शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

चाह होनी चाहिए राह तो खुद-बखुद सामने आ जाती है

बहुत पहले सुना था कि जी. टी. रोड पर पंजाब के ढाबों में भीड़ अधिक होने और ग्राहकों के पास समय कम होने की वजह से लस्सी या शेक जैसे पेय पदार्थों को "वाशिंग मशीन" में बनाया जाने लगा था. एक साथ ढेर सारा पेय पदार्थ और समय भी कम. अब यह जिसके दिमाग की भी उपज हो उसकी बुद्धि की बलिहारी. 
पर इस चित्र को देख क्या ऐसा  लगता है कि किसी आविष्कार के लिए बड़ी-बड़ी डिग्रियों की आवश्यकता जरूरी है, नहीं न :-) 
  
 तो दाद दीजिए अपने इस  देसी वैज्ञानिक को. जिसने सिद्ध कर दिया है कि चाह होनी चाहिए, राह अपने आप सूझ जाएगी.  

14 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"चाह होनी चाहिए, राह अपने आप सूझ जाएगी."

सत्या वचन महाराज !

P.N. Subramanian ने कहा…

बढ़िया. यहतो मैंने भी किया था. एक्स्प्रेस्सो कोफ्फी बनाने के लिए

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुब्रमनियन जी, वाह

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी, बहुत-बहुत धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नव-पर्व, विशु और बैसाखी की आप सभी को शुभकामनाएं।

उन शहीदों को भी नमन जिन्होंने जलियांवाला बाग में अपने प्राण त्यागे थे।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

jahan chah wahi rah.......:)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, बहुत-बहुत धन्यवाद।
यात्रा कैसी रही?

Shah Nawaz ने कहा…

सही कहा आपने.... वैसे यह वाली तरकीब तो अब बहुत आम है...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गजब का आविष्कार, बहुत बहुत शुभकामनायें।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

वाव! काफी मेकर...
सचमुच जबरदस्त....

Asha Joglekar ने कहा…

वाकई कुछ अलग सा । यही तरीका भाप से सिकाई के लिये इस्तेमाल करते देखा है मैने ।

P.N. Subramanian ने कहा…

सही कहा आपने जहाँ चाह वहां राह. एक्स्प्रेस्सो!

Pallavi saxena ने कहा…

सही है चाह होगी तो राह निकल ही आती है।

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