अपने शुरूआती दौर में ही अमिताभ ने फिल्म ''रेशमा और शेरा" में गूंगे-बहरे का किरदार निभाया। उसके बाद उनकी अनेक ऐसी फिल्में आईं जिसका मुख्य किरदार किसी न किसी असाध्य बीमारी से पीडि़त था। जैसे फिल्म मजबूर में ब्रेन-ट्यूमर, ब्लैक में अल्जीमर्स, पा में प्रोजेरिया, दिवार में ब्रोंकाइटिस से ! फिल्म वक्त में कैंसर से ! पीकू में कॉन्स्टिपेशन से ! फिल्म पिंक में बाइपोलर डिसऑर्डर से ! वजीर में विकलांग ! शमिताभ में ईर्ष्या, द्वेष, मूक ! आँखें में तेज मिजाज, गुस्सैल, टी. वी. धारावाहिक युद्ध में भी वे हंगरीस्टन रोग से पीड़ित दिखे ! लगता है अमिताभ और हारी-बिमारियों का आपस में कुछ ज्यादा ही लगाव है तभी तो इतनी सारी फिल्मों में ऐसे किरदार निभाने के अलावा ऐसी भी कई फिल्मों में काम किया, जिसमें वे खुद बीमार नहीं थे, पर उसमें दूसरे पात्र बिमारी से जूझ रहे थे जैसे ''आनंद'', "मिली", "चीनी कम" इत्यादि.......!
#हिन्दी_ब्लागिंग
फ़िल्में देश व समाज का आईना होती हैं। जो मनोरंजन के साथ-साथ अभिव्यक्ति का भी बहुत सशक्त माध्यम हैं। इसीलिए दर्शक उनसे और उनमें काम करने वाले पात्रों से अतीव जुड़ाव महसूस करता है। ज्यादातर फिल्मों में वही सब दिखाया जाता है जो हमारे समाज में घटित होता रहता है। फिल्मकार समाज और उसमें रहने वालों की दिनचर्या, जीवनयापन, रहन-सहन और आस-पास घटित होने वाली घटनाओं को अपने नजरिये से देख, कथा में पिरो हमारे समक्ष प्रस्तुत कर देता है। मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव के साथ-साथ हारी-बिमारी भी एक अभिन्न अंग है, इसीलिए व्याधियों, बीमारियों, रोगों का फिल्मों और उनके पात्रो से शुरुआती दौर से ही नाता रहा है। रोग पर आधारित बहुत सारी फ़िल्में बनी हैं जो सफल भी रही हैं। ऐसी फ़िल्में बहुत संवेदनशील होती हैं इसीलिए उसी भावना में बह कर दर्शक उनके पात्रों से गहराई से जुड़ फिल्म को सफल करवा देता है।
#हिन्दी_ब्लागिंग
फ़िल्में देश व समाज का आईना होती हैं। जो मनोरंजन के साथ-साथ अभिव्यक्ति का भी बहुत सशक्त माध्यम हैं। इसीलिए दर्शक उनसे और उनमें काम करने वाले पात्रों से अतीव जुड़ाव महसूस करता है। ज्यादातर फिल्मों में वही सब दिखाया जाता है जो हमारे समाज में घटित होता रहता है। फिल्मकार समाज और उसमें रहने वालों की दिनचर्या, जीवनयापन, रहन-सहन और आस-पास घटित होने वाली घटनाओं को अपने नजरिये से देख, कथा में पिरो हमारे समक्ष प्रस्तुत कर देता है। मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव के साथ-साथ हारी-बिमारी भी एक अभिन्न अंग है, इसीलिए व्याधियों, बीमारियों, रोगों का फिल्मों और उनके पात्रो से शुरुआती दौर से ही नाता रहा है। रोग पर आधारित बहुत सारी फ़िल्में बनी हैं जो सफल भी रही हैं। ऐसी फ़िल्में बहुत संवेदनशील होती हैं इसीलिए उसी भावना में बह कर दर्शक उनके पात्रों से गहराई से जुड़ फिल्म को सफल करवा देता है।
ऐसा भी नहीं है कि जागरुक फिल्मकारों ने सिर्फ दर्शकों की भावनाओं का फायदा उठा अपनी फिल्म को सफल बनाया हो। ऐसे कई निर्माता-निर्देशक हुए हैं जिन्होंने ऐसी-ऐसी बीमारियों से आम दर्शक को जागरूक कर उसकी रोक-थाम करने के लिए प्रेरित भी किया है, जिनका नाम भी आम आदमी ने नहीं सुना होगा पर उनसे पीड़ित कई-कई लोग अपने देश में जूझ रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने हमें Autism, Dyslexia, Progeria, Paraplegia, Alzheimer, Amnesia, Schizophrenia और न जाने कितनी ऐसी बीमारियों के बारे बताया, चेताया और जागरूक किया।
