सोमवार, 7 जनवरी 2013

दूसरों को दोष देना कितना आसान है.


दूसरों को दोष देना कितना आसान है.  आजकल किसी की  ज़रा सी असयमित बात पर तूफान उठ खडा होता है। यह ठीक है की नेता, अभिनेता या कोइ भी हो उसे समस्या की नजाकत को समझ कर ही बोलना चाहिए। पर दुसरे पर दोषारोपण करते हुए हम अपनी भूलों को नजरंदाज कर जाते हैं।   

पिछले दिनों एक गोष्ठी में जाना हुआ था। दिल्ली दुष्कर्म पर चर्चा होनी थी। विचार विमर्श के बाद आहार की भी व्यवस्था थी। अच्छी खासी उपस्थिति थी। वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे। सभी इस दर्दनाक और वहशियाना हरकत पर क्षोभ व  दुख प्रगट कर रहे थे। ज्यादातर का यही ख्याल था कि लोगों ने बच्चों को सहायता नहीं पहुंचाई। हम संवेदनाशुन्य होते जा रहे हैं।  

अभी दो-तीन वक्ता ही अपने उद्गार सामने रख  पाए थे कि धीरे-धीरे आधे सभागार ने अपनी उपस्थिति भोजन कक्ष में दर्ज करा दी। कुछ लोग  मजबूरी वश,  कुछ संस्था के सक्रीय सदस्य और कुछ वक्ताओं से संबधित लोग ही वहाँ बैठे दिखे बाकी सब उदर-पूर्ती  के लिए संवेदना को किनारे कर गए थे।  

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

क्या करें, बोलना भी एक कार्य ही था।

Vinay ने कहा…

सही बात है

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P.N. Subramanian ने कहा…

हर आयोजन का यही हाल है.

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