भारत दास वैष्णव।
हमारे संस्थान में कार्यरत एक सज्जन। प्रभू की गाय। ज्यादातर "फिजिकली प्रेजेंट, माइंडली एबसेंट" अपने में मग्न। संस्थान में तो सभी के कृपापात्र हैं। पर अभी दो-तीन दिन पहले ही पता चला कि उपरवाला भी उन पर खास मेहरबान है (तभी तो पहलवान हैं) इसके साथ ही यह भी सत्य सामने आया कि कहावतें यूँही नहीं बनी उनके पीछे भी ठोस कारण हुआ करते थे। जैसे बंगाली भाषा में एक कहावत है कि "जिस दिन तकदीर खराब हो उस दिन यदि ऊंट पर भी बैठे हों तो कुत्ता काट लेगा।"
हुआ यह कि अपने भारत दास जी (भरत नहीं) अपने में खोये, मग्न चले जाते हुए सडक विभाजक पर बिना देखे-सुने सायकल समेत दूसरी तरफ अवतरित हो गये। उधर से एक युवक जो बैठा तो अपनी बाइक पर था पर सवार हवा पर था, आंधी की तरह उड़ा आ रहा था। इन्हें अचानक सामने पा ब्रेक लगाने की गलती कर बैठा, फलस्वरुप वह कहीं गया उसकी गाडी कहीं गयी। गनीमत रही कि उसका रंग ही रतनारा हुआ, कोई अंग भंग नहीं हुआ अलबत्ता उसके कपडे जरूर "डिजायनर और हवादार" हो गये। पर बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, उस दिन तो उसका राहू, शनि पर सवार था। वह अभागा पीछे एक पुलिस की गाडी को "ओवरटेक" कर भागा आ रहा था। उसके गिरने पर पीछे आती पुलिस कर्मियों को मौका मिला, उसे धर दबोचा और दो-चार हाथ लगा दिए।
इधर इतना सब होने के बावजूद जिसके कारण यह सब हुआ वह भारत दास जी "ओह, ओह, बेचारा" कहते हुए निरपेक्ष भाव से अपने रास्ते चल दिए। उन्हें पता ही नहीं चला कि वह आज प्रभू कृपा से चोट-ग्रस्त होने से बाल-बाल तो बचे ही, पिटने से भी बच गये हैं।
5 टिप्पणियां:
बड़ा सधा सा भाग्य है, पहलवान का मित्र |
आभार-
अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान...!
हा हा हा ... गज़ब किस्सा था साहब ! मान गए वैष्णव साहब को !
आज की ब्लॉग बुलेटिन यह कमीशन खोरी आखिर कब तक चलेगी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम जी,
धन्यवाद। यह एकदम सच्चा वाकया है। वैसे "अपने" कलकत्ते के राज भवन पर भी एक पोस्ट डाली थी। शायद नजर नहीं पडी होगी।
जाको राखो साइयाँ..डाँट सके न कोय..
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