शुक्रवार, 24 जनवरी 2020

शिर्डी, सुविधाएं अनेक पर व्यवस्था में कमी

संस्थान का सारा जोर बाहरी रख-रखाव, दिखावे और प्रचार पर केंद्रित है ! और शायद धनोपार्जन मुख्य उद्देश्य ! जिसकी एक छोटी सी झलक पिछले दिनों साईं के जन्म स्थल के खबरों में आने पर यहां के लोगों में फैली चिंता के रूप में सामने आई ! इसके अलावा एक बात जो बहुत खटकती है, वह है यहां के कुछेक कर्मचारियों को छोड़ अधिकतर का बेहद रूखा और धृष्ट व्यवहार ! जो ऐसा है जैसे वे आगंतुकों पर एहसान कर रहे हों ! यह बात स्वागत कक्ष, भोजन कक्ष, चाय-कॉफी वितरण केंद्र हर जगह परिलक्षित होती है ! शायद वे भूल गए हैं कि इन्हीं श्रद्धालुओं की बनिस्पत ही उनकी रोजी-रोटी चलती है...........!    

#हिन्दी_ब्लागिंग
शिर्डी, इस धर्मस्थल की अचानक फैली कीर्ति ने बहुतों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। जिसकी वजह से यहां लोगों का आवागमन बेतहाशा बढ़ गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस संस्थान में बहुत सारी सुविधाएं पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं पर इसके साथ ही कुछ ऐसा भी है जिससे यह आभास होता है कि कहीं ना कहीं श्रद्धालु, भक्तजन और पर्यटक अवहेलित किए जा रहे हैं ! हालांकि भवन के बाहर का ''आउट लुक'' मनमोहक छवि लिए हुए है, परिसर बहुत साफ़-सुथरा व आकर्षक है ! पर लगता है कि संस्थान का सारा जोर बाहरी रख-रखाव, दिखावे और प्रचार पर केंद्रित है और शायद धनोपार्जन मुख्य उद्देश्य ! जिसकी एक छोटी सी झलक पिछले दिनों साईं के जन्म स्थल के खबरों में आने पर यहां के लोगों में फैली चिंता के रूप में सामने आई !

