गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

उल्लूओं के समूह को पार्लियामेंट कहते हैं.

मेरा विचार किसी की बेकदरी करना नहीं है, यह तो एक भाषा जो 'हमें ' बहुत प्यारी है, उसका एक पहलू है

एक भाषा है, अंग्रेजी। प्यारी भाषा है। इसीलिए शायद अंग्रेजों से भी ज्यादा यह हमें प्रिय है। इसकी बहुत सारी खासियतें हैं, जैसे लिखते कुछ हैं, पढते कुछ और हैं। किसी शब्द का उच्चारण अपनी सहूलियत के अनुसार कहीं कुछ और कहीं कुछ करने की आजादी है। कुछ अक्षर, शब्द या वाक्य बनते-बनाते गुमसुम हो जाते हैं, वगैरह, वगैरह। चलो ठीक है जैसी भी है, है। पर एक बात समझ में नहीं आती कि इसे बनाने वाले महानुभावों को शब्दों की कमी क्यों पड गयी। एक संज्ञा को दो अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल करने की क्या मजबूरी थी। चलो ठीक है भाषा उतनी समृद्ध नहीं थी तो कम से कम मिलते-जुलते चरित्र, भाव या अंदाज का तो ख्याल रखना था। जरा नीचे के उदाहरणों पर गौर करें कि किसे क्या कहा जाता है, और फिर अपनी राय दें -

उल्लूओं के समूह को :- पार्लियामेंट

मेढकों के समूह को :- आर्मी

चीटियों के समूह को :- कालोनी

कोवों के झुंड को :- मर्डर

कंगारुओं के समूह को :- मोब

बबून के झुंड को :- कांग्रेस

मछलियों के जमावडे को :- स्कूल

आफिसरों की रिहाईश को :- मेस कहा जाता है।

ये तो कुछ उदाहरण हैं, खोजने जाएं तो ढेरों विसंगतियां मिल जाएंगी।
चलो ठीक है यदि ये सब पहले हो गया था तो बाद में आने वालों का ही जरा ख्याल कर लेते या फिर जान-बूझ कर ही ऐसा :-)

8 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आज बढ़िया जानकारी दी आपने ... जय हो !

SANDEEP PANWAR ने कहा…

गगन जी पहली लाईन तो सरासर संसद का अपमान है, ऐसा नेताओं का कहना है।
आम जनता संसद के बारे में कुछ कहने की हकदार नहीं है, नेता भले वहाँ पर जमकर जूत पतरम करते रहे।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अनोखी परिभाषाएँ दी हैं आपने!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मयंकजी, यही तो अंग्रेजी का कमाल है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

भैया सावधान... आजकल कोरट कचेरी बहुत चल रही है :)

अन्तर सोहिल ने कहा…

रोचक

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चंद्रमौलेश्वरजी, क्या "कोर्टशिप" :-)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चंद्रमौलेश्वरजी, क्या "कोर्टशिप" :-)

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