बुधवार, 24 अप्रैल 2013

मोटापे पर वजन की मार

भट्ट साहब का ध्यान इस ओर शायद नहीं गया कि अपनी इस सलाह से वे जिमों, व्यायामशालाओं, स्लिम करने का दावा करने वाले पेय और खाद्य बनाने वाली कंपनियों का परोक्ष-अपरोक्ष रूप से कितना भला कर रहे हैं। ऐसा त्तो नहीं कहीं उनकी भी ऐसी कोई संस्था हो।

मोटापा इंसान के लिए खतरे की जड है, यह सभी जानते हैं। यह भी सही है कि यह अपने आप में खुद ही एक बिमारी है जिसके दसियों नुक्सान हैं। इन सब के अलावा मोटे लोगों के लिए एक और बुरी खबर है, यदि नार्वे के एक अर्थ शास्त्री का सुझाव मान लिया गया तो हवाई यात्रा करने वाले स्थूलकाय लोगों को अपने वजन के हिसाब से पैसा चुकाना पडेगा। उनके अनुसार ऐसा करना स्वास्थ्य, वित्त और पर्यावरण के लिए लाभदायक होगा। 

नार्वे यूनिवर्सिटी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर भरत भट्ट ने सलाह दी है कि एयरलाइन्स को हवाई यात्रियों से उनके वजन के मुताबिक पैसा लेना चाहिए। भट्ट ने ‘जर्नल ऑफ रेवेन्यू एंड प्राइसिंग मैनेजमेंट’ में लिखा है कि इससे लोग अपना वजन घटाने को प्रेरित होंगे जिससे उन्हें दोहरा लाभ होगा, एक तो वे स्वस्थ रहेंगे दूसरा उनका किराया घटने से उनकी बचत भी होगी। उनके मुताबिक इस तरह की योजना को अपनाने वाले जहाज में हल्के वजन वाले ज्यादा यात्रियों को लिया जा सकेगा। इससे एयरलाइन्स को भी फायदा होगा। साथ ही यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह ईंधन के उपयोग में भी कमी लाएगा।

भट्ट ने तीन आप्शन पेश किए है, जिन्हें वह ‘अपने वजन के हिसाब से हवाई किराया देना’ कहते हैं। पहले के अनुसार यात्री और उसके सामान के वजन के हिसाब से किराया तय होगा। दूसरे के मुताबिक एक आधार किराया होगा जो सबके लिए होगा। इसके बाद ज्यादा वजन वाले यात्रियों से अतिरिक्त पैसा वसूला जाएगा। 

पर भट्ट साहब का ध्यान इस ओर शायद नहीं गया कि अपनी इस सलाह से वे जिमों, व्यायामशालाओं, स्लिम करने का दावा करने वाले पेय और खाद्य बनाने वाली कंपनियों का परोक्ष-अपरोक्ष रूप से कितना भला कर रहे हैं। ऐसा त्तो नहीं कहीं उनकी भी ऐसी कोई संस्था हो।

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पता नहीं, व्यवसायी तो कुछ भी कर सकता है।

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

sahi kaha praveen jee ne ...:)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिलबाग जी, हार्दिक धन्यवाद। स्नेह बना रहे।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रवीण जी, कभी कवि की पहुंच, रवि के लिए भी अगम्य जगह तक ही मानी गयी थी। पर बाजार ने तो विचार की पहुंच को भी पीछे छोड दिया है।

P.N. Subramanian ने कहा…

वजन के हिसाब से किराये की बात तो हमे जम गयी.

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