शनिवार, 23 सितंबर 2017

रंभ पुत्र महिषासुर, जिसका दो बार वध किया माँ भवानी ने !

एक बार अपने विजय अभियान से लौटते हुए असुर रंभ ने एक सरोवर में एक भैंस को जल-क्रीड़ा करते हुए देखा तो उस पर मोहित हो उसने प्रणय निवेदन किया, जिसके स्वीकार होते ही उसने भैंसे का रूप धर उस श्यामला नामक महिष-कन्या से विवाह कर लिया और वहीं रहने लगा। ऐसा उल्लेख भी  मिलता है कि श्यामला एक राजकुमारी थी जिसे श्रापवश भैंस का रूप मिला था। इन्हीं के संयोग से महिषासुर का जन्म हुआ.....
#हिन्दी_ब्लागिंग          
पौराणिक काल में देव - दानवों के बीच अक्सर युद्ध होते रहते थे। इसी  बीच कश्यप ऋषि और दक्ष-पुत्री  दनु के
असुर वंश में दो पराक्रमी भाइयों, रंभ और करंभ का जन्म हुआ। जब वे दोनों युवावस्था में पहुंचे और असुरों की दयनीय अवस्था और हालत देखी तो उन्होंने शक्तिशाली होने के लिए तपस्या करने की ठानी।  रंभ ने अग्नि में बैठ कर अग्निदेव की, और करंभ ने पानी में जा कर वरुणदेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करना शुरू किया। उनकी तपस्या को अपने आसन के लिए ख़तरा मान देवराज इंद्र ने उन पर आक्रमण कर दिया। उसने मगर का रूप धर पानी में जा करंभ को मार डाला; पर अग्निदेव द्वारा रंभ की रक्षा करने के कारण वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। समय के साथ रंभ की तपस्या पूर्ण हुई और अग्निदेव ने उसे वरदान दिया कि वह देव-दानव-मनुष्य किसी से भी मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा उसकी मौत सिर्फ मरे हुए इंसान द्वारा ही होगी। अब मरा हुआ इंसान किसी को कैसे मार सकता है यह सोच रंभ को अपने अमर होने का गुमान हो गया। धीरे-धीरे वह शक्तिशाली होने के साथ-साथ अराजक भी होता चला गया। उसने अनेक सिद्धियां भी प्राप्त कर लीं. चहुँ ओर उसकी तूती बोलने लगी। 

एक बार अपने विजय अभियान से लौटते हुए रंभ ने एक सरोवर में एक भैंस को जल-क्रीड़ा करते हुए देखा तो उस पर मोहित हो उसने प्रणय निवेदन किया जिसके स्वीकार होते ही उसने भैंसे का रूप धर उस त्रिहायणी नामक महिष-कन्या से विवाह कर लिया और वहीं रहने लगा।ऐसा उल्लेख भी  मिलता है कि श्यामला एक राजकुमारी थी जिसे श्रापवश भैंस का रूप मिला था। इधर देवासुर संग्राम तो चलता ही रहता था। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर विजय पाने के लिए तरह-तरह के उपाय खोजते रहते थे। समय के साथ-साथ देताओं ने रंभ की मौत का जरिया भी खोज निकाला। ऋषि दाधीच की हड्डियों से बने अस्त्र, वज्र से उस पर हमला कर उसे मौत के घात उतार दिया। अग्निदेव के वरदानानुसार एक मृत व्यक्ति ही रंभ की मौत का कारण बना। पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि उसका पुनर्जन्म रक्तबीज के रूप में हुआ था जो शुंभ-निशुंभ की सेना का सेनापति बना था। इस बार उसे वरदान प्राप्त था कि यदि उसके खून की एक बूँद भी धरती पर गिरेगी तो वह पुन: जीवित हो जाएगा। इस तरह उसने फिर एक तरह से अमरत्व पा लिया था। उसके आतंक को ख़त्म करने के लिए माँ दुर्गा ने माँ काली का अवतार ले उसका अंत किया था। 

उधर रंभ और त्रिहायणी के संयोग से महिषासुर का जन्म हुआ, जिसको  यह शक्ति  प्राप्त  थी कि  वहअपनी
इच्छानुसार कभी भी असुर  या  महिष का रूप धर सकता था।  महिषासुर ने  ब्रम्हा जी की कठोर तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि कोई भी देवता, दानव,मनुष्य, पशू-पक्षी  उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकेगा। इस तरह वह उच्श्रृंखल हो तीनों लोकों में उत्पात मचाने लगा। स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया  तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर ब्रम्हाविष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। पर सारे देवता मिल कर भी उसे परास्त नहीं कर पाए। तब सबने मिल कर आर्त स्वर में माँ दुर्गा का आह्वान किया। उनके प्रकट होने पर उनकी पूजा-अर्चना कर अपनी विपत्ति से छुटकारा दिलवाने की प्रार्थना की। माँ भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया। माँ के दिलासा देने पर सभी देवों ने अपने-अपने आयुध उन्हें सौपें। महामाया हिमालय पर पहुँचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। उस भयंकर शब्द को सुनकर दानव डर गये और पृथ्वी काँप उठी। भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी देवी के हाथों से मृत्यु को प्राप्त हुए। महिषासुर का भी भगवती के साथ भयंकर
युद्ध हुआ। उसने नाना प्रकार के मायाविक रूप बनाकर महामाया के साथ युद्ध किया, पर उसकी एक ना चली। जब उसे लगने लगा कि अंत नजदीक है तो उसने माँ से अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगी। माँ ने उसे क्षमा करते हुए वरदान भी दिया कि आने वाले समय में उनके साथ उसकी भी पूजा की जाएगी। इसीलिए आज भी नवरात्रों में माँ दुर्गा की प्रतिमा के साथ ही महिषासुर की मूर्ति भी बनती है। माँ भगवती द्वारा महिषासुर के वध से देवताओं में ख़ुशी व्याप्त गयी, उन्होंने माँ की स्तुति की और भगवती महामाया प्रत्येक संकट में देवताओं का सहयोग करने का आश्वासन देकर अंतर्धान हो गयीं। 

9 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर रोचक और ज्ञानवर्द्धक कथा गगन जी।
आभार आपका लेख उपलब्ध करवाने के लिए।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको भी।
जय माता की🙏🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी, पर्व की शुभकामनाएं, सपरिवार स्वीकारें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-09-2017) को
"एक संदेश बच्चों के लिए" (चर्चा अंक 2737)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत रोचक और ज्ञानवर्द्धक कथा.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी,
आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

राजीव जी,
शुभकामनाएं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन परिवार को शुभ पर्व की मंगलकामनाएं

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

रोचक लगा आलेख ....... मंगलकामनाएं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

निवेदिता जी,
ब्लॉग पर सदा स्वागत है

विशिष्ट पोस्ट

अवमानना संविधान की

आज CAA के नियमों को लेकर जैसा बवाल मचा हुआ है, उसका मुख्य कारण उसके नियम नहीं हैं बल्कि हिन्दू विरोधी नेताओं की शंका है, जिसके तहत उन्हें लग...