सोमवार, 14 जनवरी 2013

जीती-जागती "की-चेन"


पैसा कमाने के लिए इंसान क्या-क्या तरीके इजाद करता है और उसके लिए कहां तक नृशंस हो सकता है इसका उदाहरण चीन में शुरु हुए एक नये खब्त से समझा जा सकता है। चाहे "पेटा" वाले लाख कोशिश कर लें पर इंसान का शैतानी दिमाग जीव-जंतुओं पर जुल्म करने से बाज नहीं आता। चीन में भी हमारी तरह वास्तु इत्यादि पर विश्वास करने वाले लाखों लोग हैं। जो मानते हैं कि जल-जीवों को अपने साथ रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी धारणा को भुनाने के लिए किसी खब्ती दिमाग के व्यापारी ने वहां आजकल छोटी-छोटी मछलियों और कछुओं को प्लास्टिक की थैलियों में बंद कर "की चेन" की तरह बेचना शुरु कर दिया है। जिससे आशातीत कमाई होने की वजह से अब यह 'सोवेनियर' सडकों पर मिलना आम बात हो गयी है।   

हांलाकि जीव-जंतु की सुरक्षा को ले कर चिंतित रहने वाले लोग इससे काफी नाराज हैं पर बीजींग में इन "जिंदा की चेनों" की बिक्री पर कोई असर नहीं पड रहा है। बेचने वालों का कहना है कि वे इन जंतुओं के लिए खाने और आक्सीजन का पूरा ख्याल रख की-चेन बनाते हैं जिसमें वे महीनों जिंदा रह सकते हैं। पर जानकारों का कहना है कि वैसे वातावरण में ये नन्हें जीव ज्यादा दिन नहीं रह सकते। पर ये लोग चाहे जितना भी विरोध कर लें चीन में यह व्यापार बंद होते नहीं दिखता क्योंकि वहां इन नन्हें जीवों के बचाव के लिए कोई कानून है ही नहीं। सिर्फ जंगली जानवरों की रक्षा के लिए कानून बना हुआ है। 

वैसे वहां भी कुछ दयालू, नरम दिल लोग हैं जो इन सोवेनियर को खरीद कर इन जीवों को मुक्त कर देते हैं पर उससे कोई फायदा होते नहीं दिखता। क्योंकि  सात से.मी. का एक पैक दस यूआन यानि लगभग 1.5 डालर में ले कुछ सिरफिरे इसकी खरीदी में कई फायदे देखते हैं, एक तो किसी जीव को पालतू बनाने का सुख फिर जब तक जीव जिंदा हैं वे उनके लिए सौभाग्य कारक हैं और उनके मरने पर वे उन्हें भून कर खा भी सकते हैं।

तो जब तक इंसानों में ऐसी सोच रहेगी तब तक इन निरीह प्राणियों की जान सांसत में ही बनी रहेगी।                    

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!
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मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मयंक जी, बहुत दिनों बाद आना हुआ। मकर-सक्रांति की मंगलकामनाएं परिवार सहित स्वीकारें।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पता नहीं क्या करने पर आमादा हैं ये..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रवीण जी, फितूर है और क्या !!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

पागलों की कमी नहीं है ... हद है ... :(

चल मरदाने,सीना ताने - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अजीब लोग हैं ॥ नयी जानकारी मिली

अजय कुमार झा ने कहा…

मेरे लिए भी ये जानकारी बिल्कुल नई है और इंसानी सोच की दुष्कृति का नमूना भी । इंसान अपने आनंद के लिए जाने क्या क्या करने पर तुला हुआ है । हाय रे छुद्र इंसान और इंसान की सोच ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी, धन्यवाद।

P.N. Subramanian ने कहा…

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