वैसे तो प्रभू अंतर्यामी हैं, सर्वव्यापी हैं। पर इन बीते दस दिनों में ऐसा लगता है कि वे साक्षात हमारे साथ हैं। मान्यता भी है कि इन दस दिनों में प्रभू धरा पर विचरण करते हैं। शांत, सच्चे, सरल ह्रदय से ध्यान लगाएं तो इसका आभास भी निश्चित होता है।
साल भर के लम्बे इंतजार के बाद कहीं जा कर वह दिन आता है जब श्री गणेश की चरणरज से घर-आंगन पवित्र हो पाता है। ऐसा लगने लगता है कि दूर रह रहे किसी आत्मीय, स्वजन का आगमन हुआ हो। जो अपनी गोद में हमारा सिर रख प्यार से सहलाते हुए हमारे सारे दुख-दर्द, परेशानियां, विघ्न, संकट दूर कर अपनी छत्र-छाया में हमें ले लेता है। होता भी ऐसा ही है इन दिनों तन-मन-माहौल, सारा परिवेश मानो मंगलमय हो उठता है, अबाल-वृद्ध, नर-नारी सब पुल्कित हो आनंदसागर में गोते लगाने लगते हैं। एक सुरक्षा की भावना सदा बनी रहने लगती है। लगता है कि कोई है, आस-पास, जो सदा हमारी फिक्र करता है, हमारे विघ्नों का नाश करता है, जो सदा हमारे भले की ही सोचता है।
रोज घर से, उसे प्रणाम कर, निकलते समय ऐसा आभास होता है कि कोई बुजुर्ग अपनी स्नेहिल दृष्टि से हमें आप्लावित कर अपने वरद हस्त से रक्षा और सफलता की आशीष दे रहा हो। दिन भर काम के दौरान भी एक दैवीय सकून सा बना रहता है। संध्या समय लगता है कि परिवार के अलावा भी कोई हमारी प्रतीक्षा कर रहा है। लौट कर उनके दर्शन कर यह महसूस होता है जैसे कि वे हमारा ही इंतजार कर रहे हों। इतना ही नहीं उनके आने से आस-पड़ोस के परिवार भी एक आत्मीयता के सुत्र में बंध जाते हैं। अपने-अपने काम में मशगूल हरेक इंसान जो चाह कर भी अपने आत्मीय जनों से हफ्तों मिल नहीं पाता उसकी यह कसक भी इन दिनों दूर हो जाती है जब संध्या समय सब जन पूजा-अर्चना, आरती के समय एकत्र होते हैं।
पता ही नहीं चला कैसे दस दिन बीत गये। कल वह दिन भी आ गया जब हमारे गणपति बप्पा को वापस शिव-लोक जाना था। मन एक-दो दिन पहले से ही उदास था। पर जाना तो था ही।
जब बप्पा का आगमन हुआ था तब भी सब की आंखों में आंसू थे जो खुशी के अतिरेक में छलछला आए थे। आज भी रुंधे गले के साथ सब की आंखें अश्रुपूरित थीं जो उनकी विदाई के कारण सूखने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हालांकि स्पष्ट लग रहा था कि प्रभू कह रहे हैं, दुखी मत हो, मैं सदा तुम्हारे साथ हूं और अगले साल फिर आऊंगा ही। पर मन कहां मानता है।
अब उस स्थान का खालीपन, जहां गजानन विराजमान थे, काटने को दौड़ता है। आते-जाते बरबस निगाहें उस ओर उठ कुछ तलाशने लगती हैं। फिर मन अपने आप को तैयार करने लगता है अगले वर्ष उनके आने तक के इंतजार के लिए।
5 टिप्पणियां:
वो तो सदा ही साथ हैं, यहां या वहां.
JAB BHI KOI APNA JATA HAI TO SADEV HI MAN DUKHI HOTA HI HAI........
"गणपति बप्पा मोरिया
अगले बरस तू लौकर आ."
शुभकामनाएं....
जय गणेश देवा।
आपकी बातों से सहमत हूँ। विदाई वाले दिन ऐसा लगता है जैसे सब कुछ खत्म होगया हर जगह सुनसान वीरानी सी छाई रहती है। केवल 10 डीनो में ही इतना प्रेम बढ़ालेते हैं बप्पा की उनको जाने देने का मन ही नहीं करता। बहुत अच्छी पोस्ट ...आभार
कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
एक टिप्पणी भेजें