देश-परदेस, जात-पात, भाषा-रंग, अमीर-गरीब, राजा-रंक किसी का भी भेद ना करने वाले ऐसे दरियादिल को लोग अलग-अलग जगहों में भिन्न-भिन्न नामों से जानते हैं।
उनके आने का आभास तो शुक्रवार सुबह ही हो गया था और शाम तक तो उपस्थिति भी दर्ज हो चुकी थी। पर नौकरी-पेशा लोगों की कुछ मजबूरियां होती हैं, पर इसका अहसास उन्हें क्यूंकर हो सकता था. उनके आने के बावजूद मेरे शनिवार को काम पर चले जाने को इन्होंने अपनी उपेक्षा के रूप में लिया और नाराज हो गये। पूरे रविवार भृकुटियां ताने वक्री बने रहे। अपने को फिर भी कुछ खास समझ नहीं आई और सोमवार को फिर इन्हें अनदेखा कर कार्यालय जाने की भूल दोहरा दी। गल्ती तो मेरी थी ही, अब बाहर से आए मेहमान की ना तो कोई खातिरदारी की नाहीं फल-फुंगा भेंट किया। बस फिर क्या था ये अपने रौद्र रूप में आ गये। मेरा पूरा तन-बदन अपनी गिरफ्त में ले लिया। हर अंग पर उन्होंने अपनी पकड और जकड बना ली। हिलना-डुलना तक दूभर कर डाला। तब जा कर अपुन को भी अपनी गल्तियों का अहसास हुआ। मंगल तथा बुधवार पूरी तरह से उनपर न्योछावर कर डाले। "प्रसाद" ला कर मान-मनौवल किया। तब जा कर कुछ बात बनती दिखी। वैसे दिखने में ये जितने उग्र दिखते हैं उतने स्वभाव से हैं नहीं, इसीलिए मेरे इतने से प्रयास से ही ढीले पड गये और बुध की शाम को अपने-आप वापस हो लिये।
हालांकि उनके आने से कोई भी खुश नहीं होता, कोई नहीं चाहता कि वे उनके घर किसी भी बहाने से आएं। इनके रुकने का समय भी तो निर्धारित नहीं होता, ना हुआ तो दूसरे दिन ही चल दें और कहीं मन रम गया तो दसियों दिन लगा दें। पर इन दसेक दिनों में घर-बाहर वालों की ऐसी की तैसी कर धर देते हैं। इनका एक ही ध्येय है कि संसार में सब जने स्वस्थ प्रसन्न रहें, कोई अपने प्रति लापरवाही ना बरते, अनियमित दिनचर्या ना अपनाए, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखे, किसी तरह की काहली को जीवन में स्थान ना दे। इन्हें बदपरहेजी से सख्त नफरत है। दुनिया के किसी भी कोने में इन्हें अपनी शर्तों का उल्लंघन होते दिखता है तो ये अपने को रोक नहीं पाते और वहां बिना किसी जान-पहचान या रिश्तेदारी के पहुंच जाते हैं।
देश-परदेस, जात-पात, भाषा-रंग, अमीर-गरीब, राजा-रंक किसी का भी भेद ना करने वाले ऐसे दरियादिल को लोग अलग-अलग जगहों में भिन्न-भिन्न नामों से जानते हैं। कोई बुखार कहता है, कोई ताप, कोई फिवर तो कोई हरारत।
आप इन्हें किस नाम से जानते हैं ?
8 टिप्पणियां:
अतिथि तो बड़ी कठिनाई से मिलते हैं और कठिनाई से जाते भी हैं।
"टेम्प्रेचर".आजकल ये नाम भी चल पड़ा है इनका.......
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ऐसे अतिथियों का आना भी शुभ ही होता है.
प्रवीण जी, मेहमानवाजी तो अब खत्म होती जा रही है
अर्चना जी, नाम अलग हैं पर फितरत एक ही है 😊
शास्त्री जी,
राम राम
Subramanian ji.
समय के साथ कितना बदलाव आ गया है!
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