सवाल यह उठ रहा है कि मंदिरों की यह अकूत धन-सम्पदा कब और किस काम आएगी ? किस ख़ास आयोजन के लिए इसे संभाल कर रखा जा रहा है ? क्या समय के साथ यह सब जमींदोज हो जाने के लिए है ? मंदिरों में जमा यह धन का पहाड़ देश की अमानत है ! यह अकूत, बेशुमार दौलत साधारण लोगों के द्वारा दान करने पर ही इकट्ठा हो पाई है ! तो आज जब वही आम इंसान मुसीबत में है, पूरा देश चिंताग्रस्त है, तो फिर इस बेकार पड़े, भगवान के नाम के धन का उपयोग भगवान के बंदों के लिए क्यों नहीं किया जा रहा है ?
#हिन्दी_ब्लागिंग
इस साल आई केरल की आपदा शायद स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी आपदा है। जैसा कि होता आया है, हमारी परंपरा ही कह लीजिए, इस परीक्षा की घडी में सारा देश एकजुट हो गया। हर कोई बिना किसी भेद-भाव, धर्म, भाषा, जाति, संप्रदाय, अमीरी-गरीबी, छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े, जिससे जितना संभव हो सका, सारे देश ने अपना योगदान करने की कोशिश की। रोज ही खबर मिलती है कि कैसे बच्चे अपनी गुल्लकें फोड़ अपनी छोटी सी धन राशि अर्पित कर रहे हैं ! सक्षम तो एक तरफ आर्थिक रूप से अक्षम लोग भी इस संकट की घडी में अपना योगदान देने से पीछे नहीं हट रहे ! कोई अपने एक दिन की कमाई दे रहा है तो कोई सामूहिक प्रयास से एकत्रित की गयी धन राशि पहुंचा रहा है ! कोई धन से नहीं तो वस्तुएं प्रदान कर रहा है ! बहुतेरे जांबाज युवक वहां खुद जा हर तरह की मदद कर रहे हैं ! बाहरी और सरकारी धन भी आया है।
पर इस सब के बावजूद लोगों के मन में एक सवाल भी उठा (व्हाट्सएप पर बंगला भाषा में ऐसा ही एक सवाल कई दिनों से घूम रहा है) कि देश के बाकी हिस्सों को तो छोड़िए; दक्षिण भारत के मंदिरों में ही अकूत सम्पदा कोठरियों के अंदर तालों के पहरे में बंद, बेकार पड़ी है, और प्राकृतिक कहर भी उधर ही टूटा है, फिर भी किसी भी बड़े मंदिर ने अपनी तरफ से कोई पहल करते हुए सहायता क्यों नहीं की ? वह विश्व प्रसिद्ध पद्मनाभ जी का मंदिर भी तो केरल में ही है ना; जो अपने सोने के भंडार के लिए दुनिया में चर्चा में बना रहता है ! फिर सबसे धनाढ्य पूजा स्थल तिरुपतिनाथ जी का मंदिर ! मीनाक्षी मंदिर ! श्रृंखला है, ऐसे अरबों-खरबों का धन संजोए, मंदिरों की ! इनके कर्ता-धर्ता क्यों चुप हैं ? जबकि कुछ छोटे मंदिरों ने तथा अन्य धर्मों के पूजा स्थलों ने अपने धर्म गुरुओं की अपील पर बिना भेद-भाव के सहायता राशि भिजवाई है !
सवाल है; यह धन-सम्पदा और किस काम आएगी ? किस ख़ास आयोजन के लिए इसे संभाला जा रहा है ? क्या समय के साथ यह सब जमींदोज हो जाने के लिए है ? मंदिरों में जमा यह धन का पहाड़ देश की अमानत है ! यह अकूत, बेशुमार दौलत साधारण लोगों के द्वारा दान करने पर ही इकट्ठा हुई है ! तो जब वही इंसान मुसीबत में है, पूरा देश चिंताग्रस्त है, तो फिर इस बेकार पड़े, भगवान के नाम के धन का उपयोग भगवान के बंदों के लिए क्यों नहीं किया जा रहा ? क्या प्रभू खुद आकर इन्हें आदेश देंगे ? या प्रबंधकों ने यह राशि अपनी संपत्ति मान ली है और जहां चाहेंगे वहीं खर्च करेंगे ? या इसके लिए भी हर बात की तरह न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा ? जबकि सच्चाई यह है कि इन विशाल मंदिरों की अकूत सम्पति का एक छोटा सा भाग ही बहुत बड़ी राहत, राहत तो क्या सारी समस्या को ही दूर कर सकता है ! ऐसा नहीं हो सकता कि जिम्मेवार लोगों ने इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं हो ! पर चुप्पी का कोई कारण ! कोई जवाब ! कोई सफाई !
