पहले जैसा दस्तूर या रिवाज नहीं रहा कि साल में होली-दिवाली पर बाजार सजते थे। अब तो खोज-खोज कर कोई न कोई देसी-विदेशी मौका ला खडा कर दिया जाता है, जनता को लुभा-भरमा कर उसकी जेब ढीली करवाने के लिए। इन सब में सबसे बड़ा मौका या त्यौहार होता है दीपावली का। जिसका इंतजार बाज की तरह बाजार करता है। लोगों को भरमाने के जितने तरीके साल के इस मौके पर काम में लाए जाते हैं, उतने पूरे साल में भी कभी इस्तेमाल नहीं होते। दीपावली के काफी पहले से ग्राहकों को घेरने की चालें रची जाने लगती हैं। मुख्य त्यौहार के पहले पड़ने वाले 'धन तेरस' से ही साम, दाम, भेद, हर विधा को आजमाया जाने लगता है। यहाँ तक कि वास्तु, ज्योतिष, भविष्य इत्यादि का जोड़-घटाव का रूपक रच ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि लोगों को लगने लगता है कि इस मुहूर्त पर यदि कुछ खरीद नही पाए तो जीवन में सौभाग्य पाने का एकमात्र अवसर चूक जाएंगे। बस बेचारा कैसे भी जोड़-तोड़ कर कुछ न कुछ इंतजाम कर बाजार में जा खडा होता है।
इस साल भी वैसे ही नाटक रचा गया। पर इस बार ग्राहकों के रुझान और उनकी भारी जेब का आकलन कर पंडितों की सहायता ले खरीदारी की अवधि को पहले की तरह कुछ घंटों का न रख दो दिनों का कर दिया गया कि आओ-आओ, कुछ तो लेकर ही जाओ। मजे की बात यह कि बकरे को ही उसकी भलाई की मरीचिका दिखा हलाल करने की पूरी तैयारी है। क्योंकि जाहिराना बात है कि बाजार की बढ़ती भीड़ से किसे फ़ायदा होने वाला है, जो खरीदने पर उतारू है उसे या जो अपना सारा "स्टाक" बेचने पर तुला है उसे। अरे भाई ! जब सिर्फ खरीदना इतना सौभाग्यशाली है तो हजारों-हजार लोग बेचने पर क्यों उतारू हैं? क्या उन्हें सौभाग्य की आकांक्षा नहीं है? या फिर वह सिर्फ परमार्थ के लिए बाजार में आ खड़े हुए हैं ? यदि इस पुष्य नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में सिर्फ खरीदने से ही भाग्य फलता है तो क्या हजारों - लाखों दुकानों के मालिक पागल हैं। आज अखबारें खबरों का जरिया न रह कर "पैम्फलेट" मात्र रह गयी हैं। कोई भी अखबार उठा कर देख लिजीए विज्ञापनों से पटी पड़ी हैं। इन्हें ही जरिया बना हर खासो-आम को आगाह किया जाता है कि देखो मौका मत चूको। कुछ तो खरीदो। देखो कितने लुभावने आफर तुम्हारे फायदे के लिए आँखें बिछाए पड़े हैं। ७०-७० प्रतिशत पर छूट दी जा रही है। सोचने की बात है कि यह छूट देने वाला क्यों घाटा सहेगा? पर सोचने की फुरसत किसे और कहाँ है। सबको लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि पड़ोसी के यहाँ लक्ष्मीजी आकर बैठ जाएं और हम बाजार की पोल ही खोजते रह जाएं। यही वह कारण भी है जिससे हफ्ते में गोरा बनाने वाली क्रीम की फैक्ट्री अफ्रिका में न लग यहीं वारे-न्यारे कर रही है। यहाँ रह कर भी लोगों का ध्यान देश के दक्षिणी भाग में रहने वाले लोगों की तरफ नहीं जाने देती। नहीं तो लोगों को पता होता कि इसी नक्षत्रों के खेल के लिए "बेचने वालों" ने इस बार करीब ५५० टन सोना देश में आयात किया है जो कि पिछले साल के मुकाबले पूरा "१०० टन" ज्यादा है।
तो क्या सोच रहे हैं? आखिर पुष्य नक्षत्र है भाई !!! वह भी ऐसा योग जो कई सालों बाद आया है। चलिए कुछ खरीदारी हो ही जाए, कहीं सचमुच ही ऐसा कुछ हुआ तो सालों ताने सुनने मिलेंगे :-)
6 टिप्पणियां:
आपको मालूम ही होगा, बहुत दीवाने हैं।
प्रवीणजी, दिवानगी तो यह भी है जो दोबारा इसे पोस्ट करवा गयी। मौका था दस्तूर था सो........ :-)
लूटने वाला तैयार है, उसे तो ग्राहक चाहिए ही :)
रविकरजी की सीख का सदा राखियो ध्यान,
बुरी लतों से दूर रहे वही सच्चा इंसान।
त्यौहारों के बहाने लूटनेवालों ने बाजार पर अपना कब्जा जमा लिया है .. सपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
:-)
दीपावली पर आपको और परिवार को हार्दिक मंगल कामनाएं !
सादर !
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