इस आशा में कि फिर हर भारतवासी   के दिल में देशभक्ति का समुद्र हिलोरें लेगा।
आप सब को २६ जनवरी की ढेरों शुभकामनाएं। जय हिंद।
चार-पांच दिनों बाद फिर एक बार तिरंगे की पूछ होगी। एक बंधी-बधाई परम्परा की जैसे खाना-पूर्ती की जाएगी। पुराने देश-भक्ति के रेकार्डों की धूल-गर्द साफ होगी। मजबूरी में लोग इकट्ठा होंगें। झंडोतोलन की रस्म पूरी होते ही सब अपना-अपना रास्ता नाप लेंगे।
पहले वाली बात अब नहीं रही कि अलसुबह लोग बच्चों को साथ ले राजपथ पर जा दरियां बिछा परेड का इन्तजार करते थे। समय बदल गया, माहौल बदल गया, लोग बदल गए, सोच बदल गयी और फिर नेता भी तो वैसे नहीं रहे। अब इस दिन ऐसा हो
ता आया है तो करना पडेगा जैसी बात हो गयी है।  सब मशीनीकृत होता लगता है। एक-दो दिन बाद खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि कहीं झंडा उलटा टांग दिया गया। कहीं पुराने से ही काम चला लिया गया। कहीं का मानक के अनुरूप नहीं था। कहीं मान्यवर सलामी देना भूल गए इत्यादि-इत्यादि। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि अब देश-प्रेम की भावना का  पूर्णतया लोप हो चुका है। ऐसे में बेचारे झंडे की कौन पूछे।
आप सब को २६ जनवरी की ढेरों शुभकामनाएं। जय हिंद।
चार-पांच दिनों बाद फिर एक बार तिरंगे की पूछ होगी। एक बंधी-बधाई परम्परा की जैसे खाना-पूर्ती की जाएगी। पुराने देश-भक्ति के रेकार्डों की धूल-गर्द साफ होगी। मजबूरी में लोग इकट्ठा होंगें। झंडोतोलन की रस्म पूरी होते ही सब अपना-अपना रास्ता नाप लेंगे।
पहले वाली बात अब नहीं रही कि अलसुबह लोग बच्चों को साथ ले राजपथ पर जा दरियां बिछा परेड का इन्तजार करते थे। समय बदल गया, माहौल बदल गया, लोग बदल गए, सोच बदल गयी और फिर नेता भी तो वैसे नहीं रहे। अब इस दिन ऐसा हो
ता आया है तो करना पडेगा जैसी बात हो गयी है।  सब मशीनीकृत होता लगता है। एक-दो दिन बाद खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि कहीं झंडा उलटा टांग दिया गया। कहीं पुराने से ही काम चला लिया गया। कहीं का मानक के अनुरूप नहीं था। कहीं मान्यवर सलामी देना भूल गए इत्यादि-इत्यादि। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि अब देश-प्रेम की भावना का  पूर्णतया लोप हो चुका है। ऐसे में बेचारे झंडे की कौन पूछे।
वैसे इसी सन्दर्भ   में एक बहुत पुरानी घटना भी याद आ रही है.  भारत  ने  जब  1983 में  क्रिकेट  वर्ल्ड  कप  जीता  था  तो   यहाँ  तो  यहाँ  लन्दन तक   का  आकाश   तिरंगे  के  रंगों  से  आच्छादित  हो  गया   था।  उसी  अप्रत्याशित  जीत  की  रजत  जयंती  पर  फिर  समारोहों  का  आयोजन   किया  गया.  लॉर्ड्स  में  जा  कर  फिर  यादें  ताजा   की  गयीं। सब  कुछ   था  वहां,  83 की  विजेता  टीम  के  सारे  खिलाड़ी,  बड़ी -बड़ी  हस्तियाँ ,   बैनर , प्रायोजक कंपनियों   के  लोगो।  पर  नहीं  था  तो  तिरंगा।  ये   सही  है  की  लॉर्ड्स के  मैदान   में  झंडा ले  जाना  मना  है  पर  उसे   प्रतीक  के  रूप  में  तो  रखा  ही   जा सकता  था.  सचिन  ने  भी तो लाख    विरोधों  के  बावजूद   अपने  हेलमेट  में  लगा  रखा  है.  पर  समय  बदल   गया  है,   मान्यताएं बदल गयीं हैं,  सोच बदल गई है,   लगता  है,  अब  खिलाडी भी खिलाड़ी  ना  रह  बी.  सी.  सी.  आई.  के  कारिंदे  भर  बन  कर रह    गए  हैं.   अब पता नहीं कि वह   चूक थी या फिर अंग्रेजों का दवाब, जो इस  तरह भारत को सिरमौर बना  देख उपजी कुंठा को कम करने की कोशिश कर रहे हों।
इस आशा में कि फिर हर भारतवासी के दिल में देशभक्ति का समुद्र हिलोरें लेगा।
आप सब को २६ जनवरी की ढेरों शुभकामनाएं। जय हिंद।
इस आशा में कि फिर हर भारतवासी के दिल में देशभक्ति का समुद्र हिलोरें लेगा।
आप सब को २६ जनवरी की ढेरों शुभकामनाएं। जय हिंद।
4 टिप्पणियां:
भारतमाता की जय!
तिरंगे को हमेशा ऊँचा रखने के लिये हमें ही प्रयास करने होंगे । जय हिंद
तिरंगे के रंगों को फिर से बाँधना पड़ेगा
तिरंगे कि अवहेलना पर उपजा मन का रोष ..विचार्न्ने पोस्ट
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