बहुत पहले सुना था कि जी. टी. रोड पर पंजाब के ढाबों में भीड़ अधिक होने और ग्राहकों के पास समय कम होने की वजह से लस्सी या शेक जैसे पेय पदार्थों को "वाशिंग मशीन" में बनाया जाने लगा था. एक साथ ढेर सारा पेय पदार्थ और समय भी कम. अब यह जिसके दिमाग की भी उपज हो उसकी बुद्धि की बलिहारी.
पर इस चित्र को देख क्या ऐसा लगता है कि किसी आविष्कार के लिए बड़ी-बड़ी डिग्रियों की आवश्यकता जरूरी है, नहीं न :-)
तो दाद दीजिए अपने इस देसी वैज्ञानिक को. जिसने सिद्ध कर दिया है कि चाह होनी चाहिए, राह अपने आप सूझ जाएगी.
14 टिप्पणियां:
"चाह होनी चाहिए, राह अपने आप सूझ जाएगी."
सत्या वचन महाराज !
बढ़िया. यहतो मैंने भी किया था. एक्स्प्रेस्सो कोफ्फी बनाने के लिए
सुब्रमनियन जी, वाह
शिवम जी, बहुत-बहुत धन्यवाद
नव-पर्व, विशु और बैसाखी की आप सभी को शुभकामनाएं।
उन शहीदों को भी नमन जिन्होंने जलियांवाला बाग में अपने प्राण त्यागे थे।
jahan chah wahi rah.......:)
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, बहुत-बहुत धन्यवाद।
यात्रा कैसी रही?
सही कहा आपने.... वैसे यह वाली तरकीब तो अब बहुत आम है...
गजब का आविष्कार, बहुत बहुत शुभकामनायें।
वाव! काफी मेकर...
सचमुच जबरदस्त....
वाकई कुछ अलग सा । यही तरीका भाप से सिकाई के लिये इस्तेमाल करते देखा है मैने ।
सही कहा आपने जहाँ चाह वहां राह. एक्स्प्रेस्सो!
सही है चाह होगी तो राह निकल ही आती है।
एक टिप्पणी भेजें