भीषण, झुलसा देने वाली गर्मियों के बाद सकून देने वाली बरसात धीरे-धीरे सारे देश को अपने आगोश में लेने को आतुर है. जून से सितंबर तक हिंद और अरब महासागर से उठ कर अपने देश को दक्षिण-पश्चिम दिशा से घेर कर जमीन की तरफ पानी लेकर आने वाली हवाओं को मानसून के नाम से जाना जाता है.
मानसून नाम अरबी भाषा के "मावसिम" शब्द से आया है.
घिर आए बदरवा |
पर अपने देश में ऐसे-ऐसे लोग हुए हैं जो बिना किसी यंत्र-पाती के आने वाले समय का सटीक आंकलन करने की क्षमता रखते थे. आज भी गाँव-देहात में "घाघ-भड्डरी" संवाद इनमें प्रमुख है. कहते हैं उनकी काव्यात्मक भविष्यवाणियां कभी भी गलत नहीं होती थी। उनके द्वारा की गयी ऎसी कुछ भविष्यवाणियों को आप भी आजमा और परख सकते हैं -
# कितनी भी कड़ी धूप हो, जब चिड़ियाँ धूल में नहाने लगें तो समझ लीजिए दो-एक दिन में वर्षा होने वाली है.
# जब चीटीयाँ अपने अंडे मुंह में दबाए किसी ऊंची जगह पर जाने लगें तो जान जाना चाहिए की बरसात दस्तक दे चुकी है
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# मानसून की आहट होते ही मछलियाँ पानी की पर आ तैरने लगती हैं।
# मोर का नाचना भी पानी बरसने का संकेत होता है.
# कुछ और पक्षी भी अपने हाव-भाव से आने वाली बरसात की पूर्व सूचना दे देते हैं, जिनमे पपीहा, कूकू, घोघिल तथा कई प्रवासी पक्षी सम्मलित हैं।
# गाँव के बूढ़े-बुजुर्ग तो बादलों के रंग और हवा के तापमान तथा रुख को देख कर आज भी मौसम का सटीक आकलन कर लेते हैं।
पर जिस तरह आजकल पर्यावरण दूषित हो रहा है, 'ग्लोबल वार्मिंग' बढ़ रही है उससे डर है कि मानसून जो ज्यादातर भारत पर सह्रदय रहा है वह आने वाले समय में अपना समय और दिशा बदल सकता है. ऐसा हो इसके पहले सतर्क होने की जरूरत है.
1 टिप्पणी:
सबको प्रतीक्षा रहती है, मानसून की।
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