फिल्मों के शुरूआती दौर से ही इस तरह की फ़िल्में बनती रही हैं, हिंदी फिल्म जगत का शायद ही कोई बड़ा अभिनेता या कलाकार होगा जिसने परदे पर किसी रोगी की भूमिका न की हो। पर इसमें भी सबसे आगे #अमिताभ_बच्चन का ही नाम आता है। उन्होंने अपने फ़िल्मी सफर में गंभीर, हास्य, गुस्सैल, नायक, खलनायक, चरित्र, अच्छा-बुरा, छोटा-बड़ा हर तरह के पात्रों को जी कर दर्शकों के दिल पर वर्षों राज किया है। आज भी किसी फिल्म में उनकी उपस्थिति दर्शकों को उस फिल्म का कुछ अलग होने का अहसास करवा देती है। इसी के साथ उन्होंने किसी भी और अभिनेता से ज्यादा उन फिल्मों के पात्रों को सजीव किया है जो किसी न किसी रोग से ग्रसित हैं। बिना झिझक उन्होंने वे फ़िल्में स्वीकारीं और उन्हें सफल भी बनवाया। यही कारण है कि अपने जीवन के सत्तर के दशक में दर्शकों के चहेते बन उन्होंने सदी के महानायक का ख़िताब हासिल किया हुआ है।
अपने शुरूआती दौर में ही उनको ऐसी फिल्म ''रेशमा और शेरा" मिली जिसमें उन्हें गूंगे-बहरे का किरदार निभाना था। उसके बाद उनकी अनेक ऐसी फिल्में आईं जिसका मुख्य किरदार किसी न किसी असाध्य बीमारी से पीडि़त था। जैसे वे फिल्म मजबूर में ब्रेन टयृमर से ग्रस्त रोगी के रूप में दिखाई दिए। फिल्म ब्लैक में अल्जीमर्स के रोगी के रूप में, पा में में ओरो बने अमिताभ प्रोजेरिया नामक बीमारी से ग्रस्त दिखे, जो उनकी बेहतरीन यादगार फिल्मो में भी सर्वोपरि है। दिवार में ब्रोंकाइटिस से ! फिल्म वक्त में कैंसर से ! पीकू में कॉन्स्टिपेशन से ! फिल्म पिंक में बाइपोलर डिसऑर्डर से ! वजीर में विकलांग ! शमिताभ में ईर्ष्या, द्वेष, मूक ! आँखें में तेज मिजाज, गुस्सैल का किरदार निभाने के अलावा अपने टी. वी. धारावाहिक युद्ध में भी हंगरीस्टन रोग से पीड़ित दिखे।
टी.वी. सीरियल युद्ध |
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8 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की १३८ वीं जयंती “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत रोचक आलेख ! फ़िल्मकारों ने अमिताभ बच्चन की प्रतिभा का अभी भी तक भरपूर उपयोग नहीं किया है. विकलांगता अथवा लाइलाज बीमारी से लड़ने वाले जुझारू व्यक्ति की भावना-प्रधान भूमिकाओं में अमिताभ बच्चन को अपनी बेहतरीन आवाज़ और लाजवाब संवाद की अदायगी का उपयोग करने का ख़ूब मौक़ा मिलता है इसीलिए उन्हें ऐसे किरदार बार-बार निभाने को दिए जाते हैं.
बहुत बढ़िया पोस्ट।
ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक धन्यवाद
गोपेश जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है
सुशील जी, स्नेह बना रहे!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (02-08-2018) को "गमे-पिन्हाँ में मैं हस्ती मिटा के बैठा हूँ" (चर्चा अंक-3051) पर भी है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, स्नेह के लिए हार्दिक आभार !
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