रंग-बिरंगे रबर बैंड |
रबर बैंड, एक छोटा सा गोल महीन रबर का टुकड़ा। जो छोटा होते हुए भी रोजमर्रा के छोटे-छोटे कामों में बेहद उपयोगी है. चाहे महिलाओं को अपने खुले, बिखरते बालों को बचाना हो, चाहे व्यवस्थित कागजों को संभालना हो, चाहे किसी पोलिथिन के लिफाफे का मुंह बंद करना हो या फिर छोटी-मोटी चीजों को एकजुट रखना हो, इससे बेहतर और कोई चीज मुफीद नहीं है। यह सब तो इसकी छोटी-मोटी उपादेयताएं हुईं। बावजूद इसके कि इसकी हमें आदत पड चुकी है, यह सर्वसुलभ है, फिर भी यह उपेक्षित ही है। इसके बारे में हमें जानकारी बहुत कम है.
इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता अमेरिका का डाक विभाग है। जहां इसकी सालाना खपत टनों का आंकड़ा पार कर जाती है। इसके अलावा यह दुनिया भर की न्यूज पेपर इंडस्ट्री, डाक विभागों, फूलों के व्यवसाय, वनस्पति उद्योग की ख़ास जरूरत बन चुका है। दुनिया भर में इसकी मांग भारी-भरकम रूप से दिन-दूनी-रात-चौगुनी की रफ्तार से बढती ही जा रही है।
इसको बनाने के लिए अधिकतर प्राकृतिक रबर का ही उपयोग किया जाता है क्योंकि इसमें सिंथेटिक रबर से ज्यादा लचीलापन होता है। छल्ले या बैंड बनाने के रबर को कई चरणों से गुजरना पड़ता है। इस दौरान रबर को ख़ास गोल नालियों में भर उसे गर्म और शुद्ध कर मशीनों से एकसार कर फिर आवश्यकतानुसार अलग-अलग नाप, माप और आकार में काट लिया जाता है। फिर इन पर लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई के हिसाब से पहचान के लिए अलग-अलग नम्बर डाल दिए जाते हैं, जिससे इनकी खरीदी-बिक्री में आसानी रहती है।
जाने-अनजाने, पहला रबर बैंड बनाने का श्रेय इंग्लैण्ड के थॉमस हैनकॉक को जाता है जिसने एक रबर की बोतल को छोटे-छोटे छल्लों के रूप में काट कर उनका उपयोग "गार्टर" और कमरबंद के रूप में किया था। यह बात 1943 की है। पर इस नन्हीं सी चीज की उपयोगिता को देख लोग इसकी ओर आकृष्ट होते चले गए. इसकी उपयोगिता और लोकप्रियता को देखते हुए इंग्लैण्ड के ही स्टेफन पेरी ने समय को भांपते हुए 17 मार्च 1945 में इसका पेटेंट करवा इसे लोकप्रियता की नयी उंचाईयों पर पहुंचा दिया।
इस तरह अमेरिकन चार्ल्स गुडइयर की रबर की खोज और इंग्लैण्ड के थॉमस, पेरी के प्रयास और मेहनत के फलस्वरूप दुनिया को यह अनूठी और बहूउपयोगी वस्तु सर्वसुलभ हो सकी।
4 टिप्पणियां:
कल कुछ कमियां रह गयीं थीं, इसलिए सुधार कर आज फिर इसे पोस्ट किया है।
छोटे बड़े छालों का रोचक इतिहास और अच्छी जानकारी ...
Blog Bulletin,
Aabhar
Naswa ji,
aise hi sneh bana rahe.
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