रविवार, 27 नवंबर 2011

क्या ऐसा सोचा भी जा सकता है?

क्या ऎसी दोस्ती संभव है ? एक तरफ खुंखारता का पर्याय और दूसरी तरफ कोमलता का प्रतीक।





8 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ा ही अस्वाभाविक चित्र

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
काश् इंसानों में भी ऐसी सोच होती!

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

अभी चीतों के पेट भरे हुए हैं। छका हुआ जानवर हिंसा नहीं करता।

Rahul Singh ने कहा…

दुर्लभ, अविश्‍वसनीय.

Pallavi saxena ने कहा…

अविश्वासनीय प्रस्तुति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

लगता है कि ये शावक हैं। बच्चे चाहे किसी के भी हों छल-रहित ही होते हैं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नीरजजी, सिर्फ सिंह के बारे में यह धारणा है कि पेट भरा होने पर वह शिकार नहीं करता। बाकि हर हिंसक जानवर सामने पडने पर किसी को नहीं छोडते।

विशिष्ट पोस्ट

वैलेंटाइन दिवस, दो तबकों की रंजिश का प्रतीक तो नहीं.......?

वैलेंटाइन दिवस, जिसे प्यार व सद्भाव की कामना स्थापित करने वाले दिन के रूप में प्रचारित किया गया था,  वह अब मुख्य रूप से प्रेमी जोड़ों के प...