अभी पिछले दिनों यहां की यात्रा का अप्रत्याशित अवसर मिला ! यहां के प्रबंधन के सुनियोजित प्रचार और कुछ दर्शनसुख प्राप्त लोगों के विचारों के कारण मन में एक सोच या ख्याल था कि संस्थान के निवासों में दूसरे होटल वगैरह की तुलना में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध होंगी ! इसी कारण सबसे पहले ''साईं आश्रम'' के वृहदाकार परिसर में पहुंचे। पर स्वागत कक्ष तक पहुंचने के पहले ही गार्ड ने रूखे स्वर में जगह ना होने की बात बता निरुत्साहित कर दिया। पर बाहर से आई बहन को NRI को दी जाने वाली सुविधा की जानकारी थी, उसी के तहत हमें ''द्वारावती" जाने की सलाह दी गयी, यहां के कमरे हमें पसंद नहीं आएंगे, यह बता कर ! 
अब तक टैक्सी वाला यह बता कर कि मेरे दोस्त के होटल चलेंगे तो वेट करूंगा अन्यथा नहीं, कह कर जा चुका था ! दोबारा लद-फंद कर ऑटो को दुगने पैसे दे द्वारावती पहुंचने पर वहां की भव्य इमारत, साफ़-सुथरा परिवेश देख जहां एक ओर सुखद अनुभूति हुई वहीं मुख्य द्वार पर ही ''no room'' का मुंह चिढ़ाता बोर्ड देख मन फिर सशंकित हो गया ! पर पिछले निवास पर हुई बातचीत का हवाला देने पर जगह मिल गयी। बाद में घूम कर देखा तो सैकड़ों कमरों वाले इस भवन में बीसियों कक्ष खाली पड़े दिखे ! पता नहीं क्यों रात के नौ बजे ठंड के मौसम में सहारा तलाशते लोगों से रूखा व्यवहार कर उन्हें जगह देने से इंकार किया जा रहा था !
इसके अलावा एक बात जो बहुत खटकती है, वह है यहां के कुछेक कर्मचारियों को छोड़ अधिकतर का बेहद रूखा और धृष्ट व्यवहार ! जो ऐसा है जैसे वे आगंतुकों पर एहसान कर रहे हों ! यह बात स्वागत कक्ष, भोजन कक्ष, चाय-कॉफी वितरण केंद्र हर जगह परिलक्षित होती है ! शायद वे भूल गए हैं कि इन्हीं श्रद्धालुओं की बनिस्पत ही उनकी रोजी-रोटी चलती है।
बढ़ती ठंड और घिरती रात में रहने की समस्या का हल मिल जाने पर तनाव तो कुछ कम हो गया पर दूसरे तल पर आवंटित कमरे का हाल देख मन में कई सवाल उठ खड़े हुए ! कमरा किसी भी तीसरे दर्जे की धर्मशाला का आभास दे रहा था ! चुंचुआते लोहे के फ्रेम के पर्यक पर मैले बिस्तरपोश तथा तकिए के खोल, ओढ़ने वाली चादरें और भी दुर्दशाग्रस्त ! ढीले बिजली के स्विच ! स्नानागृह तथा टॉयलेट के जर्जर दरवाजे, वह भी प्लास्टिक के ! उधर बड़ी सी कांच की खिड़की पर पड़ी धूल की परत अपनी कहानी खुद कह रही थी। ठंड से बचने का पर्याप्त इंतजाम ना होने के कारण फ्लोर निरीक्षक से अनुरोध पर जो कंबल मिले, वो रेलगाड़ियों में मिलने वाले कंबलनुमा मोटी चादरों जैसे ही थे ! पर हालत ऐसी जैसे वर्षों से काम में लाई जा रही हों ! रेशे उधड़े हुए, लाइनिंग फटी हुई। उस पर उन दाता महाशय का चाय वगैरह के लिए कुछ पा जाने की आकांक्षा !
यदि कोई एकाधिक बार यहां हो आया है तब तो ठीक है, पर पहली बार मंदिर के अंदर पहुंचे दर्शनाभिलाषी को जरा-जरा सी जानकारी के लिए भीड़ के धक्के खाने पड जाते हैं। जैसे वरिष्ठ नागरिकों के लिए द्वार न. तीन से जाने की सुविधा दी गयी है पर यह कोई नहीं बताता कि उसके लिए अनुमति पत्र दो न. के द्वार पर बनेगा ! यह भी वहीं जा कर पता चलता है कि उसके लिए कुछ कागजात भी जरुरी हैं या सत्तर के ऊपर की आयु वाले लोग अपने साथ एक सहायक ले जा सकते हैं ! कहीं और नहीं तो यह अनुमति पत्र संस्थान अपने तीनों भक्त-निवासों पर तो उपलब्ध करवा ही सकता है। यदि यह भी उन्हें भारी और नागवार लगता है तो कम से कम पूरी जानकारी तो उपलब्ध की ही जा सकती है।
यह सही है कि आम होटलों की बनिस्पत यहां कमरे का चार्ज कम है पर है तो सही ! फिर क्यों नहीं सफाई वगैरह के स्तर पर ध्यान दिया जाता ! यदि भोजन कक्ष में ''प्रसाद'' ग्रहण करने के पश्चात थाली को धुलते देख लें तो मन वितृष्णा से भर जाता है। गंदगी भरी जगह में एक बार इकट्ठी की गयी थालियों को पटक, तेज धार हॉज पाइप की धार मार एक टब के पानी से निकाल फिर प्रयुक्त कर दिया जाता है। क्यों नहीं धन की अनवरत वर्षा की कुछ बूंदों से कुछ स्वचालित मशीने लगा दर्शनार्थियों के स्वास्थ्य को भी सुरक्षित करने के बारे में सोचा जाता ! इसके अलावा एक बात जो बहुत खटकती है, वह है यहां के कुछेक कर्मचारियों को छोड़ अधिकतर का बेहद रूखा और धृष्ट व्यवहार ! जो ऐसा है जैसे वे आगंतुकों पर एहसान कर रहे हों ! यह बात स्वागत कक्ष, भोजन कक्ष, चाय-कॉफी वितरण केंद्र हर जगह परिलक्षित होती है ! शायद वे भूल गए हैं कि इन्हीं श्रद्धालुओं की बनिस्पत ही उनकी रोजी-रोटी चलती है।    

1 टिप्पणी:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

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