समय चक्र कब कौन सा रुख करेगा, कौन समझ पाया है। इंसान अच्छे के लिए कुछ करता है पर हो कुछ और जाता है। मन मुताबिक़ न होने से मन इतना खिन्न हो उठता है कि वह प्रभू को भी दोष देने लगता है। उसे लगता है कि जब उसने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया, किसी का बुरा नहीं किया, खुद तकलीफ सह दूसरों का ख्याल रखा तो फिर उसके साथ नाइंसाफी क्यों?
ऐसे ही दौर से करीब एक-डेढ़ साल से गुजर रहा हूँ। अन्दर ही अन्दर असंतोष, क्रोध, बेचैनी जैसे भाव सदा दिलो-दिमाग को मथते रहते हैं, जिनको कभी किसी पर जाहिर नहीं किया। लोगों को यही लगता रहा कि यह इंसान सर्वसुख से संपन्न, चिंता रहित, हर तरह के तनाव से मुक्त, खुशहाल जिन्दगी का स्वामी है। पर किसी को पता नहीं है कि अन्दर ही अन्दर किसी बहुत करीबी द्वारा पीठ पर किए गए वार से क्षुभित है। इसलिए नहीं कि अगले ने धोखा दिया, इसलिए कि दिलो-दिमाग के न चाहने के बावजूद उस शख्स को अपना बनाया। क्षोभ अपने पर है अपने गलत निर्णय पर है।
उसके बारे में उसी के हितैषियों ने भी आगाह किया था. कई लोगों के समझाने के बावजूद मन में कहीं विश्वास था कि अपने गलत कार्यों पर उसे कभी न कभी पछतावा जरूर होगा, क्योंकि वह जानता है कि वह जो भी कर रहा है वह गलत है, जो भी कह रहा है वह झूठ है, बेजा फ़ायदा उठाने की एक घृणित चाल है। पर मेरी इस चुप्पी या उसे सुधरने के लिए समय देने के मेरे फैसले को उसने मेरी कमजोरी समझा और इसीसे शायद उत्साहित हो वह और ओछी हरकतों पर उतर आया है।
इन सब से न मैं घबडाया हूँ न ही चिंतित हूँ। पर पानी सर से ऊपर जा रहा है।
ऐसे ही दौर से करीब एक-डेढ़ साल से गुजर रहा हूँ। अन्दर ही अन्दर असंतोष, क्रोध, बेचैनी जैसे भाव सदा दिलो-दिमाग को मथते रहते हैं, जिनको कभी किसी पर जाहिर नहीं किया। लोगों को यही लगता रहा कि यह इंसान सर्वसुख से संपन्न, चिंता रहित, हर तरह के तनाव से मुक्त, खुशहाल जिन्दगी का स्वामी है। पर किसी को पता नहीं है कि अन्दर ही अन्दर किसी बहुत करीबी द्वारा पीठ पर किए गए वार से क्षुभित है। इसलिए नहीं कि अगले ने धोखा दिया, इसलिए कि दिलो-दिमाग के न चाहने के बावजूद उस शख्स को अपना बनाया। क्षोभ अपने पर है अपने गलत निर्णय पर है।
उसके बारे में उसी के हितैषियों ने भी आगाह किया था. कई लोगों के समझाने के बावजूद मन में कहीं विश्वास था कि अपने गलत कार्यों पर उसे कभी न कभी पछतावा जरूर होगा, क्योंकि वह जानता है कि वह जो भी कर रहा है वह गलत है, जो भी कह रहा है वह झूठ है, बेजा फ़ायदा उठाने की एक घृणित चाल है। पर मेरी इस चुप्पी या उसे सुधरने के लिए समय देने के मेरे फैसले को उसने मेरी कमजोरी समझा और इसीसे शायद उत्साहित हो वह और ओछी हरकतों पर उतर आया है।
इन सब से न मैं घबडाया हूँ न ही चिंतित हूँ। पर पानी सर से ऊपर जा रहा है।
5 टिप्पणियां:
क्षोभ अपने पर है अपने गलत निर्णय पर है।
उसके बारे में उसी के हितैषियों ने भी आगाह किया था. कई लोगों के समझाने के बावजूद मन में कहीं विश्वास था कि अपने गलत कार्यों पर उसे कभी न कभी पछतावा जरूर होगा, क्योंकि वह जानता है कि वह जो भी कर रहा है
खुद तोला न मासा है |
'उसका' खेल तमाशा है ||
शर्मा जी!
जगत में कुछ भी ऐसा नहीं जो स्थाई हो... बस धैर्य का साथ न छोडिये.. धीरज, धर्म, मित्र और जीवन संगिनी... इन चारों की परिक्षा का समय आ गया है.. आप अवश्य उबरेंगे!!
घोर कलजुग है भगवन, बताइए पानी कोन से टैंक का है, जो सर से ऊपर जा रहा है.
उसकी सप्लाई अभी बंद करते हैं, जल्दी ही मिलता हूँ, टेंशन लेने का नहीं देने का.....
समय सब ठीक कर देगा, बस मन में धैर्य बनाये रखें।
कहीं आप भी ब्लागजगत छोडने की भूमिका तो नहीं बाध रहे हैं???????????
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