इसको देखने के लिए आम जनता को अनुमति नहीं होने के कारण देश की यह भव्य इमारत उतनी मशहूर नहीं हो सकी है जितनी प्रसिद्धि दिल्ली के राज भवन को प्राप्त है। पर इससे इसकी भव्यता, सुंदरता या कलात्मकता को कम कर के नहीं आंका जा सकता।
दिल्ली के राजधानी बनने के पहले अंग्रेजों ने कलकत्ते को अपनी राजधानी बना रखा था। आज भी उनके द्वारा बनाई गयी सरकारी इमारतें, रिहायशी भवन, पुल, सडकें अपनी मजबूती और भव्यता की कहानी आप कह रहे हैं। इन्हीं वास्तु-कला के भव्य, विशाल, अनुपम नमूनों के कारण आज भी कलकत्ता, जो अब कोलकाता हो गया है, को महलों के नगर के रूप में जाना जाता है। अपनी सुंदरता के कारण इसे पूर्व का पीटर्सबर्ग भी कहा जाता रहा है। उस समय यह देश का सबसे बडा, सुंदर, धनी और सुरुचिपूर्ण शहर था।
आजादी के पहले की बात है। बंगाल में ईस्ट इंडिया कम्पनी का राज था। पर वहां का गवर्नर जनरल रहता तो था एक आलीशान बंगले में पर वह था किराए का। अंग्रजों का मानना था कि उन्हें इस देश में सदा के लिए रहना है सो गवर्नर जनरल के लिए एक महल की आवश्यकता महसूस होने लगी। उसी को पूरा करने के लिए विशाल पैमाने पर एक भव्य इमारत का निर्माण कैप्टन चार्ल्स वाट की देखरेख में 1799 में शुरु किया गया जो 1803 में जा कर पूरा हुआ। उस समय 27 एकड में 84000 स्क्वा. फुट पर बने इस महल पर आज के हिसाब से करीब चार मिलियन पाउंड का खर्च आया था। इस तब तक के सबसे सुंदर भवन के खिताब वाले महल के प्रतिष्ठापन पर 800 अतिथि आमंत्रित किए गये थे।
पर तब से अब तक इसका नाम परिस्थितियों वश कई बार बदला जा चुका है। निर्माण के बाद इसे गवर्मेंट हाउस का नाम दिया गया था। फिर जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बाद में राज-काज ब्रिटिश हुकुमत को 1858 में सौंपा तो इसे वायसराय निवास बना दिया गया। फिर जब राजधानी कलकत्ते से दिल्ली चली गयी तो फिर यह महलनुमा इमारत बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर का आवस बनी और आखिरकार आजादी के बाद से अब तक और प्रदेशों की तरह यह बंगाल के गवर्नर के निवास "राज भवन" के रूप में विख्यात है।
शहर के बीचोबीच "मैदान यानि ईडेन गार्डेन" और "राइटर्स बिल्डिंग" के पास, कोलकाता के दिल धर्मतल्ला यानि एस्प्लैनेड से मुश्किल से पैदल दस मिनट की दूरी पर बने इस भवन में प्रवेश के छह रास्ते हैं। जिन पर उत्तर-दक्षिण दिशा में एक-एक तथा पूर्व और पश्चिम दिशा में दो-दो विशाल "गेट" बने हुए हैं। पूर्व और पश्चिम के गेटों पर विशाल मेहराबों पर शेर की मुर्तियां बनी हुई हैं। बाकि छोटे गेटों पर स्फिंक्स की मूर्तियां स्थापित हैं। बाहर से भवन का सबसे सुंदर रूप उत्तरी दरवाजे से दिखता है जो कि अंदर जाने का प्रमुख द्वार भी है। इसका केंद्रीय भवन जो एक सुंदर गुंबद से आच्छादित है, चारों ओर से गोलाकार निर्माणों से घिरा है। जिसमें दफ्तर तथा रिहायशी जगहें शामिल हैं। उस समय भी जब वातावरण इतना दुषित नहीं होता था तब भी इसमें प्राकृतिक हवा के आवागमन का पूरा ख्याल रखा गया है। तीन मंजिला भवन के उपर जाने के लिए चार कोनों में चार सीढियां बनी हुई हैं।
करीब साठ कमरों वाले इस भवन को सुंदर और भव्य बनाने के लिए हर संभव कोशिश की गयी है। यहां की कलाकृतियां, मुर्तियां, चित्र, पेंटिंग्स, फर्निचर, बागीचे उनका रख-रखाव हर चीज अनमोल, भव्य और अनूठी है। जगह-जगह से अनुठी वस्तुएं ला कर यहां संग्रहित की गयी हैं। कलकत्ते की पहली स्वचालित सीढी भी सर्वप्रथम यहीं लगाई गयी थी। इसको देखने के लिए आम जनता को अनुमति नहीं होने के कारण देश की यह भव्य इमारत उतनी मशहूर नहीं हो सकी है जितनी प्रसिद्धि दिल्ली के राज भवन को प्राप्त है। पर इससे इसकी भव्यता, सुंदरता या कलात्मकता को कम कर के नहीं आंका जा सकता। यह बंगाल का ही नहीं देश का भी गौरव है। काश इसे आम जनता भी निहार पाती !!!
2 टिप्पणियां:
रोचक आलेख..
कोलकाता की यह इमरात काफ़ी भव्य प्रतीत होती है. हम भी आह ही भर सकते हैं..
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