रविवार, 9 मार्च 2014

"शांति" का उच्चारण तीन बार क्यों करते हैं ?

एक परिक्रमा खुद की भी होती है जो घर इत्यादि में पूजा की समाप्ति पर एक जगह खड़े होकर घूमते हुए की जाती है जो याद दिलाती है कि हमारे भीतर भी  वही प्रभू, वही शक्ति, वही परम सत्य विराजमान हैं जिनकी प्रतिमा की हम अभी-अभी पूजा-अर्चना किए हैं।      

आज शाम टहलने निकला तो रास्ते में पंडित रामजी मिल गए। उनके साथ बतियाते हुए भोले नाथ के मंदिर प्रांगण में पहुँच गया।  वहां कुछ लोग शिवलिंग की प्रदक्षिणा कर रहे थे तो वैसे ही राम जी से पूछ लिया कि हम प्रदक्षिणा क्यों करते हैं ?

राम जी ने बताया कि जिस तरह सूर्य को केंद्र में रख सारे ग्रह उसका चक्कर लगाते हैं जिससे सूर्य की ऊर्जा उन्हें मिलती रहे, उसी तरह हम प्रभू यानी सर्वोच्च सत्ता, जो सारे विश्व का केंद्र है, वही कर्ता है, वही सारी गतिविधियों का संचालक है, उसी की कृपा से हम अपने नित्य प्रति के कार्य पूर्ण कर पाते हैं, उसी से हमारा जीवन है. फिर प्रभू समदर्शी हैं अपने सारे जीवों पर एक समान दया भाव रखते हैं इसका अर्थ है कि हम सभी उनसे समान दूरी पर स्थित हैं और उनकी कृपा बिना भेद-भाव के सब पर बराबर बरसती है। परिक्रमा करना भी उनकी पूजा अर्चना का एक हिस्सा है जो उनके प्रति अपनी कृतज्ञतायापन का एक भाव है, उन्हें अपने प्रेम-पाश में बांधने की एक अबोध कामना है। केवल प्रभू  ही नहीं जिनका भी हम आदर करते हैं, जो बिना किसी कामना के हमें लाभान्वित करते हैं, उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए हम उनकी परिक्रमा करते हैं, चाहे वे हमारे माता-पिता हों, गुरुजन हों, अग्नि हो या वृक्ष हों। एक परिक्रमा खुद की भी होती है जो घर इत्यादि में पूजा की समाप्ति पर एक जगह खड़े होकर घूमते हुए की जाती है जो याद दिलाती है कि हमारे भीतर भी  वही प्रभू, वही शक्ति, वही परम सत्य विराजमान हैं जिनकी प्रतिमा की हम अभी-अभी पूजा-अर्चना किए हैं।        

मैंने फिर पूछा कि परिक्रमा प्रतिमा को दाहिने रख कर यानी घड़ी की सूई की चाल के अनुसार ही क्यों की जाती है ?  यह सुन कर वहाँ बैठे एक सज्जन बोले कि इससे आपस में लोग भिड़ने से बचे रहते हैं नहीं तो कोई दाएं से चलेगा और कोई बांए से आएगा तो मार्ग अवरुद्ध होने लगेगा।  
पंडित जी मुस्कुरा कर बोले, ऐसा नहीं है. हमारे यहाँ दाएं भाग को ज्यादा पवित्र और सकारात्मक माना जाता है, इसीलिए जो हमारी सदा रक्षा करते हैं, हर ऊँच-नीच से बचाते हैं, सदा हमारा ध्यान रखते हैं उन प्रभू को हम अपनी दाईं और रख अपने आप को सदा सकारात्मक रहने की याद दिलाते हुए, उनकी परिक्रमा करते हैं।

मैंने पंडित जी से फिर पूछा कि पूजा समाप्ति पर हम "शांति" का उच्चारण तीन बार क्यों करते हैं ?
पंडित जी बोले, शांति एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह सब जगह सदा विद्यमान रहती है। जब तक इसे हमारे या हमारे क्रिया-कलापों द्वारा भंग ना किया जाए। इसका यह भी अर्थ है कि हमारी गति-विधियों से ही शांति का क्षय होता है पर जैसे ही यह सब ख़त्म होता है शांति पुन: बहाल हो जाती है। यह जहां भी होती है वहां सदा खुशियों का डेरा रहता है। इसीलिए शांति की प्राप्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं. जिससे हमारी मुसीबतों, दुखों, तकलीफों का अंत होता है और मन को शांति मिलती है। जीवन में कुछ ऐसी  प्राकृतिक आपदाएं होती हैं जिन पर किसी का वश नहीं चलता, जैसे भूकंप, बाढ़ इत्यादि। कुछ ऐसी विपदाएं होती हैं जो हमारे द्वारा या हमारी गलतियों से घटती हैं जैसे प्रदूषण, दुर्घटना, जुर्म इत्यादि।  सारी रुकावटें, दुःख और परेशानियों का कारण तीन स्रोत, आदि-दैविक, आदि-भौतिक, आध्यात्मिक हैं। इसलिए हम प्रभू से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे दुखों, तकलीफों, तथा जीवन में आने वाली अड़चनों का शमन करें। चूँकि ये मुसीबतें तीन ओर से आती हैं इसलिए शांति का उच्चारण भी तीन बार किया जाता है।
शाम गहरा गयी थी पंडित जी को मंदिर का अपना कार्य पूरा करना था, इधर घर पर मेरा इंतजार भी शुरू हो चुका था  इसलिए उनसे आज्ञा और नई जानकारियां ले मैं भी घर की ओर रवाना हो गया।


7 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रोचक प्रश्न, अंकों से अधिक प्रक्रिया का महत्व है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ज्ञानवर्धक पोस्ट।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

" शान्तिः शान्तिः शान्तिः "
सारी रुकावटें, दुःख और परेशानियों का कारण तीन स्रोत --- आदि-दैविक, आदि-भौतिक, आध्यात्मिक हैं इसलिए हम प्रभू से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे दुखों, तकलीफों, तथा जीवन में आने वाली अड़चनों का शमन करें। चूँकि ये मुसीबतें तीन और से आती हैं इसलिए शांति का उच्चारण भी तीन बार किया जाता है।

कौशल लाल ने कहा…

रोचक पोस्ट...

Aditi Poonam ने कहा…

उपयोगी और ज्ञानवर्धक जानकारी.....आभार.

Aditi Poonam ने कहा…

उपयोगी और ज्ञानवर्धक जानकारी.....आभार.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Jain Nath ji,
can't go through your bog! there are some technical problems, pi. see to it.

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