बकरी का मीडिया में काफी दखल था। उसने कौवे की दरियादिली तथा बुद्धिमत्ता का चारों ओर जम कर प्रचार किया। सो आज तक कौवे का गुणगान होता आ रहा है।
पशु-पक्षियों में कौवे की बड़ी धाक थी। उसने कुछ ऐसी भ्रान्ति फैला रखी थी कि उस जैसा समझदार पूरे जंगल में कोई नहीं है। तकदीर तेज थी मौके-बेमौके उसका सिक्का चल ही जाता था। ऐसे ही वक्त बीतता गया। समयानुसार गर्मी का मौसम भी आ खड़ा हुआ अपनी पूरी प्रचंडता के साथ। सारे नदी-नाले, पोखर-तालाब सूख गए। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच गई। ऐसे ही एक दिन हमारा कौवा पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। उसकी जान निकली जा रही थी, पंख जवाब दे रहे थे, कलेजा मुहँ को आ रहा था। तभी अचानक उसकी नजर एक झोंपडी के बाहर पड़े एक घडे पर पड़ी। उसमे पानी तो था पर एक दम तले में , पहुँच के बाहर। उसने इधर-उधर देखा तो उसे पास ही कुछ कंकड़ों का ढेर नजर आया। कौवे ने अपनी अक्ल दौड़ाई और उन कंकडों को ला-ला कर घडे में डालना शुरू कर दिया। परन्तु एक तो गरमी दुसरे पहले से थक कर बेहाल, ऊपर से प्यास , कौवा जल्द ही पस्त पड़ गया । अचानक उसकी नजर झाडी के पीछे खड़ी एक बकरी पर पड़ी जो न जाने कब से उसका क्रिया-कलाप देख रही थी। यदि बकरी ने उसकी नाकामयाबी का ढोल पीट दिया तो ? कौवा यह सोच कर ही काँप उठा। तभी उसके दिमाग का बल्ब जला और उसने अपनी दरियादिली का परिचय देते हुए बकरी से कहा कि कंकड़ डालने से पानी काफी ऊपर आ गया है तुम ज्यादा प्यासी लग रही हो सो पहले तुम पानी पी लो। बकरी कौवे कि शुक्रगुजार हो आगे बढ़ी पर जैसा जाहिर था वह खड़े घडे से पानी ना पी सकी। कौवे ने फिर राह सुझाई कि तुम अपने सर से टक्कर मार कर घडा उलट दो इससे पानी बाहर आ जायेगा तो फिर तुम पी लेना। बकरी ने कौवे के कहेनुसार घडे को गिरा दिया। घडे का सारा पानी बाहर आ गया, दोनों ने पानी पी कर अपनी प्यास बुझाई।
बकरी का मीडिया में काफी दखल था। उसने कौवे की दरियादिली तथा बुद्धिमत्ता का चारों ओर जम कर प्रचार किया। सो आज तक कौवे का गुणगान होता आ रहा है।
नहीं तो क्या कभी कंकडों से भी पानी ऊपर आया है ?
5 टिप्पणियां:
अब भी ये बकरीनुमा मिडिया ऐसे ही कौवों को न जाने कहाँ कहाँ पहुंचा देता है!!
Gyan Darpan
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सटीक टिप्पणी है, शेखावतजी।
मीडिया पर जबरदस्त कटाक्ष।
बहुधा दिमाग़ ऐसे ही जबाब दे जाता है, तब बर्तन पलटना पड़ता है।
भाई, बहुत अच्छा लिखा है।
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