घटना करीब तीस साल पुरानी है। मेरी शादी को अभी सात एक महीने ही हुए थे। तब हम दिल्ली के राजौरी गार्डेन में रहते थे। उन्हीं दिनों मेरी चचेरी बहन का रिश्ता हरियाणा के करनाल शहर में तय हुआ था। उसी के सिलसिले मे वहां जाना था। मैने नया-नया स्कूटर लिया था, जो अभी तक दो सौ किमी भी नहीं चला था, सो शौक व जोश में स्कूटरों पर ही जाना तय किया गया। हम परिवार के आठ जने चार स्कूटरों पर सवार हो सबेरे सात बजे करनाल के लिए रवाना हो लिए। यात्रा बढ़िया रही, वहां भी सारे कार्यक्रम खुशनुमा माहौल में संपन्न होने के बाद हम सब करीब पांच बजे वापस दिल्ली के लिए चल पड़े। मैं सपत्निक तीसरे क्रम पर था।। सब ठीकठाक ही चल रहा था कि अचानक दिल्ली से करीब 35किमी पहले मेरा स्कूटर बंद हो गया। मेरे आगे दो स्कूटर तथा पीछे एक स्कूटर था , आगे वालों को तो जाहिर है कुछ पता नहीं चलना था सो वे तो चलते चले गये। पर मन में संतोष था कि पीछे दो लोग आ रहे हैं, सहायता मिल जाएगी। पर देखते-देखते, मेरे आवाज देने और हाथ हिलाने के बावजूद उनका ध्यान मेरी तरफ नहीं गया, एक तो शाम हो चली थी दूसरा हेल्मेट और फिर उनकी आपसी बातों की तन्मयता की वजह से वे मेरे सामने से निकल गये। इधर लाख कोशिशों के बावजूद स्कूटर चलने का नाम नहीं ले रहा था। जहां गाडी बंद हुए थी, उसके पास एक ढ़ाबा था वहां किसी मेकेनिक के मिलने की आशा में मैं वहां तक स्कूटर को ढ़केल कर ले गया, परंतु वहां सिर्फ़ ट्रक ड्राइवरों का जमावड़ा था। अब कुछ-कुछ घबडाहट होने लगी थी। ढ़ाबे में मौजूद लोग सहायता करने की बजाय हमें घूरने में ज्यादा मशरूफ़ थे। मैं लगातार मशीन से जूझ रहा था। मेरी जद्दोजहद को देखने धीरे-धीरे तमाशबीनों का एक घेरा हमारे चारों ओर बन गया था। कदमजी मन ही मन (जैसा कि उन्होंने मुझे बाद में बताया) लगातार महामृत्युंजय का पाठ करे जा रहीं थीं। हम दोनो पसीने से तरबतर थे, मैं स्कूटर के कारण और ये घबडाहट के कारण। अंधेरा घिरना शुरु हो गया था कि अचानक एक स्पार्क हुआ और इजिन में जान आ गयी। मैने उसी हालत में ही स्कूटर को कसा-ढ़का, और प्रभू को याद कर हम घर की ओर चल पड़े। उन दिनों यमुना में बाढ़ आई हुई थी। जगह-जगह पानी भरा हुआ था। किसी भी तरह का जोखिम न लेते हुए मैं लम्बे रास्ते से होता हुआ रात करीब दस बजे जब घर पहुंचा तो पाया कि घर वालों की हालत खस्ता थी। उन दिनों मोबाइल की सुविधा तो थी नहीं और गाडी फिर ना बंद हो जाए इसलिए रास्ते से मैने भी फोन नहीं किया। जैसा भी था हमें सही सलमात देख सबकी जान में जान आई।
दूसरे दिन मेकेनिक ने जब स्कूटर खोला तो सब की आंखे फटी की फटी रह गयीं क्योंकी स्कूटर की पिस्टन रिंग टुकड़े-टुकड़े हो चुकी थी जो कि नये स्कूटर के इतनी दूर चलने का नतीजा था। ऐसी हालत में गाडी कैसे स्टार्ट हुई कैसे उसने दो जनों को 50-55किमी दूर तक पहुंचाया कुछ पता नहीं। यह एक चमत्कार ही था। उस दिन को और उस दिन के माहौल के याद आने पर आज भी मन कैसा-कैसा हो जाता है।
कोई माने या ना माने मेरा दृढ़ विश्वास है कि उस दिन सच्चे मन से निकली गुहार के कारण ही प्रभू ने हमारी सहायता की थी। प्रभू कभी भी अपने बच्चों की अनदेखी नहीं करते और यह मैने सुना नहीं देखा और भोगा है।
9 टिप्पणियां:
जाको राखे साईयाँ...
सही कहा वो किसी चमत्कार से कम नहीं रहा था।
प्रवीणजी, संदीपजी आज भी उस माहौल को याद कर घबडाहट होने लगती है। हालांकि आज जैसे बुरे हालात उस समय नहीं थे फिर भी.....
Gaganji
Wonderful episode.
What is Guhar?
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
जिसके सिर पर तू स्वामी सो कैसे दु;ख पावे।
vastavikta to yeh hai gagan ji ager hum kisi per vishwas ker ke kuch kerte hai to karye jarroor pura hota hai.........aisa hi aap ke sath bhi hua.........
अल्लाह निगेहबान तो क्या करे पहलवान:)
अपवाद, कभी-कभार ही ऐसा होता है, इससे प्रेरणा ले कर आशा न पाल लें.
राहुलजी, होता है न, चाहे कभी-कभार ही सही। वैसे जिस आशा की बात कर रहे हैं तो उस 'संबल' का सहारा लेने में कोई बुराई भी नहीं है।
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