गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

सीख ऐसी भी तो हो सकती थी।


पुरानी कहानी है कि एक गुरु अपने शिष्यों को लेकर एक जंगल से कहीं जा रहे थे। एक दिन पहले ही भयानक तूफान वहां से तबाही मचाते हुए गुजरा था। जिसके फलस्वरूप बडे-बडे पेड धराशाई हो गये थे पर लता, गुल्म, ऊंची घास, खर-पतवार वैसे के वैसे अपने स्थान पर झूम रहे थे। गुरु ने इन सब की ओर इंगित कर अपने शिष्यों से कहा कि देखो जो गरूर में अकडा रहा उसका नाश हो गया और जो परिस्थिति के अनुसार अपने को ढाल गये वे जीवित बच गये। तुम भी इनसे सीख ले अपने को ऐसा ही बना डालो।

सोचता हूं कि गुरु यह भी तो कह सकते थे कि इन रीढ विहीन, मतलब परस्त, अन्याय का सामना ना कर सकने वाले खर-पतवार की बजाए इन  पेडों से सीख लो कि भले ही हमारा नामोनिशान मिट जाए हम कभी भी  आतंक, अत्याचार, अन्याय या आक्रमणकारी के आगे सर नहीं झुकाएंगे।

6 टिप्‍पणियां:

देहात की नारी ने कहा…

उत्तम लेखन, बढिया पोस्ट - देहात की नारी का आगाज ब्लॉग जगत में। कभी हमारे ब्लाग पर भी आईए।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबको एक दिन जाना है।

सचिन लोकचंदानी ने कहा…

शर्माजी नमस्कार !

आपकी इस सीख पर भी गौर किया जाना चाइए लेकिन टूट जाना , अस्तित्व को समाप्त कर देना , इसमें कौनसी बुद्धिमानी है?

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

यथा नाम तथा गुण.....
कुछ अलग सा .............

बहुत बढ़िया सर................
बहुत ही बढ़िया....

सादर
अनु

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!! सही कहा...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सचिनजी, बात टूटने या खत्म होने की नहीं है बात है अन्याय के विरोध की। यदि कहीं से उसके खिलाफ आवाज नहीं उठेगी तो अंजाम क्या होगा? वैसे आपकी राणा प्रताप, झांसी की रानी, भगत सिंह, आजाद और अभी हाल के ही अन्नाजी जैसे अनगिनत लोगों के बारे में क्या राय है?

विशिष्ट पोस्ट

मच्छरदानी, इंसान की एक छुद्र कीट से मात खाने की निशानी

एक तरफ दुनिया भर में जंगली, खतरनाक, दुर्लभ, मासूम, हर तरह के जानवरों को पिंजरों में बंद कर विश्व के सबसे खतरनाक जानवर इंसान के दीदार के लिए ...