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इस साल आई केरल की आपदा शायद स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी आपदा है। जैसा कि होता आया है, हमारी परंपरा ही कह लीजिए, इस परीक्षा की घडी में सारा देश एकजुट हो गया। हर कोई बिना किसी भेद-भाव, धर्म, भाषा, जाति, संप्रदाय, अमीरी-गरीबी, छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े, जिससे जितना संभव हो सका, सारे देश ने अपना योगदान करने की कोशिश की। रोज ही खबर मिलती है कि कैसे बच्चे अपनी गुल्लकें फोड़ अपनी छोटी सी धन राशि अर्पित कर रहे हैं ! सक्षम तो एक तरफ आर्थिक रूप से अक्षम लोग भी इस संकट की घडी में अपना योगदान देने से पीछे नहीं हट रहे ! कोई अपने एक दिन की कमाई दे रहा है तो कोई सामूहिक प्रयास से एकत्रित की गयी धन राशि पहुंचा रहा है ! कोई धन से नहीं तो वस्तुएं प्रदान कर रहा है ! बहुतेरे जांबाज युवक वहां खुद जा हर तरह की मदद कर रहे हैं ! बाहरी और सरकारी धन भी आया है।
पर इस सब के बावजूद लोगों के मन में एक सवाल भी उठा (व्हाट्सएप पर बंगला भाषा में ऐसा ही एक सवाल कई दिनों से घूम रहा है) कि देश के बाकी हिस्सों को तो छोड़िए; दक्षिण भारत के मंदिरों में ही अकूत सम्पदा कोठरियों के अंदर तालों के पहरे में बंद, बेकार पड़ी है, और प्राकृतिक कहर भी उधर ही टूटा है, फिर भी किसी भी बड़े मंदिर ने अपनी तरफ से कोई पहल करते हुए सहायता क्यों नहीं की ? वह विश्व प्रसिद्ध पद्मनाभ जी का मंदिर भी तो केरल में ही है ना; जो अपने सोने के भंडार के लिए दुनिया में चर्चा में बना रहता है ! फिर सबसे धनाढ्य पूजा स्थल तिरुपतिनाथ जी का मंदिर ! मीनाक्षी मंदिर ! श्रृंखला है, ऐसे अरबों-खरबों का धन संजोए, मंदिरों की ! इनके कर्ता-धर्ता क्यों चुप हैं ? जबकि कुछ छोटे मंदिरों ने तथा अन्य धर्मों के पूजा स्थलों ने अपने धर्म गुरुओं की अपील पर बिना भेद-भाव के सहायता राशि भिजवाई है !
सवाल है; यह धन-सम्पदा और किस काम आएगी ? किस ख़ास आयोजन के लिए इसे संभाला जा रहा है ? क्या समय के साथ यह सब जमींदोज हो जाने के लिए है ? मंदिरों में जमा यह धन का पहाड़ देश की अमानत है ! यह अकूत, बेशुमार दौलत साधारण लोगों के द्वारा दान करने पर ही इकट्ठा हुई है ! तो जब वही इंसान मुसीबत में है, पूरा देश चिंताग्रस्त है, तो फिर इस बेकार पड़े, भगवान के नाम के धन का उपयोग भगवान के बंदों के लिए क्यों नहीं किया जा रहा ? क्या प्रभू खुद आकर इन्हें आदेश देंगे ? या प्रबंधकों ने यह राशि अपनी संपत्ति मान ली है और जहां चाहेंगे वहीं खर्च करेंगे ? या इसके लिए भी हर बात की तरह न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा ? जबकि सच्चाई यह है कि इन विशाल मंदिरों की अकूत सम्पति का एक छोटा सा भाग ही बहुत बड़ी राहत, राहत तो क्या सारी समस्या को ही दूर कर सकता है ! ऐसा नहीं हो सकता कि जिम्मेवार लोगों ने इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं हो ! पर चुप्पी का कोई कारण ! कोई जवाब ! कोई सफाई !
10 टिप्पणियां:
सटीक प्रश्न।
सुशील जी, अभी ही नहीं कभी भी नहीं सुना कि ऐसी जगहों से सहायता की गयी हो!
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन शिक्षक दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर्ष जी, हार्दिक धन्यवाद, सम्मिलित करने हेतु !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-09-2018) को "स्लेट और तख्ती" (चर्चा अंक-3087) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, सम्मलित करने हेतु हार्दिक आभार
यशोदा जी, हार्दिक धन्यवाद
सही सवाल। मगर आज तक कभी इस धन का उपयोग किया गया हो, सुना नहीं।
रश्मि जी, यही तो विडंबना है !
जिसके लिए ना जरूरत है ना हीं उपयोग उसी के भंडारे भरे जा रहे हैं और जिसको सचमुच जरूरत है उसे देखने को भी नहीं मिलता ¡
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