मीडिया नौटंकीबाजों को नहीं, देश-समाज के प्रति समर्पित लोगों को तवज्जो दे ! क्या यह जरुरी नहीं है कि जावेद-शबाना की तथाकथित पाक यात्रा को महिमामंडित करने की बजाय देवाशी माणेक और अहमदाबाद के उन व्यापारियों के निर्णय को अवाम के सामने लाया जाए जिन्होंने पाक विरोध में अपने करोड़ों रुपयों की परवाह नहीं की ............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
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पुलवामा के हादसे से लोग अभी भी आक्रोशित हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे दिलों में घुमड़ते क्रोध को अमली जामा पहनाया जाए ! हजारों लोग अपने दिल की आवाज पर, जिसके जैसे समझ में आ रहा है वह अपने तौर पर पाकिस्तान के प्रति विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जिनका मजबूरी में किया गया काम भी सुर्खियां बन जाता है और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें देश के नाम पर करोड़ों गंवाने के बावजूद लोग जान नहीं पाते। कितने लोगों को पता है कि इस हादसे के बाद सूरत के हीरा व्यापारी श्री देवाशी माणेक ने अपनी बिटिया की शादी में दिए जाने वाले भोज समारोह को रद्द कर उसमें खर्च होने वाले करीब ग्यारह लाख रुपये पुलवामा हादसे के शहीदों के परिवारों को अर्पित कर दिए ! इसके अलावा सहायता कोष में भी पांच लाख रुपयों का योगदान दिया। वहीं अहमदाबाद के व्यापारियों ने एकजुट हो पाकिस्तान से व्यापार ना करने की घोषणा तो की ही साथ ही वहां होने जा रहे कार्यक्रम का भी बहिष्कार कर दिया जिससे उन्हें तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपये का नुक्सान भी झेलना पड़ा जो उन सब ने अपनी यात्रा के किराए के लिए खर्च किया था। ये तो भला हो श्री एन रघुरामन जी का जो वे इस बात को प्रकाश में लाए। हमारे चाटुकार मीडिया को कहां फुरसत है ऐसे लोगों और उनकी भावनाओं को तवज्जो देने की ! वह तो पिला पड़ा है, जावेद-शबाना जैसों को महिमामंडित करने में, जो परिस्थिति और मजबूरीवश अपनी पाक यात्रा को रद्द करने के कारण मशहूरियत को प्राप्त हो रहे हैं ! अभी दो-एक दिन पहले ही एक अखबार में शबाना को स्वाइन फ्लू से ग्रस्त होने की बात छपी थी ! क्या ऐसे में वह यात्रा करने लायक है भी ? दूसरी बात, क्या सिद्धू का हश्र देखने के बाद भी ये पकिस्तान जाते ? इतने तो कम-अक्ल नहीं हैं दोनों ! ऐसे में तो गंगा ही उनके घर आ गयी हाथ-मुंह धुलवाने !
उधर मीडिया कोई भी हो, दर्शनीय या छपनीय, उसे बुरा तो जरूर लगता होगा जब लोग उस पर बिकाऊ का लेबल चस्पा करते हैं, बिका हुआ कहते हैं ! पर फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज कहां आता है ! अभी दो दिन नहीं हुए जब राजधानी की एक अंग्रेजी अखबार की उसके मुख्य पृष्ट पर हादसे से संबंधित हेडिंग को ले कर लानत-मलानत की गयी थी ! क्या वह ऐसे ही छप गयी थी ? ऐसे ही कुछ दिन पहले एक अखबार के मालिक को कठघरे में खड़ा करवाया गया था ! पर क्या हुआ ?
चौबीस घंटे चलने वाले टी.वी. चैनलों का हाल सबके सामने है ! अब वे भी क्या करें ! उन्हें अपनी सुरसाई भूख का शमन करना होता है यदि वे ''किसी'' की शरण न लें तो दूसरे दिन ही माइक नहीं कटोरा थामे नजर आएंगे ! अब जिसकी शरण ली है उसकी बात टाली जा सकती है भला ! इसके अलावा इनको यह भी पता है कि इनकी एक गलत बात पर यदि सौ जने उंगली उठाएंगे तो दस पक्ष में भी खड़े हो जाएंगे ! उन्हीं दस लोगों की शह पर ये कोई भी कुकर्म करने से बाज नहीं आते। ये तो अवाम के ही ऊपर है जो इन्हें ढंग का सबक सिखाए, उनकी जिम्मेवारी की याद दिलाए, उनको अपने फर्ज से अवगत करवाए ! सोनी का कदम एक ताजा उदाहरण है !
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-02-2019) को "कश्मीर सेना के हवाले हो" (चर्चा अंक-3252) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, नमस्कार
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/02/2019 की बुलेटिन, " एयरमेल हुआ १०८ साल का - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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