शनिवार, 4 मई 2013

“अंतिम यात्रा का ब्रांडेड पैकेज”


इंसान के जन्म लेते ही बाजार उसे हाथों-हाथ लेने लगा है और उसकी क्षण-क्षण की प्रगति को पग-पग पर भुनाना शुरु कर दिया है तो  उसकी अंतिम यात्रा, उसके निर्वांण के मौके को वह कैसे छोड सकता है। जबकी यह तो कभी खत्म ना होने वाला व्यापार है। अभी तक शायद कुछ भ्रांतियों, कुछ लोक-लाज, कुछ आलोचनाओं के डर से किसी ने शायद चाहते हुए भी इस तरह का कदम नहीं उठाया है पर लगता है बाजार की गिद्ध दृष्टि से धनागम का यह अजस्र स्रोत ज्यादा दिन तक बचा नहीं रह सकेगा।

बिक्री हो ना हो पर हर छोटे-बडे शहर में नए-नए माल का अवतरित होना निर्बाध रूप से जारी है। ये होते भी करीब-करीब एक जैसे ही हैं। ग्राहकों से ज्यादा सेल्स ब्वाय या गर्ल्स द्वारा जगह घेरे रहने वही जूते-चप्पलों, कपडे-लत्तों की ढेरों दुकानें। इनके बीच-बीच में  खाने-पीने का जुगाड ले बैठे कुछ देसी, विदेशी खान-पान से जुडे लोग। किसी एक "फ्लोर" में एक बडी सी “मनीहारी” की दुकान। किसी एक तल पर जनता के मनोरंजन हेतु एकाधिक स्क्रीन लगाए बैठे फिल्म वाले। एक तल से दूसरे तल तक आने-जाने के लिए चलित नसैनियां। शहर, स्थान को छोड सब एक जैसा, मिलता-जुलता। फिए भी लोग आते हैं भीड लगी रहती है पर वे खरीदते कम वातानुकूलिता का आनंद लेते हुए समय बिताने ज्यादा आते हैं।  इनको रिझाने को तरह-तरह के उचित-अनुचित ढंग माल वालों की ओर से भी अपनाए जाते रहते हैं।

ऐसे ही एक दिन आफिस से एक नवनिर्मित, विशाल व भव्य,  बाजार द्वारा फेंके गये फंदे को देखने चला गया, लौटा तो बेहद थका हुआ था घर आते ही नींद पूरी तरह हावी हो गयी। पर माल की भव्यता सपने में भी तारी रही। खुद को वहीं घूमता पा रहा था। ऐसे में ही अचानक एक शो-रूम के सामने पैर ठिठक गये। कुछ नया और हट कर लग रहा था उसके प्रवेश द्वार पर बडे-बडे अक्षरों में लिखा हुआ था “अंतिम यात्रा का सुगम ब्रांडेड पैकेज”। नयी चीज देख जिज्ञासा जगी। इस बला को जानने अंदर बैठी बाला के पास गया। उसने मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया। फिर मेरे पूछने पर उसने जो बताया वह हैरतंगेज तो था ही बाजार की अनंत भूख के लिए आम जन की मेहनत की कमाई रूपी खून का निर्बाध प्रवाह जारी रखने के षडयंत्र का भयावह रूप भी सामने ला रहा था।   

बाला के अनुसार आज के भागा-दौडी के जमाने में जो चीज सबसे कम उपलब्ध है वह है समय। इसी कारण चाहते ना चाहते हुए हम अपने कई अनुष्ठानों को पूरा नहीं कर पाते। इसके अलावा बहुतेरे सम्पन्न घरों के माता-पिता वृद्धाश्रम में दिन गुजारते इहलोक से परलोक को रवाना हो जाते हैं। इसी सब को मद्दे नज़र रख हमने यह नया “कांसेप्ट शुरु किया है। जिस तरह आप शादी-ब्याह, जन्म दिन, मुंडन, जनेऊ आदि के मौकों पर पैकजों की सुविधा लेते हैं उसी तरह हम इंसान की अंतिम यात्रा को बिना किसी अडचन और असुविधा के पूरी करने की जिम्मेदारी लेते हैं। बस आपको शव का एड्रेस और अपनी जरूरतों का पूरा ब्योरा हमें देना होता है। बाकी माचिस से लेकर पंडित और अस्थी विसर्जन से लेकर पगडी तक का सारा जिम्मा हम ले लेते हैं।  हमारे पंडित भी अपने विषय में मास्टर या पी.एच.डी. डिग्री धारी होते हैं जो अपने काम को बखूबी समझ कर संबंधित परिवार की भावनाओं का ख्याल रखते हुए पूरी निष्ठा और विधी पूर्वक सम्पन्न करवाते हैं। इन दिनों परिवार में बाहर से आए लोगों के खाने-पीने-रहने की भी हम समुचित व्यवस्था करते हैं। इस कर्म-कांड में प्रयुक्त तमाम वस्तुएं “ब्रांडेड कम्पनियों” की ही प्रयोग में लाई जातीं हैं। जैसे बांस वगैरह हम सुदूर आसाम से मंगाते हैं। चिता की लकडियां भी करीने से तराशी हुई एक सार होती हैं जिनसे हमारे विशेषज्ञ अंतिम शय्या तैयार करते हैं जो देखने में बिल्कुल आरामदायक बिस्तर का एहसास करवाती है। दहन स्थल पर प्रयुक्त होने वाली सारी सामग्री शुद्ध और ब्रांडेड हो इसका पूरा ख्याल रखा जाता है। शव को श्मशान तक लाने हेतु वातानुकूलित वैन प्रयुक्त की जाती है। इतना ही नहीं घर से लोगों को लाने और छोडने के लिए वातानुकूलित बस भी मुहैय्या करवाई जाती है। बात हो ही रही थी कि तभी वहां कुछ "अप-टु-डेट सज्जन" बुकिंग के लिए आ गये और मेरी फिर ना आने वाली नींद खुल गयी। 

मैं बाकी रात भर सोचता रहा कि जब इंसान के जन्म लेते ही बाजार उसे हाथों-हाथ लेने लगा है और उसकी क्षण-क्षण की प्रगति को पग-पग पर भुनाना शुरु कर दिया है तो उसके निर्वांण के मौके उसकी अंतिम यात्रा  को वह कैसे छोड सकता है। जबकी यह तो कभी खत्म ना होने वाला व्यापार है। अभी तक शायद कुछ भ्रांतियों, कुछ लोक-लाज, कुछ आलोचनाओं के डर से किसी ने शायद चाहते हुए भी इस तरह का कदम नहीं उठाया है पर लगता है बाजार की गिद्ध दृष्टि से धनागम का यह अजस्र स्रोत ज्यादा दिन तक बचा नहीं रह सकेगा।

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश इस बाजार से मुक्त हो कुछ समय बिता सकें..

संगीता पुरी ने कहा…

बाजार हमें अपने शिकंजे में ले चुका है ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार...!

P.N. Subramanian ने कहा…

यह सेवा कुछ शहरों में उपलब्ध है. मृत्यु से सम्बंधित पूरे कर्मकांड (दाह संस्कार सहित) करवाने का अनुभव है. खान पान की व्यवस्था अलग और इसे भी अतिरिक्त शुल्क देकर मौज कर सकते हैं।

jr... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
jr... ने कहा…

Umar to nahin hui ise book karne ki magar...aisa offer bhi bazaar me uplabdh hai jaanke aachambhit hua...


thank you for posting.

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