बुधवार, 6 मार्च 2013

नियामत हैं आँखे, सम्भाल कर रखें

आंखें, इंसान को सौंदर्यबोध कराने के लिए प्रकृतिप्रदत्त एक अजूबा अंग। सोच के ही सिहरन होती है कि यदि ये ना होतीं तो दुनिया कितनी बेनूर होती। पर जब यह अनमोल चीज हमारे पास है तो हम इसकी कीमत ना जान इसकी उपेक्षा करते रहते हैं।       

आज प्रदूषण, कम्प्यूटर, टी.वी., सेलफोन, धूल-मिट्टी, तनाव और भी ना जाने क्या-क्या, यह सब धीरे-धीरे हमारी आंखों के दुश्मन बनते चले जा रहे हैं। पहले जरा से साफ पानी के छीटों से ही ये अपने आप को दुरुस्त रख
लेती थीं। पर लगातार इनकी अनदेखी अब इन पर भारी पड़ने लगी है। काम में मशगूल हो, "जंक फूड़" खा, विपरीत परिस्थितियों में देर तक काम कर लोग अंधत्व को न्यौता देने लग गये हैं। लगातार कम्प्यूटर आदि पर काम करने से आंखों के गोलकों पर भारी दवाब पड़ता है जिससे छोटी-छोटी नाजुक शिरायें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं इससे खून का दौरा बाधित हो नुक्सान पहुंचाता है और मजे की बात यह कि इतना सब घट रहा होता है पर हमें इसका पता भी  नहीं चलता। आज के व्यस्तता पूर्ण समय में हम  काम में ड़ूब कर पलकें झपकाना ही भूल जाते हैं जो की आंखों की बिमारी का एक बड़ा कारण है। इससे आंखों में सूखापन बढ जाता है जो इनकी सफाई और तरलता बनाए रखने में बाधा उत्पन्न करता है। डाक्टरों के अनुसार रोज कम से कम 15 मिनट का आंखों का व्यायाम और थोड़ी सी देख-भाल कर इन्हें छोटी-मोटी बिमारियों से दूर रखा जा सकता है। उम्र के साथ-साथ सफेद मोतीया उतरना एक  आम बात है, जिसका इलाज आजकल बहुत आसान भी हो गया है। पर     ग्लौकोमा   जिसे आम भाषा में काला मोतिया कहा जाता है वह अभी भी आंखों का सबसे बडा दुश्मन है। गुप-चुप रूप में बढने वाला यह रोग बच्चों को भी हो सकता है।  
 
आंखों के अंदर एक तरल पदार्थ का निर्माण व निकास लगातार होता रहता है। यह प्रक्रिया आखों में  एक निश्चित दबाव बनाए रखती है, पर जब किसी कारणवश इस तरल पदार्थ के निकास में अवरोध उत्पन्न होता है तो आखों का दवाब  बढ़ जाता है जिससे ऑप्टिक नर्व को स्थायी नुकसान पहुँच सकता है। ऑप्टिक नर्व के कारण ही हम किसी वस्तु या व्यक्ति को देखने में सक्षम हो पाते हैं। आखों के दबाव के बढ़ने के कारण ऑप्टिक नर्व के क्षीण होने को ही  ग्लौकोमा या काला मोतिया कहा जाता है। यह रोग आखों की रोशनी को पूर्णतया समाप्त कर सकता है और अंधापन ला सकता है। इसकी रोक-थाम शुरुआती दौर में हो सकती है पर इसका पता ज्यादातर तभी चलता है जब काफी हानि हो चुकी होती है और आँख  दृष्टिविहीन हो चुकी होती है। इसकी भयावता का पता इसी से लगाया जा सकता है कि खुद डाक्टरों तक को खुद  के इससे पीडित होने का भी  पता नहीं चल पाता। वैसे आखों में लाली, अत्यधिक पीड़ा, सिरदर्द, उल्टी आना, रोशनी में अचानक कमी या रंगीन
गोले दिखना आदि  ग्लौकोमा  की गंभीर स्थिति के लक्षण हैं। इसलिए ऐसे लक्षणों के दिखते ही या फिर 45 की उम्र पार
करने के बाद नियमित रूप से आखों की जांच करवाते रहना चाहिए। अगर चश्मे का नम्बर बार-बार बदल रहा हो, रात में अंधेरे में देखने में दिक्कत हो रही हो, जब सीधे देखने पर आखों के किनारे से न दिखायी दे रहा हो, आखों और सिर में दर्द रहता हो तो इन बातों को  नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। 

वैसे भी आंखों की कुछ देख-भाल खुद भी करते रहना चाहिए। कंप्यूटर पर काम करते समय 15-20 मिनटों के बाद कुछ देर के लिए विश्राम जरूर लें। रोज 15 मिनट का आंखों का व्यायाम काफी है इन्हें सुरक्षित रखने के लिए।

* एक बड़ी सी घड़ी की कल्पना करें। फिर आंखें बंद कर उसके हर अंक पर नजर ड़ालें,  तीन सेकेंड़ रुकें फिर घड़ी के मध्य में आ जाएं। इस तरह सारा चक्कर पूरा कर आंखों पर बिना जरा सा भी दवाब ड़ाले हथेलियां रख पांच बार घड़ी की दिशा में और पांच बार विपरीत दिशा में आंखें घुमाएं। फिर हाथ हटा जल्दी-जल्दी बीस बार पलकें झपकाएं।

* हाथ में एक पेंसिल ले बांह पूरी खोल लें, सांस खीचें पेंसिल पर नज़र जमा उसे धीरे-धीरे अपनी ओर ला नाक से छुआएं, सांस छोड़ते हुए फिर पेंसिल को दूर ले जाएं। ऐसा पांच बार करें।

* आंखों के गढ्ढों के ऊपर सावधानी से उंगलियों से दवाब डालें, पांच सेकेंड रूकें फिर दवाब हटा लें ऐसा पांच मिनट तक करें।

* जब भी बाहर से आएं या घर पर भी हों तो साफ पानी से दिन में चार-पांच बार आंखों पर छीटें मारें। ठंड़े पानी की पट्टी रखने से भी बहुत आराम मिलता है। पर सब कुछ ठीक होने पर भी साल में एक बार डाक्टर से जांच जरूर करवा लेनी चाहिए।  क्योंकि आँख है तभी जहान  है.

5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

bahut bahut dhanyawad aisee sarthak jankari ke liye gagan ji .

travel ufo ने कहा…

आपका आशय सबकी समझ में आ रहा है

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही उपयोगी सलाह..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शालिनी जी, प्रवीण जी धन्यवाद। सदा स्वागत है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनु जी, तो क्या इरादा है? :-)

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