत की। जिसने धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली है। उसके साथ ही सूरजकुंड भी दुनिया में मशहूर हो गया। एक फरवरी से पंद्रह फरवरी तक चलने वाले इस मेले में आज दर्जनों विदेशी देश भी अपनी कला और कलाकारों के साथ भाग लेते हैं।
- कल मेले की यात्रा
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2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-02-2016) को ''चाँद झील में'' (चर्चा अंक-2248)) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चर्चा मंच परिवार की ओर से स्व-निदा फाजली और अविनाश वाचस्पति को भावभीनी श्रद्धांजलि।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार, शास्त्री जी
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